जावरा। जैन समाज में पर्युषण महापर्व का अधिक महत्व है, क्योंकि यह पर्व धर्म, आराधना व तप का है। इसमें समाजजन तप आराधना करते हैं। भारतीय संस्कृति तप प्रधान संस्कृति रही है। तप जीवन को पावन करने का राजमार्ग है। यह बात महासती प्रियदर्शनाश्रीजी ने कहीं। वे बुधवार को जैन दिवाकर भवन पर पर्युषण पर्व के प्रथम दिन धर्मसभा में बोल रही थीं।
महासतीजी ने अंतगढ़र सूत्र का वाचन किया। इस दौरान 90 चरित्र आत्माओं का तप करके मोक्ष जाने का वर्णन करके व्याख्या की जिसके श्रवण मात्र से पाप कर्म के निर्जरा होती है। महासतीश्री प्रियदर्शनाश्रीजी ने कहा कि भारत का एक भी महात्मा ऐसा नहीं होगा जिन्होंने जीवन में तप नहीं किया हो। हमारे जिनशासन में छोटे से छोटा व बड़े से बड़े तप का विधान है। तप जीवन का स्त्रोत है, तब जीवन में जलती हुई ज्योत है। तप से होती है कर्मो की निर्जरा, तप ही मोक्ष मार्ग का स्त्रोत है।
इस मौके पर मधु सोनी ने 14 उपवास, मनीष मनसुखानी ने 4 उपवास के प्रत्याख्यान साध्वी मंडल से लिये। पर्युषण महापर्व के पहले दिन बुधवार से शुक्रवार तक सामूहिक तेले का आयोजन चल रहा है जिसमें 100 से अधिक श्रावक-श्राविकाएं भाग लेकर धर्मलाभ ले रही हैं। प्रतिदिन शाम को जैन समाज की श्राविकाओं के लिए जैन दिवाकर भवन पर एवं श्रावकों के लिए सोमवारिया स्थित रंगुजी स्थानक भवन पर एवं चौपाटी स्थित कस्तुर स्वाध्याय भवन पर शाम को प्रतिकमण का आयोजन प्रारंभ हो चुका है। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाओं ने भाग लिया। प्रभावना का लाभ बसंतीलाल चोरडिया परिवार ने लिया। संचालन महावीर छाजेड़ ने किया।
श्रद्धालु जुटेंगे तप-आराधना में
साधुमार्गी जैन श्रीसंघ के तत्वावधान में आचार्यश्री रामलालजी की आज्ञानुवर्ती महासती मनोरमाश्रीजी, महासती सुविरागश्रीजी आदि
ठाणा के पावन निश्रा में पर्युषण महापर्व मनाया जा रहा हैं। पर्युषण महापर्व बुधवार से प्रारंभ हुए जिसमें प्रतिदिन प्रार्थना, नवकार मंत्र के जाप, प्रवचन, दोपहर में ज्ञान चर्चा, शाम को प्रतिक्रमण का आयोजन होगा।