आलोक शर्मा, मंदसौर। स्वतंत्रता संग्राम में मालवा का जिक्र हो और उसमें मंदसौर का नाम नहीं हो तो इतिहास अधूरा ही लगता है। मंदसौर का किला भी अति प्राचीन रहा है और इस पर कब्जे के लिए अंग्रेजों का मुगलों से संघर्ष हुआ था। मुगल वंश के शहजादा फिरोज व उनकी सेना ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को पराजित कर दो अंग्रेज अधिकारियों के सिर काटकर मंदसौर किले के पश्चिमी द्वार पर टांग दिए थे। उसके बाद किले के इस द्वार का नाम मुंडी गेट हो गया और आज यह अपभ्रंश होकर मंडी गेट कहलाता है। बाद में अंग्रेजों ने भी पूरी ताकत से हमला कर फिर यहां कब्जा किया और देशभक्तों को इसी दरवाजे पर फांसी पर लटका दिया था।
मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर है और यहां का इतिहास भी काफी पुराना है। मंदसौर पर मराठा, मुगलों, खिलजी का शासन रहा है। किले का निर्माण हुशंगशाह गौरी ने 1400 ईस्वी में कराया था। तभी से इस पर मराठा शासकों में होल्करों व सिंधिया का शासन रहा था। 1818 में मल्हारराव होल्कर द्वितीय के सेनापति तांतिया जोग व अंग्रेज अधिकारी सर जान माल्कम के बीच इसी दुर्ग में इतिहास प्रसिद्ध संधि भी हुई थी। उसके बाद से अंग्रेजों के अधीनस्थ सिंधिया वंश का यहां शासन रहा।
इतिहासविद् कैलाश पांडेय ने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय सिंधिया वंश के शासकों से यह किला मुगल वंश के शहजादे फिरोज ने अपनी सेना के साथ हमला कर कब्जा कर लिया था। इसी दुर्ग में 26 अगस्त 1857 को उसका राज्यारोहण भी किया गया था। तब नीमच में छावनी से अंग्रेजों की सेना ने किले को वापस अपने कब्जे में लेने की तैयारी की। जीरन के पास शहजादा फिरोज व अंग्रेजों की सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी जीत शहजादे फिरोज की सेना की हुई।
अंग्रेजों को पराजित कर उनकी सेना के दो अधिकारी कैप्टन रीड व कैप्टन टकर को पकड़कर शहजादे की सेना ने सिर को धड़ से अलग कर उनके सिर किले के पश्चिमी दरवाजे पर टांग दिए। तभी से इस दरवाजे को मुंडी गेट कहा जाने लगा। हालांकि इसके बाद फिर अंग्रेजों ने हमला किया और 92 दिन के शासन के बाद शहजादे फिरोज की सेना को फिर पराजित कर बाहर निकाला दिया। अपने अफसरों की मुंडिया किले के दरवाजे के सामने टांगने से नाराज अंग्रेजों ने यहां युद्ध में पकड़े गए क्रांतिकारियों को इसी दरवाजे पर फांसी पर लटका दिया।
क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने भूना था, नाम हो गया भुन्याखेड़ी
इसी प्रकार शहजादे फिरोज की सेना की अंग्रेजों से भिड़ंत का ही एक और किस्सा है। मंदसौर से हारने के बाद नीमच की तरफ भागते समय वर्तमान में कृषि उपज मंडी से थोड़ा आगे महू-नीमच राजमार्ग से सटे ग्राम भुन्याखेड़ी के यहां शहजादे फिरोज के साथ बचे- खुचे क्रांतिकारियों को दोनों तरफ से अंग्रेजों की सेना ने घेर लिया। यहां क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने बड़ी बेरहमी से गोलियों से भून दिया। उसके बाद से इस जगह का नाम भून्याखेड़ी हो गया। जो आज भी प्रचलित है। बाद में यहां एक शहीद पार्क भी बनाया गया था जो अब पूरी तरह उजाड़ हो गया है।