नरसिंहगढ़। होली रंगों का त्योहार है। रंग केवल मनुष्य को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रकृति को यह संदेश देते हैं कि रंग-बिरंगी दुनिया बहुत सुंदर है। होली का पारंपरिक स्वरूप लौटने और जीवन में प्रकृति का महत्व समझने के उद्देश्य से बच्चों को जंगल भ्रमण कराया गया व उन्हें फूल, जंगल के महत्व को बताया गया।
आईआरई जंगल के संस्थापक पुनीत उपाध्याय द्वारा बच्चो को पलाश के पेड़ का विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि पलाश के फूल को टेसू का फूल भी कहा जाता है। पलाश वसंत ऋतु में खिलता है और ये तीन रंगों के होते है, सफेद, पीला और लाल-नांरगी। आयुर्वेद में पलाश के पेड़ को बहुत ही अहम् स्थान प्रदान किया गया है, क्योंकि पलाश के बहुगुणी होने के कारण इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पलाश के जड़, बीज, तना, फूल और फल का इस्तेमाल बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। पलाश के बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो उसको अमूल्य बना देता है। उन्होंने बच्चों को बताया कि पहले में दाल-बाफले बनाते वक्त पलाश के पत्तो का खास उपयोग होता था, जिसके कारण कोलेस्ट्रॉल नही होता था साथ ही हार्ट अटैक की संभावनाएं भी न्यूनतम हो जाती थी, मगर बदलते समाज और शिक्षा के कारण मानव केमिकल की दुनिया मे अपना जीवन बिता रहा है। पलाश के पेड़ का महत्व जानने के बाद सभी बच्चो ने होली के रंग बनाने हेतु पलाश के फूल एकत्रित किए। सभी बच्चो ने प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की प्रतिज्ञा ली। टेशू के फूलों से केशरिया, हल्दी से पीला, चुकुन्दर से लाल और गुलमोहर की पत्तियों से हरा रंग, चन्दन से भूरा रंग बना कर होली खेली जाएगी। आगे बताया कि समय के साथ होली का त्योहार फेमस होता गया और धीरे-धीरे प्राकृतिक रंग केमिकल बेस्ड सिंथेटिक रंगों से बदल गए. ये रंग प्राकृतिक रंगों की तुलना में सस्ते जरूर हैं, लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे में आप इन केमिकल युक्त रंगों की जगह पर नेचुरल रंगों से अपनी होली को स्पेशल और सेफ बना सकते हैं। जंगल की पाठशाला में अभय उपाध्याय, पलक सोलंकी, अंतिमा साहू, सिया गुप्ता, परी साहू, प्रियांशी नागर, सुधांशु नगर ,गिरराज साहू, शिवराज सिंह पवार आदि सम्मलित हुए।