झाबुआ। जिले के किसान रबी की खेती पर ही अमूमन निर्भर रहते हैं। बारिश नहीं होती तो फसल नहीं होती और बारिश में देर हुई तो किसान सिर्फ इंतजार ही करते हैं, लेकिन शहर से 4 किलोमीटर दूर पिपलिया गांव के दो किसानों ने हालात बदलने की कोशिश की। उन्होंने हर साल आने वाली बारिश की तारीख का इंतजार किया, बादलों के बरसने का नहीं। रबी का सीजन शुरू होते ही खेत के बड़े हिस्सों में नदी का पानी खींचकर सिंचाई की। अब यह स्थिति है कि जब दूसरे किसान एक महीने की देर से आए मानसून के बाद खेतों में बीज डाल रहे हैं, इन किसानों के खेतों में डेढ़ से दो फीट के पौधे उग चुके हैं।
इस बार मानसून ने से पहले किसानों की आंखों से आंसू निकल चुके हैं। जुलाई आधा हो गया, लेकिन बोवनी लायक पर्याप्त पानी नहीं गिरा। झाबुआ, रानापुर और रामा ब्लॉक में एक-डेढ़ इंच बारिश हुई तो किसान बेमन से बोवनी करने लगे। कृषि विभाग के लोग और खेती के जानकार उन्हें ऐसा करने से मना कर रहे हैं, लेकिन जब पड़ोस के किसान के खेत में फसल लहलहा रही हो तो इंतजार कैसे कर सकते हैं। यह स्थिति पिपलिया गांव की है। यहां के किसान बीज उगा रहे हैं और बार-बार गांव के अनसिंह बारिया और वागू चौहान के खेतों में उगे मक्का, सोयाबीन और कपास के पौधों की ऊंचाई का अंदाजा लगा रहे हैं। मन में गणित ये चल रहा है कि उनके बीज कितने दिनों में अनसिंह और वागू के खेतों के पौधों के बराबर पौधे बनेंगे? और तब तक उनके खेतों की फसल कैसी होगी? ये दोनों किसान दूसरे किसानों से कितना पहले उपज ले लेंगे?
पंद्रह सौ फीट दूर नदी
पिपलिया गांव अनास नदी के किनारे बसा है। अनसिंह और वागू के खेत नदी से लगभग 1 हजार 500 फीट दूर है। अनसिंह ने बताया कि उसने दो साल पहले गेहूं की फसल लेने के लिए पम्प और पाइप 50 हजार रुपए में खरीदे थे। इस बार जब रबी का सीजन आया और बारिश नहीं हुई तो इस सुविधा का उपयोग करने का सोचा। 15 जून गुजरने के बाद खबरें आती रही कि बारिश काफी देर से आएगी। फिर खेत जोतकर मक्का और कपास के बीज डाले। बारिश आने तक दो बार खेत में पानी दिया जिससे पौधे चल निकले। अब बरसात हो गई तो चिंता दूर हो गई। अपने निर्णय पर खुशी हो रही है। अनसिंह ने अपनी 10 बीघा जमीन में से 3 बीघा में ये प्रयोग किया। वागू ने डेढ़ बीघा पर बोवनी की। बारिश आने के बाद अब बची हुई जमीन पर बीज उगाने की तैयारी कर रहे हैं।
जिले में शुरुआती दौर
वैसे इस तरह की खेती भरपूर सिंचित क्षेत्रों के लिए नई नहीं है। नर्मदा किनारे के क्षेत्रों में ऐसा होता आया है। लेकिन झाबुआ के इस इलाके में ये प्रयोग ज्यादा किसानों ने नहीं किया। खास तौर से कपास और मक्का की खेती में ये तरीका कारगर होता है। जिले के पेटलावद क्षेत्र में टमाटर की खेती करने वाले किसान ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं। लेकिन इन सभी तरह की खेती में पौधे की उचित वृद्धि मानसून आने के बाद ही होती है। इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईएस तोमर कहते हैं कि जिनके पास पानी की पर्याप्त उपलब्धता है वो ऐसा कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए पानी की उपलब्धता पर्याप्त होना चाहिए।
ये सब किया इन किसानों ने
-समय पर बारिश नहीं आई तो नदी से पानी खींचने की तैयारी की।
-खेतों में मक्का व कपास के बीज लगाकर पानी दिया। पौधे उगने पर एक बार फिर पानी दिया।
-50 हजार रुपए में दो साल पहले खरीदे पम्प और पाइप की मदद से की सिंचाई।
-गर्मी से बचाने के लिए पौधों में किसी तरह की खाद या कीटनाशक का उपयोग नहीं किया।
-बारिश आने पर अब दवाई डालने की तैयारी। खरपतवार भी उगने की संभावना जिसे हटाने की कवायद शुरू कर दी।