'जैन सिद्धांतों में सर्वश्रेष्ठ है नवकार महामंत्र'
-पारा में लगातार 35 वर्षों से हो रही तपस्या
पारा। नईदुनिया न्यूज
पुण्य सम्राट, लोकसंत श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी की प्रेरणा से देशभर में होने वाली नवकार महामंत्र की आराधना पारा में रविवार को शुरू हुई। ये लगातार 35 वर्षों से हो रही है।
चातुर्मास समिति के प्रचार मंत्री सुशील छाजेड़ ने बताया कि जैन सिद्धांतो के अनुसार नवकार महामंत्र को सभी मंत्रो में श्रेष्ठ बताया गया है। इस मंत्र में 14 सुख का सार समाया है। इस मंत्र के जाप से भवों-भव के दुख दूर होते हैं। नगर में इस वर्ष 8 श्रावक और 10 श्राविकाएं इस तपस्या के लिए सफेद वस्त्र धारण कर अलसुबह मंदिरजी पहुंचे, जहां लाभार्थी परिवारों द्वारा नवकार मंत्र के चित्र की स्थापना, दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्रसूरीजी के चित्र की स्थापना, आचार्य देवेश श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी के चित्र की स्थापना, अखंड दीपक , धूप पूजा , वासक्षेप पूजा , स्नात्र पूजन के बाद आरती तथा मंगल दीपक बोली लगाकर लाभ लिया। चढ़ावे के बाद देववंदन, पच्चखाण, अभिषेक, स्नात्र पूजन, अष्टप्रकारी पूजन, शांति कलश तथा आरती हुई।
तीन लाख मंत्रों का जाप कर आत्मशुद्धि की जाएगी
नमस्कार महामंत्र की इस आराधना में 12 प्रदिक्षणा, 12 स्वास्तिक, 12 खमासणा, 12 लोगस्स का काउसग्ग एवं नमस्कार महामंत्र की 20 बंदी माला का जाप प्रतिदिन किया जाएगा। इन नौ दिनों में करीब तीन लाख मंत्रों का जाप कर आत्म शुद्धि की जाएगी। इसके साथ ही तीनों समय के देववंदन, दोपहर में सामूहिक एकासने, शाम का प्रतिक्रमण एवं आरती कर श्रावक-श्राविकाएं इस आरधना को पूर्ण करेंगे। नौ दिनों तक चलने वाली इस आराधना का संपूर्ण संचालन स्थानीय नवयुवक परिषद तथा चातुर्मास समिति द्वारा किया जाएगा। 8 जुलाई को आराधना के समापन पर आराधकों का वरघोड़ा निकाल कर पारणा कराया जाएगा।
तपस्वियों के बियासने
साध्वी भगवंत अविचलदृष्टाश्रीजी आदि ठाणा 7 की निश्रा में नगर में बड़ी तपस्याएं की जा रही है।इसी क्रम में सबसे कठिन माने जाने वाले सिद्धि तप में भी 38 श्रावक-श्राविकाएं अपने भाव रख आगे बढ रहे हैं। रविवार को सभी तपस्वियों के 5 उपवास के बाद सामूहिक बियासने स्थानीय नवकार भवन में चातुर्मास समिति एवं परिषद परिवार द्वारा करवाए गए। साध्वी अविचलदृष्टा श्रीजी द्वारा नवकार मंत्र के प्रारंभ होने पर नौ दिनों में 68 तीर्थों की भाव यात्रा प्रवचन में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओ ंको करवाई जाएगी। यहां नमो अरिहंताणं पद के सात शब्द पर सात यात्रा का लाभ भरत चक्रवर्ती बनकर लाभार्थी परिवार ने लिया। यह अनुष्ठान जयंतसेनसूरीश्वरजी द्वारा रचित 68 तीर्थ नवकार भाव यात्रा से किया जा रहा है। इसमें नवकार के हर शब्द पर उस नाम के तीर्थ का वर्णन किया है।
पहली यात्रा
साध्वी अविचलदृष्टाश्रीजी गुरुदेव को याद करते हुए कहा है कि गुजरात मे विहार के दौरान उनके मन में नवकारा पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना करने का ख्याल आया। हमारे गुरुदेव संकल्प महापुरुष थे। उनके लिए गए कोई भी संकल्प खाली नहीं जाते थे और ब्रह्मचर्य की शक्ति, नवकार के प्रभाव से उन्होंने नवकारा पार्श्वनाथ छत्राल तीर्थ की प्रतिष्ठा भी करवाई। गुरुदेव सभी को अपने वासक्षेप के साथ केवल और केवल नवकार जपने का गुरुमंत्र ही दिया करते थे। जो कोई भक्त गुरुदेव को अपनी तकलीफ बताता तब गुरुदेव एक ही बात कहते नवकार मंत्र का जाप करो। अपने पत्र व्यवहार में भी गुरुदेव नवकार मंत्र के जाप का ही आदेश देते थे।
दूसरी यात्रा
वर्तमान में मोहनखेड़ा तीर्थ विश्वभर में ख्यातिप्राप्त है। मोहनखेड़ा तीर्थ का इतिहास बताते साध्वीजी ने कहा कि संवत 1963 में लुणाजी दल्लाजी परिवार ने राजेंद्रसूरीजी के हाथों इस तीर्थ की प्रतिष्ठा करवाई थी तथा उपाध्याय मोहन विजयजी के नाम पर मोहनखेड़ा तीर्थ रखा गया। यहां कई आचार्यो की समाधि स्थली है। यह मुख्य तीर्थो में से एक है। यहां जयंतसेन म्यूजियम आकर्षण का केंद्र है। इसमें भगवान, गुरुदेव, सतियों, आचार्यो के जीवन चरित्र को दिखाया गया। साध्वीजी ने लाभार्थियों को विधि विधान तथा मंत्रोधाार करके अष्ट प्रकारीय पुजा करवाई। क्रिया के बीच बालिकाओं ने स्तवन की प्रस्तुति भी दी। इस तरह साध्वीजी भगवंत ने कुल सात तीर्थो की भाव यात्रा संम्पन्ना करवाई। दोपहर को दादा गुरुदेव की अष्टप्रकारी पूजा लाभार्थी परिवार द्वारा की गई। निप्र