Bhagoria Festival 2024: यशवंतसिंह पंवार, झाबुआ। वर्ष भर से जिसकी प्रतीक्षा थी, वह भगोरिया हाट अब नजदीक आ चुका है। सोमवार से त्योहारिया हाट लगने लगेंगे। उसके बाद अगले सोमवार यानी 18 मार्च से भगोरिया मेले लगना आरंभ हो जाएंगे जो लगातार 24 मार्च तक चलेंगे। इस दौरान एक सप्ताह तक क्षेत्र में मस्ती का आलम छाया रहेगा। वैसे हमेशा से कानून व्यवस्था की स्थिति को नापने का पैमाना रहा है।
भगोरिया में यह दो वजह से होता है। पहला यह कि सर्वाधिक भीड़ इन मेलों में होती है। साथ ही नशाखोरी भी ज्यादा चलती है। इससे विवाद होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। कई अप्रिय घटनाएं नशाखोरी के कारण पूर्व में हो चुकी है।
90 के दशक में झाबुआ के मेघनगर के थानेदार की हत्या हो गई थी। वजह सिर्फ यह थी कि ग्रामीण समूह में मेला स्थल पर डटे हुए थे थानेदार उन्हे बार-बार मेला स्थल से खदड़ने के प्रयास कर रहा था। बस इसी तनातनी में खूनी हमला हो गया।
क्षेत्र में यह कहावत है कि बैर यानी दुश्मनी को दीमक भी नहीं खा सकती। इसका अर्थ यह है कि एक बार रंजिश हो जाए तो फिर वह लंबी चलती है। यही रंजिश कई बार ऐसे अवसरों पर घातक बनकर उभर जाती है। दोनों पक्ष आमने-सामने हो जाए तो विवाद शुरू होने में देर नहीं लगती। आंखें मिलते ही पुराने जख्म उभर जाते हैं। ऐसे में मेला स्थलों पर पुलिस को अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है।
सोमवार यानी 11 मार्च से लेकर 17 मार्च रविवार तक लगातार जो हाट बाजार लगेंगे। वे त्योहारिया हाट कहलाएंगे। वजह साफ है, इन हाट बाजारों में आकर ग्रामीण भगोरिया के हिसाब से अपनी तैयारियां करेंगे। नवीन परिधान खरीदेंगे। शृंगार सामग्री की मांग जोरो पर रहेगी। साथ ही नारियल की बिक्री जोरो पर होगी। ढोल-मांदल व तमाम वाद्य यंत्रों को तैयार किया जाएगा। फिर अगले सोमवार यानी 18 मार्च से भगोरिया मेले आरंभ हो जाएंगे। 24 मार्च तक क्षेत्र में हर्षोल्लास का माहोल रहेगा।
सप्ताह भर तक जगह-जगह मेले लगते हैं। इन मेलो में चारों ओर उल्लास छाया रहता है। हर मेले में ग्रामीण नवीन वस्त्र पहनते हुए आते हैं। चारो ओर सांस्कृतिक रंग छाया रहता है। बच्चे से लेकर वृद्ध तक की उपस्थिति इसमें रहती है। सही मायने में जीवन को संपूर्ण आनंद से उस समय जीने का उमंग ही पर्व कहलाता है। मेलों में सामूहिक नृत्य होते हैं। युवक व युवतियां एक जैसे परिधान में आते हैं। झूला चकरी के साथ तरह-तरह के मिष्ठान रहते हैं। नाचते- गाते इन मेलों में खुशियां ही खुशियां बिखरी हुई नजर आती है।
इसको लेकर अलग-अलग मान्यता है। मान्यता यह है कि माता जी के श्राप के कारण भगोर नामक स्थान उजड़ गया था। जब वापस बसा तो उस खुशी में वार्षिक मेला आरंभ हुआ जो बाद में अन्य जगह भी हाट बाजारों में लगने लगा। भगोर से आरंभ होने के कारण इन वार्षिक मेलों का नाम भगोरिया मेला पड़ गया। वैसे ग्रामीण जन जीवन की धुरी पुराने समय से लेकर अभी तक सप्ताहिक हाट बाजारों पर ही केंद्रित है।
होली के एक सप्ताह पूर्व आने वाले हाट त्योहारिया हाट के रूप में मनाए जाते थे। इन हाट बाजारों में गुलाल उड़ाई जाती थी। सभी मिलकर पर्व की खुशियां बाटते थे। बाद में इन्ही होली के पूर्व के इन हाट बाजारों का नाम गुलालिया हाट से बदलकर भगोरिया हाट हो गया। कहानी चाहे जो हो मगर सच्चाई यह है कि उमंग व उल्लास से जीने को ही भगोरिया का पर्याय कहा जाता है। चाहे जितने गम या संघर्ष हो लेकिन मेला स्थल पर वे कोसो दूर चले जाते हैं।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रेमलाल कुर्वे ने बताया कि मेला स्थलों पर माकूल व्यवस्था रहेगी। प्रेम व शांति से सभी इस पर्व को मनाए। यदि किसी ने जानबूझकर गड़बड़ी करने के प्रयास किए तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।