
नईदुनिया प्रतिनिधि, मुरैनाः जिले में आंगनबाड़ी भवन मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। 720 आंगनबाड़ी केंद्रों के पास भवन तक नहीं है। इनमें से अधिकांश किराए के छोटे-छोटे कमरों में चल रहे हैं।
वहीं कई आंगनबाड़ी केंद्र पेड़ों के नीचे, मंदिर परिसर या फिर अन्य खुले स्थानों में चल रहे हैं। जिले में 160 आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं जिनमें शौचालय तक नहीं।
ग्वालियर-चंबल संभाग में श्योपुर के बाद मुरैना जिला ही कुपोषण के लिए संवेदनशील माना जाता है। इसीलिए मुरैना में कुपोषण के खात्मे के लिए 2607 आंगनबाड़ी केन्द्र चलाए जा रहे हैं, लेकिन सुविधाओं के मामले में मुरैना जिले में तो आंगनबाड़ी केन्द्र खुद ही कुपोषित हैं। 2607 आंगनबाड़ियों में से 720 आंगनबाड़ी भवन विहीन हैं, जो किराए के भवनों में चल रही हैं।
कैलारस, सबलगढ़, जौरा और पहाड़गढ़ के दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में तो सैकड़ों आंगनबाड़ी पेड़ाें के नीचे, मंदिरों के आंगन या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर चलते नजर आते हैंं। सरकार ने बीते साल 60 आंगनबाड़ी भवनों के लिए राशि दी, इन भवनों का निर्माण चल रहा है।
इस साल एक भी भवन के लिए सरकार ने पैसा नहीं दिया। 185 आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालय नहीं होने से केवल बच्चे ही नहीं बल्कि कार्यकर्ता व सहायिकाएं भी परेशानी से जूझ रही हैं।
जिले में 1800 से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं, जहां बिजली कनेक्शन ही नहीं है। महिला एवं बाल विकास विभाग हर आंगनबाड़ी का बिजली बिल जमा करता है, लेकिन 2607 में से 1800 से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं, जिनके बिजली बिल ही जमा नहीं किए जाते, क्योंकि इन केंद्रों पर बिजली कनेक्शन ही नहीं है।
गर्मियों में इन केंद्रों पर सन्नाटा रहता है। कई आंगनबाड़ी केंद्रों में पीएचई ने टंकियां बनाई हैं, लेकिन उनमें पानी भरने की सुविधा नहीं है। जिले में 1000 से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्यास बुझाने के लिए हैंडपंप लगे हुए हैं।17 आंगनबाड़ी ऐसी भी हैं जहां पीने का पानी कुओं से खींचना पड़ता है।
लगभग 720 आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवनों में चल रहे हैं, इनके लिए हमने शासन से बजट मांगा है। पिछले सत्र में 60 भवन मिले, उनका निर्माण चल रहा है, अभी हैंडओवर नहीं हुए।
-ओपी पाण्डेय, डीपीओ, महिला एवं बाल विकास विभाग मुरैना