खंडवा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। निमाड़ के लोकपर्व गणगौर के उल्लास में एक नया पन्ना जुड़ गया है। शहर के युवा फ़िल्मकार सुदीप सोहनी की डाक्यूमेंट्री फ़िल्म यादों में गणगौर इन दिनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है। हाल ही में अमेरिका के आर्कियोलाजिकल चैनल द्वारा स्थापित दुनिया के अनोखे ओटीटी प्लेटफार्म हैरिटेज ब्राडकास्टिंग पर यह फिल्म रिलीज़ हुई है। यह चैनल दुनिया भर की संस्कृति और पुरातत्व से संबंधित चुनिंदा डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों का प्रदर्शन करता है। ऐसे में मौक़ा और ख़ास बन गया। जब इस फ़िल्म का विशेष प्रदर्शन ग्राम कालमुखी में 10 अप्रैल की रात किया गया।
उल्लेखनीय है कि इस गांव की 100 साल पुरानी गणगौर परंपरा को इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में दिखाया गया है। गणगौर बाड़ी में भारी तादाद में गांव के रहवासियों ने फिल्म के दो प्रदर्शनों का आनंद लिया। सरपंच मनीषा वर्मा, भगवान पटेल, अनिल माहेश्वरी, राजेंद्र उपाध्याय, प्रदीप उपाध्याय, प्रदीप चौहान, रामसिंह केलकर, राधेगोविंद मुजमेर, रामनारायण गुप्ता ने प्रदर्शन के बाद फ़िल्म के निर्माता सुदीप सोहनी का स्वागत किया। पंकज गुप्ता ने प्रदर्शन को ऐतिहासिक बताते हुए गांव की परंपरा को दुनिया भर में पहुंचाने और फ़िल्म निर्माण के लिए सुदीप का आभार प्रदर्शित किया।
यह डाक्यूमेंट्री फिल्म इस समय दुनिया भर के अलग-अलग समारोह में दिखाई जा रही है। अगस्त 2023 में 14 वें शिकागो साउथ एशियन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह, शिकागो, अमेरिका सातवें चलचित्रम अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह गुवाहाटी, नौवें शिमला अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह शिमला में फिल्म का प्रदर्शन हो चुका है।
जनवरी 2024 में सातवें अंतरराष्ट्रीय लोकगाथा फिल्म समारोह त्रिशूर (केरल) में फिल्म का प्रदर्शन हो चुका है। हाल ही मार्च 2024 में फिल्म त्रिनिदाद और टोबेगो के पोर्ट आफ स्पेन में छठें फिल्म एंड फोकलोर फेस्टिवल में दिखाई गई है।
खंडवा में जन्मे सुदीप की स्कूली शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर और उत्कृष्ट विद्यालय से हुई है। उन्होंने कई ब्रांड्स के लिए विज्ञापन लिखे हैं। वे भारतीय फिल्म एंड टेलीविज़न संस्थान पुणे के छात्र रहे हैं। उनकी अन्य फिल्में आइ टू और तनिष्का भी भारत सहित योरप, बांग्लादेश आदि देशों में दिखाई जा चुकी हैं।
भारत परंपराओं, रीति-रिवाजों और त्योहारों का देश है। गांवों ने मिट्टी की ख़ुशबू को बचा कर रखा है और उसे पीढ़ियों तक हस्तांतरित किया है। गणगौर ऐसा ही एक लोक पर्व है जो पश्चिमोत्तर भारत में मनाया जाता है। यह फिल्म मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले के कालमुखी गांव के पारंपरिक गणगौर अनुष्ठान का चित्रण है। जहां यह परंपरा 100 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है।
इस लोक उत्सव का फिल्मांकन एक यात्रा से शुरू होता है जो अंतत: विरासत, परंपराओं, और रीति-रिवाजों को सहेजने के बहाने मासूमियत और कृतज्ञता ज्ञापित करने वाले उत्सव के अनुभव में बदल जाता है। यह फिल्म सच्चे अर्थों में भारतीय लोक संस्कृति के भीतर छुपे मंतव्यों की पड़ताल करती है।
जो लोगों और समाज में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। यह एक ऐसे लोक पर्व का फिल्मांकन है जो सदियों से परंपरा को पोसता हुआ उसे एक विरासत में परिवर्तित कर देता है और मिट्टी और फसलों के संबंध का उत्सव मनाता है।
गांव देहात की लोक परम्पराएं किस तरह समय के साथ एक सांस्कृतिक यात्रा और इतिहास बन जाती हैं, यह फ़िल्म उसी की यात्रा करती है। इस दौरान बहुत कुछ बदला है। बहुत से लोग इस दुनिया में नहीं हैं गांव की पिछले 100 सालों की पारंपरिक व्यवस्था का इतिहास इस फ़िल्म में दर्ज है।
व्यक्तिगत होते हुए भी यह सामाजिक दायरे को दिखाती है। साल 2015 में खंडवा के पास स्थित ननिहाल कालमुखी में पिछले सौ वर्षों से जारी गणगौर अनुष्ठान के दरम्यान इसके फिल्मांकन का खयाल मुझे आया और फिर अगले दो वर्षों तक गणगौर पर्व के समय हमने इसका फिल्मांकन किया।
इसमें पारंपरिक अनुष्ठान के अतिरिक्त जमुना देवी उपाध्याय, वसंत निर्गुणे, संजय महाजन, विनय उपाध्याय, आलोचना मांगरोले समेत ग्रामीण व लोक कलाकारों के साक्षात्कार, गणगौर के गीत और गांव की परंपरा का फिल्मांकन किया गया है।
29 मिनट की इस फ़िल्म की पटकथा, निर्माण व निर्देशन व पटकथा सुदीप सोहनी का है जबकि फिल्मांकन अशोक मीणा व संपादन वैभव सावंत ने किया है। फ़िल्म में ध्वनि परिकल्पना संगीतकार उमेश तरकसवार ने की है। रंग मिश्रण राज बागले ने किया है। अंग्रेजी में इसे प्रीमिनिसेंस आफ गणगौर के नाम से दिखाया जाएगा।