खरगोन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शहर के मेला मैदान पर मियावाकी पद्धति से लगाए गए पौधे जंगल का रूप ले रहे हैं। यहां 22 जुलाई, 2019 को नवग्रह वाटिका में पौधारोपण किया गया था। तत्कालीन कलेक्टर गोपालचंद्र डाड ने इस पद्धति के तौर पर नगर पालिका से भूमि तैयार कराई। इस तकनीक को जिला प्रशासन ने एक आदर्शशील पौधारोपण के तौर पर देखा। इसके सफल होने के बाद जिले के अन्य स्थानों पर भी इसी तकनीक के साथ पौधारोपण करने की योजना बनाई। इसके बाद प्रशासन द्वारा जिले के विभिन्ना क्षेत्रों में पितृ पर्वत पर पौधारोपण की एक नवीन संकल्पना प्रारंभ हुई। सघन पौधारोपण के सामान्य तौर पर 5 वर्षों में वन का स्वरूप लेने लगता है, लेकिन मियावाकी पद्धति ऐसी से दो वर्ष में जंगल बनाएं जा सकते हैं। यहां लगाए गए 5 से 15 फीट के पौधे 30 से 50 फीट तक बड़े होकर फैलने लगे हैं। नवग्रह वाटिका के 4439 वर्ग फीट क्षेत्र में 15 हजार पौधे रोपे गए थे। इसमें खमेर, बरगद, पीपल, गुलमोहर, शीशम, अनार, जामुन, आम, नींबू, अर्जून, वॉटर पॉम, आंवला, अमलतास आदि शामिल है।
जापान की पद्धति
मियावाकी वनरोपण की एक नवीन पद्धति है, जिसका आविष्कार जापान के अकीरा मियावाकी वानस्पतिक शास्त्री ने की थी। इसमें पौधारोपण के लिए उपयुक्त मिट्टी के बेड तैयार कर निश्चित आकार में गड्ढे कर पौधे के पनपने की ऊंचाई के अनुसार पौधारोपण किया जाता है। इस पद्धति में दस गुना तेजी से पौधे बढ़ते हैं। इस पद्धति से पौधारोपण करने का फायदा यह है कि बहुत कम समय में पौधों को जंगल और जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस पद्धति से घरों से आगे अथवा खाली पड़े स्थान को छोटे बागानों में बदलकर वनीकरण किया जा सकता है। पौधों की सघनता के कारण सूर्य की रोशनी को धरती पर आने से रोकते है, जिससे धरती पर खरपतवार नहीं उग पाता है। इसके अलावा तीन वर्ष बाद इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं होती।