बरवेट, जामली (नईदुनिया न्यूज)। भागवत कथा आज के जीवन में हमें मानवता, सदाचार, सामाजिक सद्भाव, मर्यादा, कर्तव्यपरायणता, नैतिकता, ईमानदारी का संदेश देती है। यह संदेश पेटलावद अंचल के श्रीहरिहर आश्रम में भटेवरा परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के समापन दिवस बुधवार को आश्रम के पीठाधीश्वर आचार्य डा. देवेन्द्र शास्त्री ने प्रदान किया। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सामाजिक समरसता का अच्छा उदाहरण है।
कथा में श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि देखी सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए। पानी परात सो हाथ छुओ नहीं नैनन के जल से पग धोए। भगवान श्री कृष्ण द्वारिकापुरी के स्वामी हैं, तो सुदामा प्रजा के प्रतिनिधि हैं। कृष्ण भगवान हैं तो सुदामा एक भक्त हैं, फिर भी वे सांदीपनि की पाठशाला में गुरु भाई और बाल सखा हैं। यह मित्रता कृष्ण जीवनभर निभाते हैं। अपने मित्र के स्वागत के लिए स्वयं सिंहासन छोड़कर नंगे पैर दौड़े चले आते हैं। अपने मित्र को गले लगाकर अपने आसन पर बिठाकर सम्मान देते हैं। जीवन यात्रा में मित्रता का आधार धन-संपत्ति , वैभव नहीं होता है । सुदामा-श्रीकृष्ण की मित्रता आदर्श प्रेम स्मरण कराती है। जब भी हम आदर्श मित्रता की बात करते हैं तो सुदामा और परमात्मा श्री कृष्ण का प्रेम स्मरण हो आता है। उन्होंने कहा कि एक ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे। वे बड़े ज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त तथा जितेन्द्रिय थे। वे गृहस्थ होकर भी किसी प्रकार का संग्रह परिग्रह न करके प्रारब्ध के अनुसार जो भी मिल जाता, उसी में संतुष्ट रहते थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। उन्होंने सुदामा से प्रार्थना की वह अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण के पास जाएं।
चरण प्रक्षालन किया
श्री कृष्ण अंतर्यामी तो थे ही, उन्होंने देखा उनका प्रेमी भक्त सुदामा उनसे मिलने आ रहा है। श्री कृष्ण ने जैसे ही द्वारपालों के मुख से सुना सुदामा आया है, वे बाहर आ गए। सुदामा जी का चरण प्रक्षालन किया, पूजन किया। उन्होंने सुदामा के आने का कारण एवं उनके ह्रदय की बात जान ली। इस प्रकार भक्ति करते हुए सुदामा भगवान श्री कृष्ण के धाम को प्राप्त हो जाते हैं।
कुरीतियों का निवारण संस्कारों को ग्रहण करने से होगा
मनुष्य जीवन में कई संस्कार निर्धारित किए गए हैं जिसमें से विवाह संस्कार महत्वपूर्ण है। यदि सदियों से यह संस्कार नहीं चला आया होता तो इस सृष्टि में मानवता एवं मानव विलुप्त हो जाते इसके संदर्भ में वर्तमान स्थितियों को जोड़ते हुए उन्होंने बताया कि नई पीढ़ियां पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुए अपने संस्कारों को भूलती जा रही है। उनकी यही भूल मानवता के लिए ह्रास उत्पन्ना कर रहे है। विसंगतियां उत्पन्ना हो रही हैं और समाज में कुरीतियों का बोलबाला पनपने लगा है। यदि मनुष्य निर्धारित संस्कारों के अनुरूप चलता रहे तो समाज में विसंगतियां व्याप्त नहीं होंगी।
भागवत कथा के विश्रांति दिवस पर बालीपुर के पीठाधीश्वर पूज्य योगेश जी महाराज के शुभागमन पर भटेवरा परिवार ने बहुमान कर महाराज श्री से आशीर्वाद लिया। कथा के समापन पर व्यासपीठ को सुशोभित कर रहे आचार्यश्री का अभिनंदन साफा, शाल ओढ़ाकर आयोजक परिवार से रमेशचन्द्र भटेवरा, विपिन भटेवरा, ओमप्रकाश चोयल, हरिओम पाटीदार, विक्रम आयशर, हरिराम पाटीदार, रामेश्वर पाटीदार, गोविंद पाटीदार , मुकेश पाटीदार, अमृत पटेल ने किया। भागवत कथा में आई समस्त दान राशि श्रीकृष्ण कामधेनु गोशाला के संरक्षण में आचार्य श्री ने भेंट कर दी। समापन पर आभार जीवन भट्ट पेटलावद ने माना।