राजग़ढ। जिला मुख्यालय पर पहा़ड़ी पर करीब 550 साल पहले भील राजाओं द्वारा सिद्धपीठ मां जालपा जी की स्थापना की गई थी। उस समय उनके द्वारा ही पूजन अर्चना की जाती थी लेकिन बाद में यहां पर सेवा करने वाले बदलते रहे। सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर पर नवरात्र के दौरान हजारों की संख्या में भक्तों का सैलाब उमडता है।
जानकार लोग बताते हैं कि राजग़ढ पर पहले भील राजाओं का राज हुआ करता था। उनहीं के दौरान पहा़डी पर एक चबूतरे पर मातारानी की स्थापना की गई थी। तब से लेकर वर्ष वर्षांतरों तक पहा़डी पर चबूतरे पर मातारानी विराजमान रही।
बाद में यहां पर प्रशासन के सहयोग से मंदिर को ट्रस्ट घोषित किया गया। ट्रस्ट बनने के बाद मंदिर पर पहंचने के लिए स़डक मार्ग, सीढ़ियां आदि बनाई गई। इतना ही नहीं, मंदिर पर निर्माण होने के साथ ही पेयजल व सामुदायकि भवन आदि के इंतजाम किए।
वर्तमान में यहां पर नवरात्र के दौरान हजारों की संख्या में यहां दर्शन करने के लिए भक्तगण पहुंचते हैं। नवरात्र के दौरान छोटी-छोटी कन्याओं से लेकर मातृशक्ति व पुरूष भक्तगण पहुंचते हैं। यहां पर जिले ही नहीं बल्कि राजस्थान सहित दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
पांती रखने के साथ होते हैं विवाह
सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर की सिद्धि इतनी है कि जब भी किसी के शादी-विवाह के लिए मुहुर्त नहीं निकलते हैं तो मातारानी के दरबार में पांती रखने के साथ विवाह संपन्न किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां की पांती बिना किसी मुहूर्त का शुभ मुहूर्त होता है।
शादी करने के बाद जरूर दोनों पक्षों के लोग दूल्हा-दुल्हन सहित यहां मातारानी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इनके अलावा भी जिलेभर से शादियों के दौरान यहां दर्शन करने वालों की भी़ड लगी रहती है।
यहां पर भक्तों द्वारा अपने काम पूरे करवाने के लिए माता रानी के दरबार में स्वस्तिक बनाने के साथ ही पत्थरों के मकान भी बनाए जाते हैं। भक्तों द्वारा मंदिर की दीवारों पर हजारों की संख्या में स्वास्तिक बना रखे हैं। जबकि मंदिर के आसपास व पहा़ड़ी पर ब़डी संख्या में कार्य सिद्ध होने की मांग को लेकर स्वस्तिक भी बनाए जाते हैं।