रतलाम। उत्सवी माहौल में बुधवार से जैन समाज के पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की शुरुआत हुई। पहले दिन अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने विभिन्ना त्याग-तपस्या की। बड़ी संख्या में श्रद्धालु जिनालयों में
दर्शन-वंदन करने पहुंचे। पर्युषण महापर्व के आठ दिनों में मंदिर, स्थानक, उपाश्रयों में धर्म की गंगा बहेगी। पर्व को लेकर जिनालयों में आकर्षक सजावट के साथ विद्युत सज्जा की गई है। प्रतिदिन प्रभु प्रतिमा का मनोहारी श्रृंगार किया जा रहा है।
श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल नौलाईपुरा स्थानक पर पर्युषण पर्व के प्रथम दिन साध्वी प्रवीणा श्रीजी ने कहा कि अनादिकाल से जीव भटकता आ रहा है। इस भटकन में जीव मैं यहां क्यों आया हूं यह भूल रहा हैं। ये पर्व हमें संदेश देने आए हैं। कहते हैं दृष्टि बदलो तो सृष्टि बदल जाती है। पर्व के आठ दिन मनाने के लिए हम पुण्यवाणी लेकर आए हैं। सबकी अपनी-अपनी दृष्टि होती है। दृष्टि बदलने की आवश्यकता है। सबकी दृष्टि अलग-अलग होती है। संसार में क्या लाए थे, क्या ले जाएंगे कुछ साथ नहीं जाएगा। हृदय परिवर्तन करना है। रत्नपुरी में जन्म मिला, जैन धर्म मिला, साधु-संतों का चातुर्मास मिला, कितना पुण्यवाणी है। कहते हैं मनुष्य भव मिला उसमें कुछ न किया तो क्या किया। आत्मा पर आए विषय विकारों को दूर करना है। संसार में कितने प्रकार के लोग होते हैं। पहला 365 दिन धर्म करने वाले, दूसरा 120 दिन धर्म करने वाले, तीसरा 49 दिन धर्म-आराधना करने वाले, चौथा आठ दिन पर्व पर्युषण मनाने वाले, पांचवा एक दिन संवत्सरी पर्व मनाने वाले। कोई संवत्सरी के दिन भी नहीं आया तो जीरो पाइंट। यह पर्व आनंददायी पर्व है। संचालन राजेश कोठारी ने किया। प्रभावना का लाभ श्री धर्मदास जैन श्रीसंघ ने लिया। दोपहर में कल्पसूत्र का वाचन और धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक स्थानक में तप चक्रेश्वरी अरुण प्रभा जी की निश्रा में पर्युषण पर्व की धर्म-आराधना, त्याग-तपस्या की जा रही है। श्रावक-श्राविकाओं द्वारा बढ़-चढ़कर त्याग-तपस्या की जा रही है।
क्रोध में पशुता, क्षमा में दिव्यता
क्रोध दो प्रकार के होते हैं भाव क्रोध व द्रव्य क्रोध। भाव क्रोध हमारे मन के अंदर, द्रव्य क्रोध शरीर के रूप में बाहर प्रकट करता है। भाव क्रोध की अनुभूति अंदर होती हैं। दोनों ही प्रकार के क्रोध हमारी आत्मा को कलुषित करती हैं। स्वयं को जला देती हैं। जैसे माचिस की तिल्ली दूसरों को जला सके न सके खुद को जला देती है, वैसे ही अंगारा फेंकते तो कुछ जले न जले आपका हाथ जरूर जलेगा। क्रोध में पशुता व क्षमा में दिव्यता है। क्रोध, मान, माया, दोष चारों महादोष है। इन दोषों से बचकर महान दोषों से बचा जा सकता है। यह बात शासन दीपक सुमित मुनि जी ने पर्युषण पर्व के प्रथम दिन समता शीतल बाग पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि क्रोध का कारण हमारे मन के अनुरूप नहीं होना अर्थात अपेक्षा उपेक्षा में बदल जाती है और हम क्रोध करने लग जाते हैं। देखो पर्व पर्युषण आया, घर-घर में आनंद छाया के मधुर गीत से ब्रह्मऋषि जी व ऋजु प्रज्ञ जी ने भाव रखे। महासती अणिमा श्रीजी ने भी भाव रखे। यहां प्रवचन प्रतिदिन प्रातः 8ः30 से 10ः15 बजे तक रहेंगे। उधर, काटजू नगर समता भवन पर शासन दीपिका हितेषी श्रीजी आदि ठाणा के भी प्रवचन प्रतिदिन चल रहे हैं। साधुमार्गी जैन श्रीसंघ अध्यक्ष सुदर्शन पिरोदिया, मंत्री दशरथ बाफना, महेंद्र गादिया ने बताया कि संघ में तीन मासक्षमण पूर्ण हुए। भवि दिनेश सिसौदिया के 16 उपवास की तपस्या चल रही है। विनोद मेहता ने महत्तम महोत्सव की जानकारी दी। संचालन चंदन पिरोदिया ने किया।
दर्शन-वंदन कर की पूजा
कस्तूरबानगर जैन मंदिर में पर्युषण पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। समाजसेवी अमित कोठारी ने बताया कि मंदिर में सुबह से भक्तों का तांता लग रहा है। मंदिर पर पर्व को लेकर आकर्षक विद्युत सज्जा की गई है। रात्रि में प्रभु नमिनाथ की आरती उतारी गई। प्रभु प्रतिमा की मनोहारी अंगरचना की गई। इसका लाभ कनकमल जैन परिवार ने लिया। ट्रस्ट मंडल अध्यक्ष बाबूलाल सियाल ने धर्मालुओं से उपस्थित रहने का अनुरोध किया है।
चंदा प्रभु भगवान की मनोहारी अंगरचना
आलोट। जैन अनुयायियों का पर्युषण पर्व बुधवार से प्रारंभ हो गया। अब आठ दिन तक विशेष धर्म-आराधना का दौर चलेगा। तपागच्छ व वासुपूज्य उपाश्रय में तपोवन से आए वीर सैनिक धर्म आराधना कराकर व्याख्यान दे रहे हैं। दोनों ही मंदिरों में भगवान की मनोहारी अंगरचना की जा रही है। चंद्रप्रभु जैन मंदिर में चंदा प्रभु भगवान की अंगरचना राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में की गई।