जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। कोरोना महामारी का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। रोजाना नए मरीजों की तादात बढ़ने के कारण संसाधन भी अब कम पड़ने लगे हैं। किस अस्पताल में भर्ती होना चाहिए। कहां जगह खाली है। इसकी जानकारी के अभाव में कोरोना मरीजों को लेकर उनके स्वजन दरदर भटक रहे हैं। जब कोरोना महामारी का खतरा बढ़ रहा है तब कोरोना वाररूम गायब है। कोरोना से त्राहित्राहि कर रहे नागरिकों को एक पोर्टल की दरकार है। जो राहत दे सकता है। जिसके माध्यम से उन्हें यह पता चल सके कि सरकारी व निजी अस्पतालों में कोविड मरीजों के लिए पलंग कहां खाली हैं। बताया जाता है कि इंदौर समेत अन्य शहरों में इस तरह के पोर्टल नागरिकों को राहत दे रहे हैं। कोरोना महामारी के पहले दौर में जिले में कोरोना वार रूम तैयार किया गया था।
भाई को भर्ती कराने में लगे कई घंटे: बेहतर उपचार की उम्मीद में सतना निवासी युवती कोरोना संक्रमित अपने इकलौते भाई को लेकर जबलपुर पहुंची। वह अस्पताल दर अस्पताल भटकती रही और सात घंटे बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भाई को भर्ती करवा पाई। रांझी निवासी वृद्ध महिला को सांस लेने में तकलीफ के बाद स्वजन शहर स्थित तमाम अस्पतालों में पहुंचे परंतु जगह नहीं मिली। प्रत्येक अस्पताल में यही जवाब मिला कि मरीज की हालत बिगड सकती है, यहां आइसीयू खाली नहीं है।
प्रत्येक अस्पताल के बाहर हो डिस्प्ले: कोरोना संक्रमित मरीज को लेकर स्वजन जिस अस्पताल में भी पहुंचें वहां अन्य अस्पतालों में पलंग की उपलब्धता दर्शाई जाए। ताकि उस अस्पताल में जगह न मिलने की स्थिति में डिस्प्ले देखकर स्वजन दूसरे अस्पताल में जाने का निर्णय ले सकें। चिकित्सकों का कहना है कि प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग कोरोना वार रूम व पोर्टल पर विचार करें। मोबाइल पर क्लिक से नागरिकों से जानकारी मिल सके कि अस्पतालों में किस श्रेणी के कितने बिस्तर खाली हैं। ऑक्सीजन व वेंटीलेटर सुविधा कहां मिल सकती है।
कोविड कमांड सेंटर से मिलती है निराशा : नागरिकों का कहना है कि कोविड कमांड सेंटर से यह पता लगाना मुश्किल रहता है कि किस अस्पताल में कोविड मरीज के लिए बिस्तर खाली मिल सकता है। जिसके बाद स्वजन को लेकर मरीज सरकारी व निजी अस्पतालों के चक्कर लगाते रहते हैं। सही जानकारी के अभाव में लोग जान पहचान के लोगों से अस्पतालों की स्थिति की जानकारी लेने मजबूर होते हैं।
रेमडेसिविर के लिए भी न हो भटकाव: रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए नागरिक दवा दुकानों व अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं। प्रशासन ने जिन अधिकारियों को इंजेक्शन वितरण की जिम्मेदारी दी गई है, उनके मोबाइल फोन व्यस्त मिलते हैं। नियंत्रण के अभाव में कालाबाजारी बढ़ रही है। लोग कई गुना ज्यादा कीमत पर इंजेक्शन खरीदने मजबूर हो रहे हैं। यह जानकारी भी पोर्टल पर अंकित की जाए। अस्पतालों के डिस्प्ले में रेमडेसिविर का संपूर्ण ब्यौरा दिया जाए कि इंजेक्शन कहां व किस कीमत पर मिलेगा।