मंदसौर। श्रीमद भागवत कथा में धर्म के चार स्तंभ सत्य, तप, पवित्रता एवं दान बताए गए हैं। कलयुग में इन्हीं चार स्तंभों पर धर्म टिका हुआ है। हमें इन पर अडिग रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिएं। वहीं चार स्थान जुआंघर, मदिरालय, वैश्यालय एवं कसाईखाना यह पापकर्म बढ़ाते हैं। मनुष्यों को इन चारों स्थानों पर जाने से बचना चाहिए। जो भी प्राणी भगवान कृष्ण की शरण में आता है वह कभी पराजित नहीं होता हैं। महाभारत के युद्ध में कौरवों के पास अधिक सेनाएं थी लेकिन पांडवों को कृष्ण की शरण मिलने के कारण वे युद्ध जीते। जब द्रोपदी ने खुद को श्रीकृष्ण के भरोसे छोड़ दिया तो भगवान ने उसके शील की रक्षा की।
यह बात भागवताचार्य पं. देवेंद्र शास्त्री धारियाखेड़ी ने कही। वे माहेश्वरी धर्मशाला में श्री नारायण भक्ति संघ द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में सोमवार को व्यास पीठ से कथा का श्रवण करा रहे थे। उन्होंने कथा के द्वितीय दिवस राजा परीक्षित, भगवान सुखदेवजी महाराज का जीवन परिचय एवं महाभारत के युद्ध के उपरांत हुए घटनाक्रम की पूरी कथा श्रवण कराई। उन्होंने कहा कि गुरू वह है जो शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं। गुरू वह है जो शिष्य को भक्ति के मार्ग से जोड़ें। राजा परीक्षित को यह ज्ञात हुआ कि सात दिन बाद तक्षक नाग के डसने से मृत्यु होगी तो वह भगवान वेदव्यासजी व भगवान सुखदेवजी के चरणों में पहुंचे और मृत्यु के भय को दूर कर श्रीमद् भागवत के 18 हजार श्लोक वाली भागवतजी की कथा का अमृतपान किया। जो भी व्यक्ति अहंकार में आकर संतों एवं ज्ञानीजनों का अनादर करता है उसे जीवन में दुख ही उठाना पड़ता है। हम जीवन में दुख आने पर प्रभु की शरण में जाते हैं। सुख में स्मरण करना भूल जाते हैं। हमें जीवन में सुख के अवसरों पर भी इश्वर को नहीं भूलना चाहिए। कथा शुभारंभ पर महेशचंद्र शर्मा व अशोक शर्मा परिवार ने भागवत पौथी का पूजन कर आरती की। कथा के शुभारंभ पर संचालन ब्रजेश जोशी व सायंकाल संचालन नरेंद्र त्रिवेदी ने किया।
ज्ञान और भक्ति दोनों प्रदान करने वाला अमृत है श्रीमद भागवत
मंदसौर। माहेश्वरी धर्मशाला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में भानपुरा पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंदजी तीर्थ का आगमन हुआ। शंकराचार्यजी ने श्रीमद् भागवत पौथी का पूजन कर व्यासपीठ पर विराजित पं. देवेन्द्र शास्त्री का स्वागत कर आशीर्वाद दिया। शंकराचार्यजी ने कहा कि ज्ञान व भक्ति दोनों इश्वर की प्राप्ति के साधन है। श्रीमद् भागवत ज्ञान व भक्ति दोनों को प्रदान करने वाला अमृत है जो भी इसका रसपान करता है उसे ईश्वर की शरण मिलती है। जो पदार्थ सेवन करने व गृहण करने योग्य है उसे ग्रहण करें जो पदार्थ छोड़ने योग्य है उसका त्याग करें। तभी जीवन में खुशहाली आएगी। शराब का सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है इसलिए इसका सेवन कदापि नहीं करें। जब से हम प्रकृति से दूर हुए है हमारी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ी है। मिटटी, लकड़ी, तांबे, पीतल के बर्तनों से घर भरा रहता था लेकिन इनका स्थान स्टील के बर्तनों ने ले लिया है। इस कारण भी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ी है। शरीर के बाहरी आवरण को स्वस्थ करने के बजाय अंदर की पवित्रता को साफ रखे। अर्थात शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दें। आयोजन समिति व यजमान परिवार द्वारा शंकराचार्य का स्वागत कर बालाजी का चित्र भेंट किया गया।