रतलाम (नईदुनिया प्रतिनिधि)। रबी फसलों की अंतिम दौर की बोवनी चल रही है। जिले के कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बोवनी होना अभी बाकी है। इन क्षेत्रों के किसान विशेषकर देरी से बोवनी करने में गेहूं की प्रजाति का चयन कर कर सकते हैं। इसके अलावा जिन किसानों ने मटर की बोवनी की थी, वे फसल पककर तैयार हो गई है। लगभग एक सप्ताह में खेत खाली हो सकते हैं। इन खेतों में मटर उखाड़ने के बाद किसान देर से पकने वाली गेहूं की किस्मों की बोवनी करके अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
इस समय मौसम परिवर्तन व ठंड होने से भूमि में पर्याप्त नमी होने से गेहूं की देर से पकने वाली किस्मों जैसे जेडब्ल्यू 3288, जेडब्ल्यू 1202,1203, एमपी 4010, एचडी 2932 की बोवनी कर सकते हैं। गेहूं की प्रजातियों की बोवनी कम से कम चार से छह सेंटीमीटर गहराई पर की जाना चाहिए तथा दाना नमी में जा रहा है, इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। किसी भी कीमत में पर बीज के साथ उर्वरक मिश्रण नहीं किया जाए। यह सलाह देते हुए कृषि उपसंचालक जीएस मोहनिया ने बताया कि संतुलित उर्वरकों का उपयोग किया जाए। भूमि आम वर्षों की तुलना में इस वर्ष नमी पर्याप्त है, जिसका लाभ लेने से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। गेहूं में पहली सिंचाई किरीट अवस्था पर बहुत जरुरी है। जो फसलों का औसत उत्पादन बढ़ाती है। इस अवस्था में नमी की कमी नहीं होना चाहिए। 21 दिनों बाद सिंचाई देना सुनिश्चित करें। उपसंचालक ने बताया कि जिले में सहकारी समितियों एवं बीज निगम बन्नााखेड़ा जावरा में पर्याप्त मात्रा में गेहूं बीज उपलब्ध है।
पाले के प्रति ये फसलें संवेदनशाील
उत्तरभारत में बर्फबारी के बाद तापमान में कमी आई है। ऐसे मौसम में पाले का खतरा बढ़ जाता है। किसानों को फसलों के बचाव के लिए कृषि विभाग जरूरी जानकारी दे रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक एवं प्रभारी डॉ. सर्वेश त्रिपाठी ने बताया कि सायंकाल आसमान साफ हो, हवा शांत हो एवं तापमान में कमी के साथ गलावट बढ़ रही हो तो मान लें कि उस रात पाला पड़ने वाला है। पाले के प्रति संवेदनशील फसलों में आलू, मटर, टमाटर, सरसों, बैगन, अलसी, धनियां, जीरा, अरहर, शकरकंद तथा फलों में पपीता व आम शामिल है। पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्नाा आदि फसलें इसकी चपेट में आ जाती है।
बचाव के लिए यह उपाय
- सर्वप्रथम हल्की सिंचाई करें तथा रात 10 बजे के बाद खेत के उत्तर एवं पश्चिम दिशा की मेड़ों पर धुआं करें।
- सल्फर डस्ट 08 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।
- थायो यूरिया 15 ग्राम प्रति पंप (15 लीटर पानी) अथवा 150 ग्राम 150 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से खड़ी फसल पर छिड़काव करें।
- म्यूरियट आफ पोटैश 150 ग्राम प्रति पंप (15 लीटर पानी) अथवा 1.5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- तनु सल्फ्यूरिक अम्ल 15 मिली प्रति पंप (15 लीटर पानी) अथवा 150 मिली लीटर को 150 लीटर पानी में सावधानीपूर्वक घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें।
- पाले से बचाव हेतु ग्लूकोज का उपयोग अत्यंत प्रभावी उपाय है। खड़ी फसल पर 25 ग्राम ग्लूकोज प्रति पंप की दर से छिड़काव करें। यदि फसल पाले की चपेट में आ गई हो तो तुरंत 25 से 30 ग्राम ग्लूकोज प्रति पम्प (15 लीटर पानी) की दर से प्रभावित फसल प्रछेत्र पर छिड़काव कर दें ।
- जैविक नियंत्रण के लिए 500 मिली लीटर ताजा गोमूत्र अथवा 500 मिली लीटर गाय के दूध को प्रति पंप (15लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर पाले से पूर्व फसल पर छिड़काव करें ।
- स्थायी समाधान के लिए खेत के उत्तर-पश्चिम दिशा में वायुरोधक वृक्षों की बाड़ तैयार कर पाले के प्रभाव को कम किया जा सकता है।