Kargil Vijay Diwas : किशोर ग्वाला, मंदसौर (नईदुनिया)। पाकिस्तान के धोखेबाजी से शुरू हुई कारगिल की लड़ाई 40 दिन तक चली थी... समझौते के बावजूद पाकिस्तान ने हिंदुस्तान की जमीन पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आतंकवादी हमारे बंकरों में बैठ गए थे। जंग छिड़ने के शुरूआती तीन-चार दिन तो कुछ भी पता नहीं रहा। खाना-पीना भूलकर हम मिशन पर डटे रहे। चारों तरफ से गोलियां बरस रही थीं। उस समय न खुद का ध्यान था और न ही परिवार की याद आई। सिर्फ भारतमाता की रक्षा करना है... यह लक्ष्य याद था। हमारी घातक प्लाटून में 22 कंमाडो थे। हमारी तैनाती पुंज क्षेत्र में थी। मैं सबको लीड कर रहा था। मैं रॉकेट लांचर का फॉयरर था।
कंधे पर भारी-भरकम रॉकेट लांचर लादकर खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ना और निशाना लगाकर पाकिस्तानियों के बंकर पर रॉकेट दागने का काम मेरे जिम्मे था। मैंने और मेरी कमांडों टीम ने मिलकर दुश्मनों के कई बंकर उड़ा दिए। ऐसी जंग जीती है कि पाकिस्तान को घुटने टेकना पड़े। राजपूत रेजीमेंट के घातक प्लाटून में कमांडर रहे मंदसौर के गांव गुर्जर बर्डिया के दशरथसिंह गुर्जर के लिए यह सब आज भी कल बात है।
अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन उनकी स्मृतियों से एक भी घटना धुंधली नहीं हुई है। वे कहते हैं, 'मेरी पूरी कंपनी अदम्य साहस के साथ लड़ रही थी। कोई साथी थकान होने पर पांच-दस मिनट चट्टानों के पीछे सिर रखकर आराम करता और कुछ ही देर में फिर अपने मिशन पर जुट जाता। हमें सामने सिर्फ दुश्मन दिख रहे थे और कारगिल विजय का लक्ष्य। इसके अलावा कुछ भी याद नहीं था। हम अपने लक्ष्य में कामयाब हो गए। शुरुआत में तो चार दिन तक हमने भोजन तक नहीं किया और युद्ध लड़ते रहे। मैं अच्छा लांचर फायरर था। हमने पाकिस्तानी सेना व आतंकवादियों द्वारा बनाए गए बंकर भी ध्वस्त किए।
विशेष सेवा पदक सहित कई अवॉर्ड मिले, परिवार के आठ सदस्य सेना में
दशरथसिंह गुर्जर को भारत सरकार द्वारा कारगिल युद्ध के लिए, आर्मी विशेष सेवा के लिए, लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर में कार्य करने, विशेष सेवा मेडल, गुड सर्विस का अवॉर्ड दिया गया है। गुर्जर के परिवार के आठ सदस्य सेना में हैं। गुर्जर 31 मार्च 2010 को रिटायर्ड हुए थे। अभी पिपलियामंडी स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में सुरक्षा गार्ड हैं।