रतलाम (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फसल अश्वगंधा की खेती कर किसान लागत से तीन गुना लाभ प्राप्त कर रहे हैं। जिले के पिपलौदा विकासखंड के 60 किसान 40 हेक्टयर में खेती कर रहे हैं। कोरोना काल में अश्वगंधा की मांग बढ़ गई है। इससे किसानों में भी उत्साह है।
चिपिया गांव के किसान देवीलाल पाटीदार बताते हैं कि 2018 से 2.5 हेक्टेयर में वे अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। एक हेक्टेयर में अस्सी हजार से एक लाख रुपये तक की लागत लगती है। एक हेक्टेयर में 12 क्विंटल जड़ और 15 क्विंटल पत्ता निकलता है। औसतन 30 हजार रुपये प्रति क्विंटल के मान से जड़ और 1500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से पत्ता नीमच मंडी में बिकता है। देवीलाल ने बताया कि एक हेक्टेयर में करीबन तीन लाख 88 हजार 500 रुपये की आमदनी होती है। उन्होंने बताया कि नीमच मंडी से ही 150 रुपये प्रति किलो की दर से बीज लेकर खेती शुरु की थी, जिससे अब इतनी आमदनी हो गई है कि आर्थिक तंगी दूर हो गई है। अन्य फसलों की अपेक्षा प्राकृतिक आपदा का खतरा भी इस पर कम होता है। अश्वगंधा की बोआई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना उपयुक्त माना जाता है।
अब बीज भी तैयार करेंगे
वर्तमान समय में पारंपरिक खेती में हो रहे नुकसान को देखते हुए अश्वगंधा की खेती शुरू की जो लाभदायक साबित हो रही है। देवीलाल ने बताया कि अभी तक उन्होंने अश्वगंधा की जड़ और पत्ती मंडी में बेचकर लाभ कमाया है। अब आगे कुछ बीज भी निकालेंगे।
उद्यानिकी विभाग के उपसंचालक पीएस कनेल ने बताया कि अश्वगंधा एक औषधि है। इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेअर पांच किलोग्राम व छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। जुलाई से सितंबर तक का समय उपयुक्त माना जाता है। रोपाई के समय इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि दो पौधों के बीच 8 से 10 सेमी की दूरी हो तथा पंक्तियों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी हो। बीज एक सेमी से ज्यादा गहराई पर न बोया जाए। नियमित समय से वर्षा होने पर फसल की सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती।
150 से 170 दिन में तैयार होती है फसल
बोई गई फसल को 25 से 30 दिन बाद हाथ से छांट देते हैं। इससे लगभग 60 पौधे प्रतिवर्ग मीटर यानी 6 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर अनुरक्षित हो जाते हैं। अश्वगंधा पर रोग व कीटों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। फसल 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है। पत्तियों का सूखना फलों का लाभ होना फसल की परिपक्वता का प्रमाण है। परिपक्व पौधे को उखाड़कर जड़ों को गुच्छे से दो सेमी ऊपर से काट लेते हैं, फिर इन्हें सुखाते हैं। फल को तोड़कर बीज को निकाल लिया जाता है। इस फसल में लागत से तीन गुना अधिक लाभ होता है।