लोकेंद्रसिंह परिहार * पेटलावद (नईदुनिया न्यूज)। जब से पेटलावद क्षेत्र को माही बांध से पानी मिला है, तब से किसानों के चेहरों पर छाई रहने वाली मायूसी खत्म होने लगी है। इस पानी के कारण जहां क्षेत्र में जलस्तर बढ़ गया है वहीं क्षेत्र में हर फसल का उत्पादन भी बढ़ा है। माही नदी के बांध से क्षेत्र में फेले नहरों के जाल से हर तरफ हरियाली ही हारियाली बिछा दी। आमतौर पर पेटलावद क्षेत्र के कुछ ही किसान रबी फसल लगाते थे, क्योकि क्षेत्र में पानी की कमी थी, लेकिन माही नदी की नहरों से सूखे इलाकों में आज पानी पहुंच रहा है। जिसके कारण प्रतिवर्ष रबी फसलों का रकबा भी क्षेत्र में बढ़ रहा है। यही वजह है कि जिले ही नहीं प्रदेश में भी गेहूं की पैदावर में पेटलावद नंबर 1 पर रहता है।
माही परियोजना अनमोल कड़ी
गौरतलब है कि पेटलावद क्षैत्रमें हरि क्रांति की श्रृंखला में माही परियोजना एक अनमोल कड़ी है। गंगारूपी माही नदी ने एक ऐसी आधुनिक सभ्यता को जन्म दिया जो आदिवासी क्षेत्र के किसानों के उत्थान की गाथा तो कहती ही है, क्षेत्र के विकास का संगीत भी सुना रही है। आज झाबुआ-धार सीमा क्षेत्र पर माही बांध के कारण पूरे क्षेत्र में पानी और हरियाली की कोई कमी नहीं है। क्षेत्र का अधिकांश भू-भाग पर खेतों में साल में तीन बार फसलें लहलहाने लगी हैं। अकेली माही की वजह से यहां लोगों के घर-द्वार से लेकर परिवेश तक में हरियाली और खुशहाली का सुकून परसने लगा है।
एक नजर में
-माही नहर से 33 हजार हेक्टेयर में सिंचाई के लिए मिल रहा पानी
-17 किमी फैली है मेन कैनाल
-32 किमी तक है फैली है मुख्य नहरें
-240 किमी है नहर की लंबाई संपूर्ण क्षेत्र में
09 वर्ष पहले पहली बार छोड़ा गया था पानी
-2012 से लगातार दिया जा रहा पानी
-60 किलो मीटर जिला मुख्यालय से दूर माही डेम
-3 हजार 70 मीटर लंबाई
-2 हजार 680 मीटर मिट्टी का बांध
-390 मीटर पक्का बांध
-8 हजार 860 क्यूमेक लीटर प्रति सेकंड की गति से जल निस्तारित किया जाता
-08 गेट लगा कर रोका जा रहा है पानी
कहां-कहां है नहर और कितने गांवों में दे रहे पेयजल
माही नहरों का लाभ बावड़ी, सारंगी, बरवेट, बोड़ायता, बैंगनबर्डी, रामगढ़, करड़ावद, करवड़, मोहनपुरा, गुणावद, घुघरी सहित क्षेत्र के बड़े हिस्से को मिल रहा है। इसमें 240 किमी क्षेत्र में फैली नहरों से 33 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि सिंचित हो रही है, वहीं नहरों का विस्तार करते हुए रायपुरिया, रूपगढ़, जामली, कोदली सहित अन्य क्षेत्र को लाभ भी मिलना प्रारंभ हो गया है, वहीं माही परियोजना के माध्यम से पूरे जिले में फ्लोराइड प्रभावित सैकड़ों गांवों को पेयजल के लिए शुद्ध पानी भी दिया जा रहा है। इसके साथ ही कई बड़े कस्बों में इस योजना के माध्यम से पानी दिया जा रहा है।
पिछड़ेपन का दाग धुला
माही बांध ने विकास के कई-कई सूरज उगा दिए है। इससे आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ेपन का कलंक दूर हुआ है और दूरगामी विकास के स्वप्न आकार ले रहे है। माही की बदौलत यहां की जनजातियों का अपने परंपरागत जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदला है और उनके एक अनूठा आत्म विश्वास जगा है।
जल संसाधन विभाग के तालाबों पर रहना पड़ता था निर्भर
बीते 10 वर्ष पूर्व क्षेत्र के लोगों को जलसंसाधन विभाग के अधिन रहने वाले 84 तालाबों पर निर्भर रहना पड़ता था। इन तालाबों से निकली नहरों से ही किसानों को रबी फसलों की सिंचाई के लिए पानी दिया जाता था, लेकिन वह पानी पूरे क्षेत्र के किसानों को नहीं मिल पाता था। फिर माही परियोजना शुरू हुई और पूरे पेटलावद क्षेत्र में माही नहरों का जैसे जाल सा बिछ गया। यही वजह है कि अब किसानों के साथ ही लोगों को पानी की चिंता वर्षभर नहीं रहती है। आज माही नदी पर बने बांध के कारण झाबुआ में पानी और हरियाली की कोई कमी नहीं है, अधिकांश भू-भाग पर खेतों में साल में तीन बार फसलें लहलहाने लगी हैं। अकेली माही की वजह से यहां लोगों के घर-द्वार से लेकर खेतों तक में हरियाली और खुशहाली का सुकून महसूस किया जा रहा है। धार जिले से निकल कर पर्वतीय अंचलों के बीच से बह कर झाबुआ-धार जिले की सीमा पर बहने वाली माही नदी पर निर्मित बांध ने क्षेत्र की काया पलट दी है।
किसानों की बदली किस्मत
बावड़ी के किसान जितेंद्र पाटीदार ने बताया कि माही नदी की नहरों से पेटलावद क्षेत्र के किसानों के जीवन स्तर में सुधार आया है और उनकी किस्मत बदली है। जो जमीन वर्षों पहले बारिश के बाद बंजर और सूखी पड़ी रहती थी, आज वहां भी किसान गेहूं और चने की फसल ले रहे है। माही नहरों से पैदावार में वृद्धि हुई है।
हर किसान को मिले माही नहर से पानी
माही परियोजना के एसडीओ एमएस कुरैशी ने बताया कि हमारा हमेशा से यही प्रयास रहा है कि पेटलावद क्षेत्र के हर किसान को माही नहर से पानी मिले और वह उसका सद्उपयोग करकर अपनी खेती-बाड़ी करें।