राजगढ़/नरसिंहगढ़। अभी तक जिले केे किसान परंपरागत गेहूं की फसल की ही पैदावार करते थे। उसी गेहूं को बोकर उसका पैदावार देखकर किसान खुश होते थे, लेकिन जिले के एक युवा उन्नात किसान ने काले गेहूं के गुण जानकार न केवल खुद की जमीन पर काले काले गेहूं को बोया हैद्व बल्कि अन्य लोगों को भी जागरूक किया है। फिलहाल नरसिंहगढ़ क्षेत्र में 10 से अधिक किसानों ने इस काले गेहूं को अपनाया है।
नरसिंहगढ़ निवासी भगवतीशरण शर्मा मूल रूप से दवा कारोबारी है व खुद की जमीन भी है। जब उन्हें पता लगा कि विदिशा में काला गेहूं होता है व वह सेहत के लिए बेहद गुणकारी है, तो उसकी पैदावर करने व बीज तैयार करने के लिए भगवतीशरण विदिशा से बीज लेकर आए। बीज लाने के साथ ही उन्होंने शुरूआत में तीन बीघा जमीन पर उसको बो दिया, अब खेत में उक्त फसल लहलहा रही है। जब उन्होंने काला गेहूं बोने का निर्णय लिया तो उनसे प्रेरित होकर उनके संपर्क वाले करीब 10 अन्य स्थानों के किसानों ने भी इसकी खेती करना शुरू की है।
भाव में अधिक, पैदावार में उतरेगा कम
उक्त काला गेहूं परंपरागत गेहूं के मुकाबले पैदावार में कम निकलता है। बताया गया है कि यह प्रति बीघा पर करीब 10-12 क्विंटल उत्पादित होगा, जबकि परंपरागत गेहूं 15 से 20 क्विंटल तक पैदा होता है। लेकिन काले गेहूं की खासियत यह है कि वह 60 से लेकर 100 रुपये किलो तक बिकता है, जबकि परंपरागत गेहं 15 से लेकर 20 रुपये किलो तक ही बिक पाता है। फिलहाल जिले के आसपास शुजालपुर, भोपाल में इसकी बिक्री संभव है।
सेहत के लिए वरदान है काला गेहं
दवा कारोबारी व केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवतीरण बताते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार काले गेहूं में फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम, कार्ब्स जैसे जरूरी पौषक तत्व पाए जाते हैं, जो दिल की बीमारियों के साथ शरीर में ब्लड शुगर कम करने में अहम भूमिका निभाता है। साथ ही कब्ज, ह्रदय रोग, पेट के कैंसर, हाई ब्लड प्रेशर, एवं डायबिटीज में भी काले गेहूं का प्रयोग लाभकारी है। इसके उपयोग से नागरिकों का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। इसके पैदावार में कम से कम 4 पानी की जरूरत हर हाल में लगती है।
छह साल से जुड़े हैं खेती से
युवा उन्नात किसान भगवती शरण शर्मा बताते हैं कि वह विगत 6 वर्षों से खेती कर रहे हैं। हर बार प्रयास करते हैं कि कृषि में उन्नात तकनीक, मशीनें, एवं नवीन किस्म के बीजों का प्रयोग करें। हर वर्ष वह क्षेत्र के अन्य किसानों को भी उनके द्वारा उपयोग की जा रही तकनीकें एवं उन्नात बीज उपलब्ध करवाते हैं। इस वर्ष भी गेहूं की तेजस, पौषक एवं काला गेहूं (नाबी एमजी) की अधिक पैदावार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों के माध्यम से उन्नात खेती कर रहे हैं ।