खंडवा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। आजादी के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करने वाले निमाड़ के पहले क्रांतिकारियों में टंट्या भील शामिल थे। उन्होंने 12 साल तक वनमैन आर्मी की तरह अंग्रेजों से संघर्ष किया। इस दौरान दो बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। आमजन को अंग्रेजों के शोषण से मुक्ति और विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अदम्य साहस और जुनून की वजह से उन्हें निमाड़ का क्रांतिवीर कहा जाता है। प्रदेश सरकार द्वारा जननायक टंट्या मामा की स्मृतियों को अक्षुण्ण रखने और उनके योगदान को जन-जन को अवगत करवाने के लिए निमाड़ और मालवा में गौरव कलश यात्रा निकाली गई। ग्राम बड़ौदा अहीर से 27 नवंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टंट्या मामा की जन्मस्थली, उनके स्मारक और जबलपुर जेल से लाई गई पावन माटी को कलश में भरकर गौरव कलश यात्रा को रवाना किया था। यह यात्रा आठ दिनों तक प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों से भ्रमण कर शनिवार को पातालपानी पहुंच कर समाप्त होगी। रास्तेभर कलश यात्रा की भव्य अगवानी और पूजन किया गया। पातालपानी में मुख्यमंत्री चौहान द्वारा क्रांतिवीर टंट्या मामा की अष्ठधातु की भव्य प्रतिमा का अनावरण करने के साथ ही पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम शहीद टंट्या भील स्टेशन करने की घोषणा की जाएगी।
बड़ौदा अहीर है टंट्या मामा की जन्म स्थली
टंट्या भील का जन्म 1840 में पूर्वी निमाड़ (वर्तमान में खंडवा) जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़ौदा अहीर में हुआ था। जनजातीय समुदाय में जन्मे टंट्या बचपन से ही साहसी और चचंल थे। टंट्या भील बचपन से गुरिल्ला युद्ध में निपुण होकर पारंपरिक तीरंदाजी में भी दक्ष थे। गरीबों के मसीहा थे। अंग्रेजों और उनके समर्थकों का खजाना लूटकर गरीबों में बांट देते थे। इसके चलते अंग्रेजों ने उन्हे राबिन हुड का नाम दिया था।
छोटी उम्र से ही वह घने जंगलों, घाटियों और पहाड़ों में जीवन भर अंग्रेजों और होलकर राज्य की सेनाओं के साथ तलवारों के साथ पले। टंट्या की मदद करने के आरोप में उनके कई साथी और सहयोगियों को अंग्रेजों की यातना सहनी पड़ी। टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास 'बुरा जीवनयापन' के लिए गिरफ्तार किया गया था और एक साल की सजा के बाद चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में उनकी सजा बदलकर उन्हें रिहा करने से रोक दिया। उन्हें 1878 में दूसरी बार गिरफ्तार किया गया था और केवल तीन दिनों के बाद खंडवा की जेल में भेजा गया था। फिर यहां से जबलपुर जेल भेज दिया गया था। बाद में वहां उन्हे फांसी की सजा दे दी गई।
अपनों की गद्दारी से टंट्या भील को मिली मौत
टंट्या भील को उनकी बहन के पति गणपत ने विश्वासघात कर गिरफ्तार करवा दिया था। दूसरी बार अंग्रेजों की गिरफ्त में आने पर उन्हें इंदौर में ब्रिटिश रेजीडेंसी क्षेत्र में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया था। बाद में पुलिस सुरक्षा में जबलपुर जेल ले जाया गया, जहां ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें अमानवीय रूप से प्रताड़ित किया। सत्र न्यायालय जबलपुर ने उन्हें 19 अक्टूबर 1889 को फांसी की सजा सुनाई। फिर चार दिसंबर 1889 को फांसी दी गई। इसके बाद निमाड़ के जननायक का शव पातालपानी क्षेत्र में लाकर दफना दिया गया। किंदंवती है कि यहां स्थित टंट्या मामा की समाधि के समक्ष सम्मान स्वरूप ट्रेन चालक एक पल के लिए ट्रेन रोक देते थे।