
झिरन्या (खरगोन, पुनीत पंवार)। सतपुड़ा के जंगलों में इन दिनों गोंद माफिया सक्रिय है। धावड़ा और सलाई के पेड़ों में अप्राकृतिक तरीके से रासायनिक इंजेक्शन लगाकर गोंद निकाला जा रहा है। इस प्रक्रिया में माफिया जंगल से जुड़े आदिवासियों का उपयोग कर रहे हैं। रासायनिक इंजेक्शन लगाने से इन पेड़ों को जहां पर्यावरणीय नुकसान हो रहा है, वहीं पेड़ निर्धारित क्षमता से अधिक गोंद उगल रहे हैं। यह गोंद सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
जंगलों में बारिश के सीजन के बाद धूप खिलने पर हर साल नवंबर से जून तक गोंद निकाला जाता है। महाराष्ट्र सीमावर्ती सतपुड़ा पर्वत के वनक्षेत्रों से लगे बड़वानी जिले के बरला, बलवाड़ी और खरगोन जिले के महादेव सिरवेल से लेकर सुलाबेड़ी सहित बुरहानपुर के असीरगढ़ तक फैले वन क्षेत्रों में गोंद निकाला जा रहा है। यह लगभग 60-70 किमी का लंबा इलाका है। जंगलों में 200 से अधिक श्रमिक को इस काम में लगाया गया है। केमिकल की मदद से निकलने वाला गोंद सामान्य गोंद से अधिक चमकदार होता है।
धावड़े का गोंद मंहगा
बहुउपयोगी धावड़े का गोंद 140 से 170 रुपए किलो श्रमिकों से खरीदा जाता है। यह खाने के काम आता है, जबकि सलाई गोंद के भाव उन्हें 90 से 110 रुपए प्रति किलो तक मिलते हैं। यह अगरबत्ती या गूगल बनाने के काम आता है। बाजार में गोंद का औसत भाव 500 से 1200 रुपए प्रति किलो है।
250 ग्राम की जगह एक किलो
गोंद निकालने में लगे हरसिंह और रघुनाथ ने बताया कि कारोबारी हमें केमिकल की शीशी दे जाते हैं। पेड़ों में गड्ढा कर केमिकल को इंजेक्शन से या सीधे डाल दिया जाता है। इसके दो से तीन दिन बाद पेड़ से गोंद निकलना शुरू हो जाता है। एक श्रमिक एक दिन में औसत 250 ग्राम गोंद निकाल सकता है, लेकिन इंजेक्शन लगने के बाद वह 1 किलो तक गोंद एकत्र कर लेता है। एक दिन में औसत एक से दो क्विंटल गोंद प्रतिदिन निकाला जा रहा है।

तीन साल की सजा, पांच लाख जुर्माना
विशेषज्ञों का कहना है कि सीमित मात्रा में प्लांट ग्रोथ रेगूलेटर का उपयोग किया जाए तो पौधों को अच्छी बढ़वार मिलती है। पेड़ों में इसका ज्यादा उपयोग नुकसानदेह हो सकता है। धावड़ा और सलाई के पेड़ों में यही स्थिति देखने को मिल रही है। गोंद तस्करी के लिए गैर जमानती धारा में तीन साल की सजा और पांच लाख रुपए जुर्माने का भी प्रावधान है।
पर्यावरण को खतरा
इंजेक्शन से गोंद निकालने से वन और पर्यावरण को खतरा पहुंचता है। महाराष्ट्र में इसको लेकर अन्य नियम होने की वजह से तस्करी रोकने में दिक्कत आती है-एमएन त्रिवेदी, वन मंडलाधिकारी, खरगोन
पर्यावरण के लिए ही नहीं मानव जीवन के लिए भी खतरा
इथिफोन रसायन के उपयोग से गोंद निकालने की कोशिश में 5-6 साल में वृक्ष नष्ट होने लगते हैं। यह प्रक्रिया असंवाहनीय एवं अप्राकृतिक है, इसलिए हो रही क्षति को रोकने के लिए एक जनवरी 2019 से गोंद निकालने पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह तरीका सिर्फ प्रकृति ही नहीं बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरा है। जो भी खाद्य वस्तुएं या सौंदर्य प्रसाधन बनते हैं, उसमें इस केमिकल का असर होता है। इस पर शोध भी किया जा रहा है- आर श्रीनिवास मूर्ति, सदस्य सचिव, जैव विविधता बोर्ड