नरसिंहपुर जिला एक कृषि प्रधान जिला है। जो जबलपुर संभाग में आता है। यहां रबी व खरीफ की अन्य फसलों की तुलना में दलहन व गन्ने का उत्पादन सर्वाधिक होता है। बरमान में नर्मदा की तलहटी में होने वाले बैगन जिसे स्थानीय भाषा में भटा कहा जाता है अपने स्वाद और खासियत के लिए प्रसिद्ध हैं। जिले में किसान अंतरवर्ती व जैविक खेती भी करते हैं। नरसिंहपुर जिला मुख्यालय का प्राचीन भगवान नरसिंह का मंदिर जो जिले की पहचान कहा जाता है, यह मंदिर जाट सरदारों ने बनवाया था।
एक नवंबर 1956 को नरसिंहपुर जिला बना। वर्ष 2011 की जनगणना में जिले की कुल आबादी 1092141 थी । दो अगस्त 2023 के अनुसार जिले में जिले में 829592 मतदाता हैं। नरसिंहपुर, गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा चार विधानसभा हैं। जबकि यह जिला नर्मदापुरम व मंडला संसदीय क्षेत्र में शामिल है। जिले में छह तहसील, छह विकासखंड व 446 ग्राम पंचायत हैं।
नरसिंहपुर जिला पड़ोसी सात जिलो नर्मदापुरम, छिंदवाड़ा, सागर, रायसेन, जबलपुर व दमोह जिले से जुड़ा है। जिले में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग मुंगवानी-नरसिंहपुर सागर हाइवे क्रमांक 44, भोपाल-जबलपुर हाइवे क्रमांक 45 व नरसिंहपुर-छिंदवाड़ा हाइवे क्रमांक 26 बी है जबकि स्टेट हाइवे क्रमांक 22 जबलपुर-पिपरिया है। यह जिला रेल मार्ग से जुड़ा है, तीन रेलवे स्टेशन अमृत भारत योजना में शामिल हैं।
भगवान आदिगुरु शंकराचार्य की नर्मदा के सांकलघाट हीरापुर में तपोस्थली मानी जाती है। ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती की गोटेगांव के झौंतेश्वर परमहंसी में तप व समाधि स्थली है। धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में जिले की खासी पहचान है। आचार्य रजनीश ओशो की क्रीड़ा व शिक्षा स्थली गाडरवारा में है। प्रसिद्ध साहित्यकार भवानीप्रसाद मिश्र की यह जिला कर्मभूमि हैं वहीं गांधीवादी पत्रकार अनुपम मिश्रा भी इसी जिले से थे। फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा की जन्मभूमि भी गाडरवारा है। नरसिंहपुर में प्राचीन नरसिंह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए ख्यात हैं। यह जाट सरदारों ने बनवाया था। नर्मदा के बरमान को भगवान ब्रह्मा की तपस्थली माना जाता है। यहां मकर संक्रांति पर हर वर्ष मेला प्राचीनकाल से लग रहा है। घाट पर कई प्राचीन मंदिर हैं । यहां बनी रानी कोठी को राजमाता विजयाराजे सिंधिया की कोठी कहा जाता है। जिले में कई प्राकृतिक-पर्यटन स्थल हैं। गाडरवारा गांगई में एनटीपीसी का पावर प्लांट है।
नरसिंहपुर जिला करीब पांच हजार वर्गकिमी क्षेत्र में फैला है जो उत्तर में विध्यांचल व दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियो से घिरा है। जिले में नर्मदा, शक्कर, सीतारेवा, शेढ़, माछा, सिंदूर, पाणाझिर, बरांझ, बारुरेवा, सींगरी आदि नदियां हैं। खेतो की सिंचाई के लिए नहरें हैं। जिले में पाषाण युग के जीवाश्म मिले थे। अन्य खोज अभियानों में यहां प्रागेतिहासिक अवशेष कई स्थानों से मिले। जनश्रुतियों में जिले को रामायण व महाभारत काल की घटनाओं से भी जोड़ा जाता है। नर्मदा के सतधारा में पांडव कुंड बने हैं। ग्राम बरहटा काे विराट नगरी माना जाता है। यहां कई पाषाण मूर्तियाे के अवशेष मिले थे। यहां कई जैन तीर्थंकरो की प्रतिमाएं भी है। स्वतंत्रता संग्राम में भी जिले के कई सेनानियों ने हिस्सा लिया। 1942 में यहां चीचली सत्याग्रह हुआ ।