
खंडवा/ओंकारेश्वर। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। ज्योतिर्लिंग भगवान की पूजा-अर्चना आस्था से करते हैं। यह सिलसिला कई शताब्दियों से चला आ रहा है।
इसके बावजूद समय-समय पर मूल ज्योतिर्लिंग और गर्भगृह को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं सामने आती हैं। इसमें ज्योतिर्लिंग मुख्य शिखर से अलग होने तथा भगवान के समानांतर नंदीगण नहीं होने से सवाल उठाए जाते हैं।
ओंकारेश्वर स्थित हजारों वर्ष पुराने समस्त परमारकालीन मंदिरों में अनेक समानता है। उनकी शैली, शिल्पकारी और बनावट के अलावा ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर, केदारनाथ मंदिर और ओंकार पर्वत पर मंदिरों में शिवलिंग के ठीक सामने नंदीगण विराजमान हैं।

इसके विपरीत ओंकारेश्वर मंदिर में नंदीगण भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने न होकर दूसरी दिशा में मुंह किए हुए हैं। मौजूदा ज्योतिर्लिंग भी मुख्य शिखर के नीचे नहीं होकर कुछ दूरी पर विराजमान हैं। इसका शिखर ओंकारेश्वर मंदिर की दूसरी मंजिल पर नजर आता है। इसकी वास्तवितका जानने के लिए नईदुनिया ने पड़ताल की तो कई बातें सामने आईं। मामला धर्म और आस्था को होने से अधिकृत तौर पर कुछ भी कहने से जिम्मेदारों ने हाथ खींच लिए हैं।
पांच मंजिला ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एक ही शिखर के नीचे स्थित है। इसमें प्रथम मंजिल पर महाप्रसादी वाले भाग में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मौजूद है। दूसरी मंजिल में भगवान महाकालेश्वर, तीसरी मंजिल पर भगवान परमेश्वर सिद्धनाथ, चौथी पर भगवान भुनेश्वर तथा पांचवीं मंजिल पर ध्वजेश्वर महादेव विराजमान हैं। इनमें पहली मंजिल को छोड़ शेष चारों मंदिर में भगवान भोलेनाथ मुख्य शिखर के नीचे स्थापित हैं।
इनके सामने नंदीगण भी विराजमान हैं जबकि महाप्रसाद वाले भाग में विराजमान भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मुख्य शिखर से दूर हैं। इससे प्रमाणित होता है कि भगवान ओंकारेश्वर का वास्तविक स्वरूप चांदी के दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार के पीछे हो सकता है। इसकी वास्तविकता का पता लगाने के लिए समय-समय पर प्रयास भी हुए लेकिन मूल स्वरूप तक पहुंचने की कोशिशें नाकाफी साबित हुई। हाल में हुई प्रशासनिक पहल भी अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है।
आस्था और विरोध बन रहे रोड़ा
ओंकारेश्वर महादेव का मूल स्वरूप तो सभी को स्वीकार है लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था, विश्वास और मान्यताओं के अलावा एकजुटता व सामंजस्यता का अभाव राह का रोड़ा बन जाता है। ज्योतिर्लिंग मंदिर का ढांचा भी खतरे में पड़ने के भय की वजह से भी कोई खुलकर सामने नहीं आता है। इतिहास में झांक कर देखें तो जब भी मूलस्वरूप और गर्भगृह तक पहुंचने की कोशिश की गई विरोध के कारण उसे बंद करना पड़ा।

कलेक्टर विशेष गढ़पाले ने भगवान के मूलस्वरूप तक पहुंचने के लिए दिल्ली के सर्वेक्षण आर्किटेक्ट के डायरेक्टर मनीष पंडित से थ्रीडी सर्वे करवाकर वास्तवितकता का पता लगाने का प्रयास किया। इसके लिए सर्वे के आधार पर दीवार को भेदा गया। यहां सफलता नहीं मिलने पर अन्य रणनीति पर काम करने के पहले ही विरोध के स्वर शुरू हो गए हैं। प्रशासन फिलहाल आधुनिक तकनीक की मदद से वास्तवितकता का पता लगाने की बात कह रहा है लेकिन शिवरात्रि और फिर लोकसभा चुनाव की व्यस्तता से इस मुहीम की सार्थकता कम लग रही है।
पुुुराने नंदीगण से 14 फीट दूर हो सकता है मूलस्वरूप
ओंकारेश्वर मंदिर और गर्भगृह को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। तीर्थनगरी के बुजुर्गों का कहना है कि जिस स्थान पर पुराना नंदीगण विराजमान था उससे करीब 24 फीट की दूरी पर भगवान भोलेनाथ का मूलस्वरूप मौजूद है। इस विषय में पुरातत्वविद भी इतिहास के आधार पर ओंकारेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पूर्व में विराजमान प्राचीन नंदीगण से 23 फीट 11 इंच की दूरी पर चांदीवाले दरवाजे के सामने स्थित दीवार में भगवान ओंकारेश्वर का वास्तविक स्वरूप शिव परिवार सहित 11 वर्ग फीट के कक्ष में विराजमान होने की संभावना जता चुके हैं।
यहां पहुंचने के लिए लगभग दस फीट सीढ़ियों से उतरना पड़ता था। बताया जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान ओंकारेश्वर के वास्तविक स्वरूप के दर्शन करने के बाद यात्री गुफा वाले भाग से बाहर निकलते थे। इससे स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में ओंकारेश्वर मंदिर में प्रवेश और निर्गम के दो अलग-अलग मार्गों की व्यवस्था थी। वर्तमान में भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद बाहर निकलने का जो रास्ता है इसका निर्माण मोरटक्का के रामकृष्ण शर्मा ने करवाया था। इसके पूर्व जिस रास्ते से दर्शन करने जाते थे उसी से वापस लौटना पड़ता था।
ऐसे पहुंच सकते हैं गर्भगृह तक
मंदिर के गर्भगृह तक दो माध्यमों से पहुंचकर वास्तविक स्वरूप का पता लगाया जा सकता है। तीर्थनगरी और मंदिर के संबंध में जानकारी रखने वाले बुजुर्गों ने बताया कि ओंकारेश्वर मंदिर दीवार के पीछे भगवान के वास्तविक स्वरूप का पता लगाने के लिए बगैर तोड़फोड़ किए भी पहुंच सकते हैं। इसके दो माध्यम हैं। कुछ वर्ष पहले मंदिर संस्थान द्वारा बनाए गए अभिषेक हॉल से लगी गुफा वाले मार्ग में जमा मलबे को बाहर निकालकर नीचे पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा मंदिर के चांदीवाले दरवाजे के ठीक सामने छेद बनाकर सूक्ष्म कैमरे की मदद से अंदर झांकने का प्रयास किया जा सकता है।
भूंकप से ढांचा कमजोर होने का अंदेशा
17वीं शताब्दी में ओंकारेश्वर में भूकंप आने से ओंकार पर्वत पर बने मंदिर क्षतिग्रस्त हुए थे। पुराने लोगों के अनुसार यह भी चर्चा सामने निकल कर आई है कि ओंकार पर्वत पर जो मंदिर बने हैं वह मंदिर 17वीं शताब्दी में आए भूकंप के कारण खस्ताहाल हुए हैं। इनमें से अधिकांश मंदिरों का जीर्णोद्धार नहीं हुआ है लेकिन भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मुख्य मंदिर होने के कारण पूर्व में राजा -महाराजाओं ने अनेक बार मंदिर के जीर्णोद्धार का काम करवाया है।
जानकारों का मानना है कि इस दौरान गर्भगृह के खंभे और दासे क्षतिग्रस्त या कमजोर होने से मुख्य मंदिर को बचाने के लिए गर्भगृह को मलबे से बंद कर दिया होगा। ओंकारेश्वर मंदिर का प्रामाणिक इतिहास और पुख्ता जानकारी नहीं होने से अधिकृत तौर पर कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऐसे में प्रशासन, मंदिर ट्रस्ट भी सर्वे और आधुनिक तकनीक के सहारे वास्तविकता जानने का प्रयास कर रहा है।
यह किंवदंती भी है प्रचलित
ओंकारेश्वर मंदिर को लेकर किदवंती है कि मुगल शासक औरंगजेब मध्य भारत क्षेत्र के हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दक्षिण भारत की ओर मोरटक्का मार्ग से नर्मदा नदी को पार करते हुए बुरहानपुर कूच करने वाला था। उस दौरान राजा-महाराजाओं और धार्मिक सूझबूझ वाले विद्वान, पंडित, पुजारियों द्वारा ओंकारेश्वर मंदिर के वास्तविक स्वरूप को सुरक्षित करने के लिए गर्भगृह वाली दीवार में बंद करने की किंवदंती है।
इस दौरान पुरातन शिल्पकला वाले 66 पत्थरों से निर्मित वर्तमान ओंकारेश्वर मंदिर के महाप्रसादम वाले भाग में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मूल स्वरूप शिवलिंग को स्थापित कर दिया ताकि यदि मुगल शासक अथवा उसकी सेना इस मंदिर में तोड़फोड़ भी कर दे और भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का वास्तविक स्वरूप वाला भाग सुरक्षित रह सके।
हालांकि यह भी प्रमाणित तथ्य है कि इस दौरान औरंगजेब अथवा उसकी सेना या उसका समूह ओंकारेश्वर नहीं आया। उस दौरान ओंकारेश्वर तीर्थ स्थान घने जंगलों वाला क्षेत्र रहा होगा। ओंकार पर्वत की ओर चारों तरफ मां नर्मदा का जल होने के कारण यहां तक पहुंचना संभव नहीं था इसी कारण औरंगजेब की सेना ओकारेश्वर नहीं पहुंची। तभी से भगवान का मूल स्वरूप मंदिर के दीवार के अंदर गर्भगृह में है। तत्कालीन राजा- महाराजाओं ने दोबारा निकालने की कोशिश भी नहीं की। जिस-जिस ने भी कोशिश की वे भारी विरोध के कारण भगवान का मूल स्वरूप वापस नहीं ला सके।