झाबुआ(नईदुनिया प्रतिनिधि)। हम परभावों की प्रवृत्ति में इतने डूब जाते हैं कि हमेंआत्मा के विषय में जागृति नहीं है। आत्मा के विषय में जानना ही सही जागृति है। आत्मा की विस्मृति करने जैसा कोई गलत कार्य नहीं है। वर्तमान में बाह्य पदार्थों के प्रति, जगत के प्रति जागृति ज्यादा है, जबकि हमारे अंदर विराजित आत्मा की जागृति रखना चाहिए । ज्ञानियों ने आत्मा को जागृत करने के कई उपाय शास्त्रों में दिए हैं। ज्ञान और क्रिया का समायोजन कर जागृति आ सकती है । यदि आत्म भाव की जागृति आ जाए तो बाह्य जगत की जानकारी के प्रति अरुचि हो जाएगी।
उपरोक्त प्रेरक उद्बोधन आज रविवार को 'जागृति की दुनिया' विषय पर झाबुआ में आचार्य गच्छाधिपति नित्यसेन सुरीश्वर जी आदि साधु-साध्वी मंडल की निश्रा में चल रहे चातुर्मास में राष्ट्र संत जयंत सेन सुरीश्वर जी के शिष्य निपुणरत्न विजय जी ने दिया । उन्होंने कहा कि सोए नहीं जागृत होना है। जिन-जिन पापों की प्रति घृणा है, उनका त्याग कर देना चाहिए, यही सही जागृति होगी। व्यक्ति पर भाव में सो जाए तो कोई बात नहीं, स्वभाव में जागृत हो जाए तो आत्मा की जागृति होगी।
उन्होंने कहा कि हम अपेक्षा, क्रोध, मान-माया को रखकर सो गए हैं। उन्होंने कहा कि जागना ही अधर्म तो सोना भी अधर्म है। मतलब पर भाव में जागना अधर्म है और स्वभाव में सोए रहे तो भी अधर्म है। बाहर से जो हम धर्म कर रहे हैं, वह हमें भीतर दर्शन के लिए प्रेरित करता है। यदि जागृत नहीं होंगे तो रोग, बुढ़ापा शीघ्र घेर लेगा और शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। जागृति के साथ तेरा क्या है, उसे जान ले तो बाहर की प्रकृति का रस घट जाएगा। अंत में आरती का लाभ अरविंद मुकेश लोढ़ा परिवार ने की । तपस्वियों का बहुमान लाभार्थी कमलेश कोठारी ने किया।
झाबुआ में अखिल भारतीय राजेंद्र जैन नवयुवक परिषद् की बैठक रविवार को पुण्य सम्राट के पट्टधर गच्छाधिपति नित्यसेन सुरीश्वर जी आदि ठाणा की निश्रा में झाबुआ में आयोजित हुई। इसमे आगामी 10 व 11 सितंबर को होने वाले अधिवेशन को लेकर बैठक को लेकर विचार-विमर्श हुआ। इसमें अनेक शाखा परिषद के प्रतिनिधियों ने शाखा की कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। रविवार की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश धरु ने सभी शाखाओं की जानकारी को सम्मिलित कर विस्तृत सुझाव दिए। पदाधिकारी व सदस्यों की उपस्थिति झाबुआ परिषद की ओर से अध्यक्ष प्रमोद भंडारी, सचिव डा. संतोष प्रधान, श्रीसंघ अध्यक्ष मनोहर भंडारी, चातुर्मास समिति अध्यक्ष मुकेश जैन नाको.डा, संजय मेहता आदि ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। आचार्यश्री नित्यसेन सूरी जी ने परिषद संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया।
भगवान की वाणी का पर श्रद्धा रखें, धर्म आराधना सफल होगी
- प्रवचन में बोले पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा
झाबुआ(नईदुनिया प्रतिनिधि)। रविवार को स्थानक भवन में महती धर्मसभा में प्रवचन देते हुए पूज्य जिनेंद्र मुनि जी ने कहा कि इस पंचम आरे में सभी मनुष्यों को श्रद्धा प्राप्त होना कठिन है। भगवान जिनेश्वर देव के वचनों पर आज श्रद्धा रखना कठिन है। भगवान के शासन में जितने भी साधु-साध्वी हुए हैं, वे सभी मोक्ष में नहीं गए,
जिन्होंने उसी भव में सभी कर्म क्षय किए, वे ही मोक्ष को गए। भगवान के 50 हजार साधु-साध्वी थे। परंतु केवल 2100 ही मोक्ष पधारे थे। इस पंचम आरे में ऐसी सम्यक श्रद्धा कठिन है। यह बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है। भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखने पर धर्म-आराधना सफल होती है। आज हमें भगवान की वाणी सुनने का सुंदर अवसर मिला है। हमको इस पर श्रद्धा रखकर, उसका मूल्य समझना है। इस श्रद्धा की विशुद्धि करना है, निर्मल बनाना है।
प्राण जाए पर प्रण नहीं
उन्होंने कहा कि जैसा भगवान ने बताया कि उसका मन, वचन, काया से पालन करना चाहिए। श्रद्धापूर्वक पालन करने पर ही आत्मा की शुद्धि होती है। प्रतिज्ञा यानी व्रत, नियम ग्रहण करना चाहिए। श्रद्धा होने के बाद भी कई व्यक्ति प्रतिज्ञा लेने से डरते हैं। नियम-प्रत्याख्यान नहीं लेना कायरता है। प्रतिज्ञा लेने पर किसी कारणवश टूट भी जाए, जो घबराना नहीं चाहिए। व्यक्ति एक्सीडेंट के भय से सड़क पर चलना बंद नहीं करता है। व्यापारी व्यापार में नुकसान होने पर भी व्यापार बंद नहीं करता है। यदि प्रमाद वश नियम टूट भी जाए तो उसे शुद्ध करने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए।
धर्म का पालन करने से जीव भगवसागर से पार होता है
जिनेंद्र मुनि जी ने बताया कि प्रतिज्ञा ग्रहण करने के पश्चात मन-वचन-काया से उसमें एकाग्र बनकर पालन करना चाहिए। जिनेश्वर देव द्वारा बताए गए धर्म का पालन करने से जीव भवसागर से पार होता है। प्राण भले ही जाए, पर प्रण नहीं जाना चाहिए, ऐसी भावना होना चाहिए। व्यक्ति को यह प्रण लेना चाहिए कि वह दिन मेरा धन्य होगा। जब में भगवान की आज्ञा का दृढ़ता से पालन करूंगा। आज भी अनेक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका भगवान के बताए नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन कर उत्कृष्ट धर्म-आराधना कर रहे हैं। भगवान ने सामायिक, प्रतिक्रमण आवश्यक बताया है। उसका सही तरीके से पालन करना चाहिए।
व्रत-नियम का पालन करना चाहिए
उन्होंने कहा कि वर्तमान में आराधना के प्रति अहोभाव होना चाहिए कि हमें भगवान का सुंदर शासन मिला है। जिसने भी इस निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा रखकर श्रद्धापूर्वक समझ लिया, तो वह इस भव तथा अगले भव में आराधक बनेगा। हम भाग्यशाली है, हमें ऐसा वितराग धर्म मिला है। इसे पहचान कर इसका बार-बार अनुपालन करना चाहिए। व्रत नियम का बार-बार पालन करने से जीव की आत्मा का उद्धार हो जाता है।
मोक्ष के लिए संयम और तप जरूरी
धर्मसभा को अणुवत्स पूज्य संयत मुनि जी मसा ने संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी जी को दीक्षा लेने के बाद कभी आहार नहीं मिला, तो उन्हें चिंता नहीं हुई। भगवान सर्वज्ञ थे, सारी चिंताएं छोड़ दी थीं। आज संसारी जीव अनेक चिंताओं में जी रहे हैं। इस दुःखमा काल में बड़ी मुश्किल से जीवन-यापन करने के बाद भी वैराग्य के भाव कम आते हैं। साधु-साध्वी को किसी भी प्रकार की चिंता नहीं होती है। रोटी, कपड़ा, मकान, दवाई की चिंता नहीं होती और किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं देना पड़ता है। महंगाई बढ़े तो भी चिंता नहीं। इस हुंडा अपसर्पिणी काल में संसारी व्यक्ति के दुःख के सामने साधु के दुःख कुछ भी नहीं है। पहले के जमाने में और आज के जमाने में बहुत फर्क है। पहले संयम लेना कष्टदायक होता था, आज संयम लेना सरल है। मोक्ष के लिए संयम और तप जरूरी है।
रविवार होने से दर्शनार्थियों का तांता लगा
संयत मुनि जी ने बताया कि आत्मा के उद्धार के लिए आने वाले कर्मां को रोकना तथा पुराने कर्मों का क्षय करना है। आज तपस्या करने वालों का अनुमोदन करना भी लाभप्रद है। मन से इच्छापूर्वक, प्रत्ख्यानपूर्वक तपस्या करने से कर्म की निर्जरा होती है। तप से पुराने पाप नष्ट हो जाते है। तपस्या करने वाले को धन्यवाद देना चाहिए। उनसे प्रेरण लेना चाहिए। रविवार का हाट होने से आज धर्मसभा में भी दर्शनार्थियों का ठाठ लगा रहा। आज अंकलेश्वर, बड़ौदा, लिम.डी, दाहोद, मेघनगर से बड़ी संख्या में दर्शनार्थी पधारे। बड़ौदा के श्रावकों ने वर्ष 2023 के होली चातुर्मास की विनती की। धर्मसभा में श्री राजपाल मूणत, राजकुमारी कटारिया, सोनल कटकानी ने 16 उपवास, रश्मि मेहता ने 14 उपवास, आरती कटारिया, रश्मि, निधि, निधिता रूनवाल चीना, नेहा घोड़ावत ने 13 उपवास, अक्षय गांधी, लब्धी कटकानी ने 12 उपवास के व्रत नियम लिए। व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी सभा का संचालन प्रदीप रूनवाल ने किया।