तेंदूखेड़ा (नईदुनिया न्यूज)। क्षेत्र में एक भी कोई बड़ी नदी या जल स्रोत नहीं है।आस पास के पहाड़ी क्षेत्रों से जरुर कुछ मौसमी नदियां हैं। जिनमें केवल बरसात के बाद से दो तीन माह ही पानी रह पाता है।जो गर्मी आने के पूर्व ही सूख जाती हैं। इन नदियों का उचित तरीके से संरक्षण नहीं हो रहा है। जिससे कई नदियों का स्वरूप नालों जैसा होता जा रहा है।गर्मी में बरांझ, सिंदूर और पांणाझिर नदी तो सूख ही गई है।
क्षेत्र में मुख्य रूप से उत्तराखंड में बरांझ,सिंदूर और पांडाझिर नदी ही बहती है जो अब सूख गई हैं। इनमें केवल फरवरी माह तक ही पानी ठहर पाता है।बाकी खरीफ मौसम की फसलों के बाद से बोनी के समय ही पलेवा के समय इन नदियों से सिंचाई के लिए पानी लिए जाने से नदियां सूख जातीं हैं।नदियों किनारे ईंट भट्टे लगाने वाले भी न केवल मिट्टी बल्कि पानी का दोहन भी करते हैं। जिससे इन नदियों का स्वरूप बिगड़ चुका है।
नदियों से जुड़े हैं यह गांवः बरांझ नदी क्षेत्र के ग्राम रमपुरा, खमरिया, कठोतिया, इमझिरा, काचरकोना, ईश्वरपुर, टेकापार, गंगई, भामा होते हुए आगे निकल जाती है। लेकिन जहां तहां से हो रहे मिट्टी के कटाव और अवैधानिक तरीके से दोहन से इसका स्वरूप भी बिगड़ गया है। जिले की सीमा से लगी हुई सिंदूर नदी रायसेन जिले के डोंगरा मदनपुर होते हुए आगे इटुआ टपरियों गांव से होकर आगे निकल जाती है। वर्तमान में अनेक स्थानों पर पानी भरा होने के साथ इसमें मगरों का एक झुंड देखा जाता है। इसलिए इस नदी के पास बहुत ही कम लोग पहुंच पाते हैं। यह नदी भी अवैध खनन से खराब हो रही है। पाणाझिर नदी मुख्य रुप से विलहरा, मानकपुर, गुटोरी, बरकुंडा होती हुई डोभी तरफ से आगे निकल जाती है। इन नदियों का उचित तरीके से संरक्षण नहीं हो रहा है।नदियों का गहरीकरण कराने के साथ ही सफाई जरूरी है।
स्टाप डेमों की जरूरतःइन नदियों पर स्टापडेम न बनने से पानी का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। बरसात का पानी व्यर्थ बह जाता है।ग्रामीण लंबे समय से स्टापडेम बनाने की मांग कर रहे हैं।विधानसभा में भी विधायक द्वारा यह विषय प्रमुखता से उठाया गया। लेकिन शासन प्रशासन के उपेक्षित नजरियें से आज पानी को लेकर गंभीर हालात बने हुए है।