बीना (नवदुनिया न्यूज)। प्राचीन ऐरण स्थल कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह है। ऐरण के गर्त से मिले पुरावशेष इन घटनाओं की कहानी बयां करते हैं। इसी में एक कहानी भारत वर्ष के पराक्रमी महाराजाधिराज समुद्रगुप्त के वंश से जुड़ी हुई है। इतिहासकार मानते हैं कि मध्यभारत में राज करते हुए समुद्रगुप्त के बड़े पुत्र महाराजाधिराज रामगुप्त शक राजा रुद्रसिंह द्वितीय की विशाल सेना देखकर भयभीत हो गए थे। वह अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को शक राजा को सौपकर शांति चाहते थे। पूरे वंश पर कलंक लगते देख रामुगप्त के छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) ने ध्रुवस्वामिनी के वेश में शक छत्रप शासक के शिविर में घुसकर हत्या कर दी थी। इस तरह विक्रमादित्य ने अपने कुल की लाज बचाई थी। यह घटना ऐरण की बताई जाती है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में पदस्थ इतिहासकार डॉ. मोहन लाल चढ़ार बताते हैं कि करीब 335-3750ई. (लगभग 1700 साल पहले) में समुद्रगुप्त ने दक्षित भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर लगभग संपूर्ण भारत वर्ष पर राज्य किया था। इसी बीच वह अपनी पत्नी, पुत्र और पौत्रों के साथ ऐरण आए थे। सुरक्षा की दृष्टि से मध्यभारत में ऐरण महत्वपूर्ण स्थल था। इसी विशेषता के चलते उन्होंने ऐरण को अपना स्वभोग नगर (खुद के आमोद-प्रमोद का स्थान) बनाया था। कुछ समय तक यहां रहने के बाद वह पाटलीपुत्र लौट गए थे। मध्यभारत का साम्राज्य अपने बड़े बेटे रामगुप्त को सौंप दिया था। इसी बीच शक छत्रप शासक रुद्रसिंह द्वितीय ने मालवा क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया, साथ ही उन्होंने अपना दूत रामगुप्त के पास इस शर्त के साथ भेजा कि हमसे युद्घ करो या अपनी पत्नी हमें सौप दो। गुप्त वंश की लाज की परवाह किए बिना ही रामगुप्त अपनी पत्नी को शक राजा को सौपने को तैयार हो गया। इसकी सूचना जैसे ही राजा के छोटे भाई चंद्रगुप्त को लगी तो उन्होंने शक छत्रप की हत्या करने की व्यहू रचना की। अपनी भाभी रानी ध्रुवस्वामिनी के वेश में पालकी में बैठकर अपने वफादार योद्घाओं को अन्य पालकियों में दासियों के वेश में साथ लेकर शक छत्रप शासक के शिविर में पहुंच गया। मुंह दिखाई रस्म के दौरान ही चंद्रगुप्त ने शक शासक का सीना खंजर से चीरकर उसकी हत्या कर दी। अपने राजा की हत्या की खबर सुनकर शिविर में उथल-पुथल मच गई और चंद्रगुप्त के सैनिकों ने वीरता का परिचय देते हुए शक सेना को खदेड़ दिया।
अभिलेखों में घटना का जिक्र
इतिहासकार डॉ. मोहन लाल चढ़ार बताते हैं कि इस घटना का जिक्र महाराष्ट्र में मिले संजन ताम्रपत्र और संघली ताम्रपत्र में है। इसके अलावा विशाखदत्त ने इसी घटना पर अपनी प्रसिद्घ रचना देवी चंद्रगुप्तम लिखी है। वाणभट्ट ने हर्ष चरित्र और राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसका जिक्र किया है। लेकिन इसमें ऐरण स्थल का जिक्र नहीं है। इतिहासकार ऐरण से मिले रामगुप्त के सिक्कों और समुद्रगुप्त के अभिलेख से यह घटना ऐरण की मानते हैं। इसके अलावा दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित गुप्तकालीन लौह स्तंभ लेख से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने शक छत्रप शासकों को सिंधु नदी के पार तक खदेड़ दिया था।
रामगुुप्त के सिक्के मिले हैं
ऐरण में वर्ष 1960 से 65 तक अलग-अलग सत्रों में स्व. प्रो. केडी वाजपेयी के निर्देशन में किए गए उत्खनन में रामगुप्त के सिक्के मिले हैं। इसके अलावा विदिशा जिले में आने वाले दुर्जनपुर स्थल से जैन तीर्थंकर चंद्रप्रभु, पुष्पदंत के अलावा अन्य प्रतिमा मिली है। इन मूर्तियों पर महाराजाधिराज रामगुप्त लिखा हुआ है। यह मूर्तियां राज्य पुरातत्व संग्रहालय भोपाल में संरक्षित हैं। समुद्रगुप्त के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय एवं अन्य गुप्त शासकों के जो अभिलेख मिले हैं, उन अभिलेखों में रामगुप्त का नाम नहीं हैं। यह माना जाता है कि शक शासक की लज्जााजनक शर्त स्वीकार कर लेने के कारण गुप्त वंश के किसी भी अभिलेख में रामगुप्त के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है।