नईदुनिया प्रतिनिधि, खंडवा, खालवा। ग्राम रोशनी के राधेकृष्ण आजीविका स्वयं सहायता समूह द्वारा संचालित गोशाला में तैयार किए जा रहे पारंपरिक उत्पाद ने स्वयं सहायता समूह की आय की वृद्धि के साथ ही शरीर के लिए उपयोगी पोषक तत्व भी उपलब्ध करा रहा है। स्वयं सहायता समूह द्वारा तैयार किए जा रहे गिर नस्ल की गायों के दूध से निर्मित शुद्ध देसी घी की डिमांड बढ़ती जा रही है। जो अब गोशाला की आमदनी का मुख्य स्रोत बन गया है।
बाजार में इस घी की भारी मांग है, जिससे यह 3500 से 4000 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। खास बात यह है कि यह घी पारंपरिक विधि से तैयार किया जा रहा है और स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भरपूर है। समूह की सहयोगी ग्राम पंचायत रोशनी के पंचायत सचिव राधेश्याम नागोले ने बताया कि गोशाला में उत्पादित गिर गाय का 30 लीटर दूध प्रतिदिन स्थानीय एकलव्य विद्यालय एवं छात्रावास को प्रदाय किया जाता था, लेकिन ग्रीष्मकालीन अवकाश के चलते दूध बच रहा था। खपत कम होने से समूह की चिंता बढ़ गई थी।
वहीं, समूह की महिला सदस्यों की सूझबूझ से इसका भी विकल्प निकाला गया व दूध से घी बनाना प्रारंभ किया। एक माह में लगभग 12 किलो घी का निर्माण हुआ, जिसकी बिक्री से गोशाला को अच्छा लाभांश प्राप्त हुआ। नागोले ने बताया कि यहां परंपरागत तरीके से उत्पादित घी से यहां आने वाले लोगो को अवगत कराया गया। घी की शुद्धता ने सभी को मोह लिया। लाभ को देखते हुए इसकी मांग भी बढ़ी।
वर्तमान में यह घी केवल आसपास के क्षेत्र ही नहीं, बल्कि खंडवा शहर में भी लोकप्रिय हो रहा है। घी की बढ़ती मांग को देखते हुए गोशाला में दो और गिर नस्ल की गायें लाने की तैयारी की जा रही है। संचालन समिति ने बताया कि अब जुलाई माह से एकलव्य विद्यालय को दूध 60 रुपये प्रति लीटर की दर से दिया जाएगा।
गोशाला में हर सप्ताह लगभग तीन किलो घी तैयार हो रहा है। जून माह तक घी निर्माण की प्रक्रिया जारी रहती है। इससे प्राप्त आय से चरवाहे का वेतन, गायों के लिए काकड़ा, खल्ली, चारा और भूसे की व्यवस्था की जाती है। आयुर्वेद में अमृत समान माना जाता है गिर गाय का घी, पारंपरिक विधि से निर्मित गिर गाय का घी आयुर्वेद में अत्यंत गुणकारी माना गया है। इसमें मौजूद औषधीय तत्व शरीर को संपूर्ण रूप से लाभ पहुंचाते हैं।
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