Ye hai Mera Shahar: संभावनाओं से भरी संस्कारधानी बने चिकित्साधानी, प्रयास हों
ये है मेरा शहर
By Jitendra Richhariya
Edited By: Jitendra Richhariya
Publish Date: Tue, 14 Mar 2023 04:00:44 PM (IST)
Updated Date: Tue, 14 Mar 2023 04:00:44 PM (IST)

कमलेश मिश्रा, जबलपुर। स्वामी महावीर ने कहा है कि सबसे पहली पूंजी निरोगी काया होती है। इसके बाद ही सारी धन-संपदाओं की बारी आती है। आज इसी पर होगी बात। इस विषय पर चर्चा करने के लिए हमने चुना एक ऐसी शख्सियत को, जो खुद कैंसर जैसी महाव्याधि से संघर्ष कर रहा है और अपनी जीवटता और सकारात्मकता के सहारे काल से दो-दो हाथ कर रहा है। ये शख्स हैं विनोद दुबे। ये सेवानिवृत्त सीनियर साइंटिफिक आफीसर हैं। उच्च शिक्षित विनोद दुबे अपने जीवन के 65 बसंत देख चुके हैं।
मन-मस्तिष्क से विज्ञानी दुबे बताते हैं कि उन्होंने देश के बड़े-बड़े शहर देखे। वहां तमाम प्रकार के शोध-कार्य किए। बहुत नजदीक से अपनी संस्कारधानी को भी नए स्वरूप में रचते-बसते देखा। आज से आधी सदी पहले की बात करें तो शहर की आबादी बहुत कम थी। पुरानी बसाहटों के बीच रहने वाली आबादी के लिए स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से मेडिकल अस्पताल ही सबसे बड़ी पूंजी रहा। पहले भी लोगों को तरह-तरह की बीमारियां होती थीं लेकिन मेडिकल अस्पताल और सेठ गोविंददास अस्पताल यहां के रहवासियों के लिए वरदान रहा। ये दोनों अस्पताल न केवल जबलपुर और संपूर्ण महाकोशल के लिए बड़ी उपलब्धि रहे, बल्कि विंध्य और बुंदेलखंड के मरीजों का भी ये बड़ा सहारा रहे।
चिकित्सा संसाधनों की आवश्यकता बढ़ी:
बढ़ी धीरे-धीरे आबादी बढ़ी। नई-नई बीमारियों का पता चला। उनके मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई। इन दोनाें बड़े जीवनरक्षक संस्थानाें में अधोसंरचनात्मक बदलाव तो आया लेकिन वो जनसंख्या के अनुपात में नाकाफी रहा। इसलिए यहां अनेक अन्य (निजी) चिकित्सा संस्थानों की स्थापना हुई। आबादी के अनुपात में निजी चिकित्सा संस्थानों की संख्या बहुत हो गई लेकिन यहां चिकित्सा उपकरणों और विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस होने लगी।
मशीन तो है लेकिन विशेषज्ञों की जरूरत:
विनोद दुबे बताते हैं कि मेडिकल अस्पताल की कैंसर यूनिट में वर्षों पहले से रेडिएशन मशीन उपलब्ध है। लेकिन यहां विशेषज्ञों एवं टेक्नीशियनों का आवश्यक्ता के अनुपात में कमी है। जिसकी वजह से यहां के कैंसर मरीजों को बेहतर उपचार के लिए नागपुर और मुंबई का रूख करना पड़ता है। अगर मेडिकल अस्पताल में रेडिएशन मशीन पर सिद्धहस्थ विशेषज्ञाें की उपलब्धता हो जाए तो यहां के कैंसर मरीजों को बड़ी राहत हो जाएगी।
बहुत कुछ हो सकने की गुंजाइश:
संस्कारधानी में आवाज उठाने वालों की कमी नहीं है। उठने वाली आवाज को ऊपर तक पहुंचाने वाले भी हैं। सीएम जैसी ताकत का वरदहस्त भी शहर को प्राप्त है। ऐसे में जिले के सभी बड़े अस्पतालों की जरूरतों को सूचीबद्ध कर उन्हें पूरा कराए जाने के पर्याप्त अवसर हैं। अगर सामाजिक संगठन और राजनीतिक बिरादरी इस विषय में एकजुट होकर प्रयास करें तो कोई वजह नहीं कि व्यवस्था के झंडाबरदार जबलपुर अंचल में चिकित्सा-व्यवस्था की सूरत बदलने तैयार हो जाएं। अगर ऐसा हो पाया तो जबलपुर के चिकित्सा संस्थानों के प्रति संपूर्ण महाकोशल सहित बुंदेलखंड और विंध्य के लोगों का विश्वास और प्रगाढ़ हो सकेगा।