हर्षल गहलोत, नईदुनिया, महू (इंदौर) Ambedkar Jayanti 2025 । डॉ. भीमराव आंबेडकर के बारे में विश्व जानता है, परंतु उनकी मृत्यु के बाद तक भी उनके जन्म स्थान के बारे में कोई नहीं जानता था। 1956 में उनकी मृत्यु के 14 साल बाद 1970 में भंते धर्मशील ने जन्मस्थान की खोज शुरू की थी। बाद में महू में स्मारक बनवाने के लिए प्रयास भी किए।
डॉ. आंबेडकर का जन्म(Babasaheb Ambedkar Birthplace) से ही महू से नाता रहा है। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ने पुणे में पंतोजी स्कूल में शिक्षा पूरी की। शिक्षा पूरी करने के बाद सेना में शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया और बाद में स्कूल में शिक्षक बन गए। उन्हें प्राचार्य के पद पर पदोन्नत किया गया। इसके 14 साल बाद उन्हें मेजर (सूबेदार) के रूप में सेना में पदोन्नत किया गया।
महू युद्ध का सैन्य मुख्यालय था, इसलिए वे बाद में महू में नौकरी के लिए रुक गए। 14 अप्रैल 1891 को महू के काली पलटन क्षेत्र में भीमाबाई और रामजी बाबा के यहां पुत्र हुआ, जो आगे चलकर बाबा साहेब आंबेडकर नाम से प्रसिद्ध हुआ।
छूआछूत की कुरीति को समाप्त करने, समाज के हर व्यक्ति को समान अधिकार दिलाने, भारतीय संविधान का गठन और सामूहिक बौद्ध धम्म दीक्षा व अन्य गतिविधियों के कारण डॉ. आंबेडकर को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में पहचान मिली। इसके साथ ही महू को भी अपना महत्व प्राप्त हुआ।
आंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के सचिव राजेश वानखेड़े ने बताया कि डा. आंबेडकर की जन्मभूमि को लेकर लंबे समय तक मतभेद रहा। कुछ लोग महाराष्ट्र के रत्नागिरि को उनका जन्मस्थान मानते थे तो वहीं कुछ लोग मध्य प्रदेश के महू को।
भंते धर्मशील ने डॉ. आंबेडकर के जन्म स्थान की खोज में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 1970 से बाबासाहेब के जन्मस्थान की खोज शुरू की। उन्होंने महाराष्ट्र के हर हिस्से में जांच की पर जन्म से जुड़ा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। शोध करते करने पर उन्हें पता चला कि डॉ. आंबेडकर के पिता रामजी सकपाल सेना में सूबेदार थे। महू में भी उनकी पदस्थापना थी।
उन्होंने महू में वह बैरक ढूंढ निकाला, जहां रामजी सकपाल रहते थे। उस बैरक में बाबा साहब के जन्म के प्रमाण मिले। बैरक 22,500 वर्ग फुट का था। जन्म स्थान को असली पहचान दिलाने के लिए स्मारक बनाने की योजना बनाई।
स्मारक बनाने के लिए भंते धर्मशील ने डॉ. आंबेडकर मेमोरियल सोसायटी का गठन किया। जमीन हासिल करने के लिए आर्मी और सरकार से लंबे समय तक पत्राचार किया। कई सालों के संघर्ष के बाद 1976 में सोसायाटी को 22 हजार 500 फुट जमीन मिली। 14 अप्रैल 1991 को डॉ. आंबेडकर की 100वीं जयंती पर तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने जन्मस्थल पर स्मारक की आधारशिला रखी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता भंते धर्मशील ने की थी। उसी वर्ष राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, कांशीराम और मायावती सहित देश के कई दिग्गज नेता महू पहुंचे थे। इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने आगे भव्य स्मारक का निर्माण किया। इसका लोकार्पण पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य नेताओं ने 14 अप्रैल 2008 को किया था।