नीलांबुज पांडे, सीधी। बाघिन टी-18 की ट्रेन से टकराने से मौत हो गई थी। इसके बाद उसके चार शावक अनाथ हो गए। इनमें से एक शावक को बाघ ने मार दिया। ऐसे में तीनों शावक असुरक्षित हो गए। तब उनकी मौसी ने उन्हें सहारा दिया। वह अपने तीन शावकों के साथ उनको भी मां का दुलार दे रही है। वन्य जीवों में अपनापन और रिश्तों की ये कहानी संजय टाइगर रिजर्व की है। वन्यजीवों में ऐसी सहृदयता पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इस अनोखे रिश्ते को संभालने के लिए पार्क प्रबंधन भी सक्रिय है। उसकी कोशिश है कि ये शावक किसी वयस्क बाघ के शिकार न हो जाएं।
ऐसा है रिश्ता : वन्य जीव विशेषज्ञ जयराज सिंह परिहार ने बताया कि कमली बाघिन ने संजय टाइगर रिजर्व में पहली बार तीन शावकों को जन्म दिया था। इनमें एक मेल है तो टी-17, टी-18 फीमेल है। इसके बाद कमली ने दोबारा टी-28, टी-29 को जन्म दिया। टी-17 के खुद के तीन शावकों की उम्र अभी करीब पांच माह है। जबकि, मातृविहीन टी-18 के शावक अब नौ माह के हो चुके हैं। ये सभी शावक एक दूसरे के साथ खेलते और शिकार का अभ्यास करते दिख जाते हैं। हाल ही में एक दिन के लिए टी-18 के शावक दूसरी मौसी टी- 28 के साथ भी देखे गए थे।
एक साथ दिखे पगचिह्न : संजय टाइगर रिजर्व ने शावकों की निगरानी के लिए कई ट्रैकिंग दल बनाए हैं। चार हाथियों के साथ महावत रोजाना सुबह ट्रैकिंग कर रहे हैं। रिजर्व दल का अमला भी निगरानी में जुटा हुआ है। टी-17 के साथ शावकों के पगचिह्न देखने को मिले हैं। बाघिन टी-17 सभी छह शावकों के साथ डेवा जंगल के अलावा चीतल बाड़ा, कंजरा झील, मंडोला नाला क्षेत्र में देखी जा रही है।
शिकार की यह व्यवस्था : शावकों के शिकार के लिए रिजर्व अमला रोजाना चिह्नित स्थानों में तीन से पांच पड़ा और बकरा बांध रहा है, ताकि शावक आसानी से शिकार कर सकें।
हमउम्र हैं शावक : टी-17 और टी-18 का जन्म एक साथ हुआ था। दोनों ने साथ रहकर शिकार करने के गुर सीखे हैं। दोनों का ठिकाना आमने-सामने के जंगल में रहा है। शावकों की बात करें तो उनमें आपस में करीब चार माह का अंतर है। इससे वह एक दूसरे के साथ खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।
इनका कहना है
बाघिन टी-18 की मौत के बाद शावकों की लगातार निगरानी की जा रही है। पांच दिन पहले यह तीन शावक अपनी मौसी टी-17 के साथ देखे गए हैं। ट्रैकिंग दल इनकी निगरानी कर रहा है।
-वाइपी सिंह, सीसीएफ संजय टाइगर रिजर्व।