- कविता व्यास, गृहिणी
रतलाम। सहज, सरल जीवन का प्रतीक है मेरा रतलाम। यहां का वातावरण सबको भाता है। यहां की ऋतुएं सबके साथ बनी रहती है। यही कारण है कि जो रतलाम आता है यहीं का होकर रह जाता है। रतलाम पर प्रकृति की बड़ी कृपा है। यहां कभी बाढ़ का खतरा नहीं होता। यहां कभी सूखे का प्रकोप नहीं होता। यह मौसम की दृष्टि से बहुत सुरक्षित स्थान है।
मुंबई और दिल्ली को जोड़ने वाले जंक्शन होने के कारण रतलाम में सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां की भौगोलिक स्थिति के कारण यहां के भोजन में भी बहुत स्वाद है। यहां के व्यंजन बहुत दूर तक प्रसिद्ध हैं। खासतौर से यहां की दाल-बाटी का नाम सुनते ही मुंबई तक के लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। यहां के लोग बहुत सीधे, सरल और सज्जन हैं। सभी के साथ बहुत जल्दी घुल-मिल जाते हैं। लोग यहां वैसे ही शुद्ध हैं जैसे यहां का सोना। यहां के लोगों को नमक का कर्ज उतना ही पता है जैसे यहां का नमकीन। रतलाम के हलवाइयों की पहुंच दूर-दूर तक है, इसलिए बड़े-बड़े आयोजनों के लिए रतलाम के हलवाइयों को सदैव बुलाया जाता है।
मध्य भारत से निकले मध्य प्रदेश ने रतलाम को अपने दिल में बसा कर रखा है। यहां के उत्सवों की अपनी अलग ही पहचान है। नवरात्र के उत्सव में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला श्रृंगार उन्हें देवी रूप प्रदान करता है। यहां सजने वाली रंगोली और अल्पनाएं उत्सव को रोचक बना देती हैं। विकास की दृष्टि से रतलाम किसी महानगर से कम नहीं। यहां निरंतर होते विकास, नई सड़कें और औद्योगिक क्षेत्र ने इसे महानगरों की श्रेणी में ला दिया है। खेलकूद के लिए भी रतलाम की अलग पहचान रही है। यहां के खेल मैदानों से निकले खिलाड़ियों ने देशभर में नाम रोशन किया है और निरंतर कर रहे हैं।
साहित्य और संस्कृति यहां की पहचान है। कई कलाकार यहां के नाम को रोशन कर रहे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार देशभर में रतलाम की पहचान बने हुए हैं। वास्तुकला की दृष्टि से रतलाम का महत्वपूर्ण स्थान है। परमार कालीन मंदिरों में विरुपाक्ष महादेव का बहुत नाम है। सैलाना के केदारेश्वर, कैक्टस गार्डन देशभर में अपनी पहचान रखते हैं। भाषा की दृष्टि से रतलाम समृद्ध है। यहां की बोली में मिठास है, इसीलिए रतलाम पूर्ण भी है, प्रभावी भी है और पुरुषार्थ को व्यक्त करने वाला भी।
मेरे मन की याद गली
वर्षा के मौसम में पतरों से आने वाली आवाज कभी हमारे कानों में मेघ मल्हार घोला करती थी। कच्चे मकानों में रहने वाले लोग बहुत पक्के हुआ करते थे। आज मकान पक्के हो गए हैं, लेकिन लोग कच्चे हो गए हैं। किसी के पास समय नहीं है और यही दर्द यादों में बार-बार उभरता है।