अम्बुज माहेश्वरी, नईदुनिया, रायसेन। परमार कालीन मंदिरों की श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध आशापुरी में नृत्य करते श्री गणेश की दुर्लभ प्रतिमा हैं। स्मारक की खुदाई के दौरान यह प्रतिमा मिली थी। उसके बाद इसे आशापुरी के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह प्रतिमा परमारकालीन मूर्तिकला का अद्भुत उदाहरण है।
यह प्रतिमा एक ही पत्थर पर बनी हुई है, जिसमें चार भुजाएं हैं। हालांकि तीन भुजाएं खंडित हो चुकी हैं। मूर्ति के नीचे दोनों ओर एक बांसुरी वादक और एक ढोलक वादक की आकृति भी इसमें उकेरी गई है। मूर्ति के नीचे एक पुरुष और एक महिला जो हाथ जोड़कर स्तुति करते नजर आते हैं।
पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास बताते हैं कि परमार काल की मूर्ति विधा का यह एक उदाहरण है, जिसमें आध्यात्मिक संपूर्णता नजर आती है। इस तरह की प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ है। वे बताते हैं कि जब हम आनंद में होते हैं तो नृत्य करते हैं इसी तरह गणेश जी भी इस प्रतिमा में नृत्य करते दिख रहे हैं।
डॉ. व्यास का कहना है कि नृत्य करते हुए प्रसन्नचित मुद्रा में इस तरह की गणेश प्रतिमा कहीं देखने को नहीं मिलती है। यहां परमार कालीन मंदिरों की श्रृंखला में किसी मंदिर में यह स्थापित रही होगी। कलाकृति की विलक्षण यह प्रतिमा 15 साल पहले खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को आशापुरी गांव में मिली थी। आशापुरी में मंदिरों का निर्माण परमार काल में दसवीं सदी के मध्य से ग्यारहवीं सदी के अंत तक जारी रहा। परमार वंशजों ने भोजपुर और आशापुरी में कई निर्माण कार्य कराए थे।
रायसेन जिले की गौहरगंज तहसील का गांव आशापुरी प्रतिहार और परमार काल में मंदिर समूहों के निर्माण का गढ़ रहा है। करीब 1000 साल पहले यहां शुरू हुआ मंदिरों के निर्माण का सिलसिला लगातार 200 साल तक चला था। इस दौरान कई मंदिर बने। विश्व धरोहर भीमबैठका से करीब 32 किमी दूर स्थित आशापुरी में 15 साल पहले खुदाई के दौरान 26 जमींदोज मंदिरों के अवशेष मिले थे, जिन्हें पुरातत्वविदों ने करीब एक हजार साल पुराना बताया था, इन्हीं मंदिरों के साथ सैकड़ों प्रतिमाएं भी यहां खुदाई में निकली थी।