
सरपंच ने कलेक्टर को अवगत कराया कि 10 अगस्त 2004 को राज्य मंडल ग्वालियर ने स्पष्ट आदेश जारी किया था, जिसमें यह भूमि शासन के पक्ष में घोषित की गई थी। आदेश में यह भी उल्लेख था कि 16 चौधरी समाज के लोगों द्वारा खरीदी गई भूमि सुरक्षित रहेगी, जबकि शेष भूमि शासनाधीन मानी जाएगी। इसके बावजूद दो दशकों में इस आदेश को पूरी तरह लागू नहीं किया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि भूमि से जुड़े कई खातों में वर्षों से गलत प्रविष्टियाँ दर्ज हैं, जिन्हें ठीक नहीं किया गया। न तो सीमांकन प्रक्रिया पूरी हुई और न ही विवादित भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में सही एंट्री की गई। ग्रामीण शिकायतें करते रहे लेकिन विभागीय अमला केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित रहा।
सरपंच चौधरी ने यह भी बताया कि कई भूखंडों को गलत रूप से अंतरित खातेदारी बताकर रोका गया, जबकि 2004 के आदेश में भूमि शासनाधीन दर्ज है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 2010, 2018 और 2019 में कलेक्टर कार्यालय और राजस्व विभाग ने कई बार अनुपालन के निर्देश जारी किए थे, जिनमें 08 मार्च 2018 और 11 अप्रैल 2018 के आदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। इन निर्देशों में रिकॉर्ड संशोधन के स्पष्ट आदेश थे, परंतु जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
यहाँ तक कि 14 मई 2018 को तहसील देवेंद्रनगर ने विस्तृत विवरणी भी जारी की, लेकिन न तो सत्यापन हुआ और न ही पात्र ग्रामीणों को पट्टे दिए गए। सरपंच का कहना है कि प्रशासन की इस लापरवाही के कारण ग्रामीण प्रधानमंत्री आवास, शौचालय, भूमि ऋण, फसल बीमा और अन्य पट्टा आधारित योजनाओं से वंचित हैं।
उन्होंने भावुक होकर कहा कि गलत अभिलेखों के कारण ग्रामीण न तो अपना घर बना पा रहे हैं और न ही अपनी जमीन का सही उपयोग कर पा रहे हैं। सरपंच चौधरी ने कलेक्टर से मांग की कि तुरंत आदेशों का पालन सुनिश्चित कर ग्रामीणों को उनका वैध स्वामित्व दिलाया जाए, अन्यथा यह उनके साथ अन्याय होगा।