मुरैना। नईदुनिया प्रतिनिधि
पुलिस लाइन मंदिर में चल रही श्रीमद भागवत कथा में तृतीय दिवस की कथा में पंडित अवधबिहारी शास्त्री ने महर्षी कर्दम और देवहूति के विवाह की कथा सुनाई इसके अलावा उन्होंने देवहूति से नव भक्ति स्वरूपा नव कन्याओं के जन्म और उनके विवाह की कथा, देवहूति के सांख्यशास्त्र-अष्टांगयोग आदि की कथा, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, पृथु चरित्र, प्रियवृत, भरत व जड़ भरत, नार्को की कथा, अजामिल, नारद को दक्ष के श्राप की कथा, विश्वरूप, वृत्तासुर के वध की कथा, राजा चित्रकेतु की कथा, भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाई।
कथा में श्री शास्त्री जी ने ध्रुव चरित्र की चर्चा करते हुए कहा कि ध्रुव ने भगवान को पाकर भी सबसे उच्च स्थान ध्रुवलोक ही क्यों मांगा। इसका रहस्य बताते हुए बताया कि विष्णु पुराण में कथा आती है कि ध्रुव पूर्व जन्म में एक ब्राहण बालक था। बचपन में एक राजकुमार से इसकी मित्रता हो गई थी। जब राजकुमार इनके यहां मिलने आता था, तब बढ़े ठाट वाट से आता था। अपने मित्र के ऐसे ठाट-बाट को जब ध्रुव देखते थे, तब उन्हें लगता था कि अगर मैं भी राजकुमार होता तो इस प्रकार से मैं भी ठाट-बाट से रहता। इस प्रकार के अपने मित्र के ठाट से प्रभावित होकर उन्होंने नदी के जल में आकंठ होकर दस हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। भगवान उनकी तपस्या से प्रशन्ना होकर, उनके सामने प्रकट हो गए और कहा कि हे भक्त वर मांगों। तब उन्होंने कहा कि हे नाथ यदि आप मुझसे प्रशन्ना हैं तो आप मुझे ऐसा उच्च पद दे दो जो कि आज तक किसी ने लिया। तब भगवान ने कहा कि हे भक्त मैं तुम्हें ऐसा ही उच्च पद देता हूं। भगवान ने कहा कि अगले जन्म में तुम उत्तानपाद राजा के पुत्र बनोंगे। तब तुम्हारी यह मनोकामना पूर्ण होगी। इस समय वही ब्राह्मण बालक उत्तानपाद राजा का पुत्र बना और अपनी तपस्या से परमात्मा को पा लिया। भगवान की कृपा से ध्रुव को ध्रुव लोक प्राप्त हुआ। इसलिए तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि बाद में ध्रुव पछताते हैं कि परमात्मा को भी पाकर मैनें उनसे क्या मांग लिया।
फोटो- 13ए- कथा वाचन करते हुए कथा व्यास