नईदुनिया प्रतिनिधि, कटनी। 1857 की क्रांति में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले राजा सरयू प्रसाद की नगरी विजयराघवगढ़ में मां शारदा मैहर की बड़ी बहन पिछले दो सौ साल से विराजित हैं और उनकी मान्यता भी शारदा मंदिर मैहर की तरह ही है। यहां पर नवरात्र के अलावा भी दूर-दूर से भक्त दर्शन पूजन को पहुंचते हैं। बताया जाता है कि 1826 में राजा प्रयागदास के साथ माता विजयराघवगढ़ आई थीं और उन्होंने किले का निर्माण कराने के साथ ही किले से कुछ ही दूरी पर पहाड़ी पर मां शारदा की स्थापना कराई थी। जिनको मां सरस्वती का स्वरूप माना जाता है।
स्थापना के साथ ही मातारानी के दर्शन पूजन करने दूर-दूर से भक्त आते हैं। यहां की मान्यता भी मैहर में विराजित मां शारदा की तरह है और लोग अपनी कामना लेकर मातारानी के दरबार में पहुंचते हैं। मान्यता पूरी होने पर मां शारदा का आभार व्यक्त करने परिवार सहित पहुंचकर कन्या भोज व भंडारे कराते हैं। बाग, अखाड़ा, अन्य मंदिर भी: राजा प्रयागदास ने विजयराघवगढ़ में किले का निर्माण कराने के साथ जहां मां शारदा की स्थापना कराई थी तो उसके साथ अन्य मंदिर, बाग आदि का निर्माण भी कराया था।
उन्होंने नगर में कुएं, बावली, तालाब, पंचमठा मंदिर, बगीचों का भी निर्माण कराया। यहां पर मंदिर के सामने सुंदर बाग, भरत बाग, राम बाग अखाड़ा, राम जानकी मंदिर, चारों धाम की मूर्तियां, राजा का किला आदि आकर्षक का केंद्र हैं। धाम में विराजित भगवान गणेश के काले पत्थर से बनी प्रतिमा पूरे प्रदेश में इकलौती मानी जाती है। मां शारदा के दर्शन करने के साथ श्रद्धालु यहां पर भी दर्शनों को पहुंचते हैं।
आजादी की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने विजयराघवगढ़ के किले के साथ ही मां शारदा के मंदिर को क्षति पहुंचाई थी। उसके बाद 1984 में एक बार फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। जिसमें मैहर माता के पंडा देवी प्रसाद ने पहुंचकर पूजन, अभिषेक कराया था।
लगभग दो सौ वर्ष से मां शारदा मंदिर विजयराघवगढ़ लोगों की आस्था का केन्द्र है और नगर सहित आसपास के कई जिलों से लोग यहां पर नवरात्र सहित अन्य तीज त्यौहारों में पहुंचकर दर्शन पूजन करने के साथ ही धार्मिक आयोजन कराते हैं। शारदेय व चैत्र नवरात्र पर यहां नौ दिनों तक मेले का आयोजन भी होता है।