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प्रशासन की अनदेखी के चलते धीरे-धीरे खत्म हो रहा अस्तित्व -फ्लेग
-मुख्य द्वार पर जगह-जगह लगे होर्डिंग्स और बैनर
-परिसर में घर, मकान और दुकान
रतलाम। नईदुनिया प्रतिनिधि
रतलाम का राजमहल रणजीत विलास पैलेस प्रशासन की अनदेखी के कारण अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। कहने को यह राजमहल है, लेकिन धीरे धीरे खंडहर में बदल रहा है। महल के मुख्य द्वार पर जगह-जगह होर्डिंग्स और बैनर लगे हैं तो अंदर के परिसर में घर, मकान, दुकानें व शासकीय कार्यालय लग रहे हैं। समय-समय पर शहर की धरोहरों को लेकर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन वह वादे केवल भाषणबाजी तक ही सीमित रह पाते हैं।
सन् 1880 में निर्मित रणजीत विलास पैेलेस शहर के राजा-रजवाड़ों की धरोहर है। महाराजा रतनसिंह के वंश के आखरी उत्तराधिकारी महाराज लोकेंद्रसिंह रहे। लोकेंद्रसिंह और इनकी पत्नी प्रभाराजे राजमहल की देखरेख करते थे। 1991 में महाराजा लोकेंद्रसिंह और 1993 में प्रभाराजे की मृत्यु हो गई। उत्तराधिकारी लोकेंद्रसिंह के कोई संतान नहीं थी। ऐसे में राजमहल की संपत्ति शासन को हस्तांरित होना थी। लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। करोड़ों की राजवंश संपत्ति की अवैधानिक रूप से खरीद-बिक्री होती रही, लेकिन पैलेस की दशा सुधारने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई।
इटालीयन नक्काशी है राजमहल में
राजमहल की बनावट व निर्माण में गुणवत्ता का पता इसी बात से लग जाता है कि फर्श पर इटालीयन नक्काशी की गई है। महल के अंदर जाने पर यह नक्काशी की कला आसानी से देखी जा सकती है। लंबे समय से पैलेस के अधिग्रहण की मांग सामाजिक संगठनों, शहरवासियों द्वारा की जा रही है। हाल ही में शहर विधायक चैतन्य काश्यप ने शासन स्तर पर प्रयास कर पैलेस के अधिग्रहण की कार्रवाई कराने की बात कही है। इधर प्रशासन ने भी राजवंश की डोसीगांव स्थित करीब 100 बीघा जमीन का विवाद पक्षकारों को सहमत कराकर शासन के पक्ष में करा लिया है। ऐसे में पैलेस को लेकर भी सरकारी आस फिर से जगी है।
अवैध कब्जे की चपेट में राजमहल
शहर की एक मात्र गौरवशाली गाथाओं और स्थापत्य कलाओं से सुसज्जित राजमहल की धरोहर वर्तमान में अवैध कब्जों की चपेट में है। परिसर में कॉलोनी काटकर तत्कालीन समय में रजिस्ट्री करा दी गई, लेकिन पैलेस के आसपास की जमीन पर कब्जा हो रहा है।
राजमहल के लिए लड़ रहे लड़ाई
राजमहल के अस्तित्व को बचाने को लेकर शहर के सामाजिक कार्यकर्ता संजय मूसले 1993 से लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि राजमहल की संपत्ति को जनहित व शासन हित में सुरक्षित करने की मांग कर रहे हैं, ताकि शहर की ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षित रह सके।
17आरटीएम-24 : बदहाली पर आंसू बहाता रणजीत विलास पैलेस।
धूमिल हो रही स्तंभ की 'कीर्ति'
सैलाना। नईदुनिया न्यूज
जिला मुख्यालय से करीब 18 और सैलाना नगर में प्रवेश से 2 किमी पहले स्थित स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना विशाल कीर्ति स्तंभ वर्षों से उपेक्षित है। इसका निर्माण महाराजा जसवंतसिंह ने 1895 से 1919 के बीच करवाया था। यह पुरातत्व की दृष्टि से भी अमूल्य धरोहर है। इसकी नींव हाथियों से दबवाकर भरी गई थी। गोलाकार रूप में स्तंभ करीब 177 फीट ऊंचा है। दो मंजिला में प्रत्येक में 25 व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। इस पर चढ़ने के लिए भीतर गोलाकार में 189 सीढ़ियां हैं। इसकी ऊपरी मंजिल से नौगांवा, बाजना, सरवन, जावरा दिखाई देते हैं। इसे काले पत्थरों के एरनों से चूने से बनाया गया है। इसका उपयोग वॉच टावर के रूप में किया जाता था। वैसे इसका निर्माण किंग एडवर्ड जार्ज सप्तम की याद में करवाया गया था।
5 साल पहले हुए थे प्रयास
करीब पांच बरस पहले सैलाना के तत्कालीन एसडीएम नियाज एहमद खान के निर्देश पर नगर परिषद ने कीर्ति स्तंभ के सौंदर्यीकरण के लिए इसके चारों तरफ बाउंड्रीवॉल बनवाई थी। यहां बगीचा, रोशनी, झूले, होटल आदि की योजना थी, लेकिन खान के तबादले के साथ ही नगर परिषद इसे भूल गई और काम अधूरा ही छोड़ दिया। धनाभाव का बहाना लेकर नगर परिषद इस काम से कन्नाी काट रही है। यदि नगर परिषद इसके उद्धार के प्रयास करे तो कीर्ति स्तंभ दूर-दूर तक सैलाना की कीर्ति फैला सकता है।
प्रदेश का एकमात्र व देश का तीसरा स्तंभ
सैलाना का कीर्ति स्तंभ प्रदेश का एकमात्र और देश का तीसरा स्तंभ है। देश में दिल्ली में कुतुब मीनार और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में विजय स्तंभ स्थित है। दिल्ली व चित्तौड़गढ़ के स्तंभ की बनावट एक समान है, जबकि सैलाना का कीर्ति स्तंभ नीचे से ऊपर तक एक ही आकार का है।
17आरटीएम-23 : सैलाना का कीर्ति स्तंभ।
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