नईदुनिया प्रतिनिधि, मंदसौर। लाखों लोगों में से एकाध को होने वाली जीबीएस के 10 मरीज मिलने के बाद अब जानलेवा स्क्रब टाइफस के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। अभी तक चार-पांच गांवों में 43 मरीज मिलने से स्वास्थ्य अमला हरकत में आ गया है। जो छह साल पहले मिले मरीजों से कही ज्यादा है। मानसून के सीजन में बीमारियां थमने का नाम नहीं ले रही है। सरकारी आंकड़ों की ही बात करें तो अब तक बड़वन, कचनारा, लसूडि़या इला हरिपुरा में मिलाकर स्क्रब टाइफस के 43 मरीज मिल चुके हैं।
खेतों व अंचल क्षेत्रों के घरों में चूहों की अधिकता रहती है। चूहों पर रहने वाले परजीवी पिस्सू के काटने से बीमारी होती है। अभी मिले मरीजों के घरों के आस-पास सर्वे करने के साथ ही स्वास्थ्य अमला इनकी ट्रैवल हिस्ट्री भी खंगाल रहा है। जिले में वर्ष 2017 में पहली बार बीमारी के लक्षण मरीजों में मिले थे। तब से साल-दर-साल मरीजों की संख्या बढ़ रही है। 2019 में 28 गांवों में 53 मरीज मिले थे।
जीबीएस के 10 मरीज मिले हैं। इसमें 6 मुल्तानपुरा में हैं। शेष भूनियाखेड़ी, बापू नगर मंदसौर के हैं। सीएमएचओ डॉ. जीएस चौहान ने बताया कि प्रभावित क्षेत्रों में लगातार सर्वे किया जा रहा है, साथ ही टीमें डोर-टू-डोर मानिटरिंग कर रही है। स्थिति नियंत्रण में है।
जिले में 2017 में पहली बार स्क्रब टाइफस बीमारी के मरीज मिले थे। इसके बाद 2019 में 28 गांवों में 53 मरीज सामने आए थे। इसके बाद भोपाल से स्वास्थ्य विभाग का अमला पहुंचा था। टीम ने जिले के चिकित्सकों ने मुलाकात कर बीमारी से जुड़े लक्षण और बचाव के तरीके बताए थे। कोरोना काल में बीमारी का असर कम था। एक साल में एक मरीज मिला था। इसके बाद अब छह साल बाद मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। लोग भी इस बीमारी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं।
एपेडेमियोलाजिस्ट डा. शुभम सिलावट ने बताया कि स्क्रब टाइफस पिस्सुओं के काटने से होती है। पिस्सू चूहे पर रहने वाला परजीवी है। यह चूहों के माध्यम से घरों में पहुंचते हैं। इनके काटते ही ही लार में मौजूद जीवाणु (रिक्टिशिया सुसुगामुशी) रक्त में फैल जाता है। इसकी वजह से लीवर, दिमाग व फेफड़ों में कई तरह के संक्रमण होने लगते हैं। पिस्सू काटने के दो हफ्ते में तेज बुखार आता है। सिर दर्द और कमजोरी आने लगती है। उपचार नहीं मिलने पर लीवर व किडनी ठीक से काम नहीं करते हैं।
मरीज बेहोशी की हालत में चला जाता है। इसकी पहचान काटने का निशान देखकर की जाती है। ब्लड के जरिए सीबीसी काउंट व फंक्शनिंग टेस्ट करते हैं। लक्षण पाए जाने पर चिकित्सक को दिखाएं और दवाएं समय पर लें। लिक्विड डाइट व उबला खाना खाएं।