बीना (नवदुनिया न्यूज)। गोपराज माधव का पुत्र और शरभराज का दौहित्र (नाती) अपने कुल का आभूषण स्वरुप था। पृथ्वी पर परमवीर अर्जुन के समान प्रतापी, भानुगुप्त का मित्र, ऐरण में एक भयंकर युद्घ करते समय, दिव्य शासक इंद्र के समान स्वर्ग को चला गया। उसकी भक्तिभाव में युक्त अनुरक्तप्रिया व सुंदर पत्नी उसके साथ ऐरण पुरास्थल में अग्नि में प्रवेश कर गई अर्थात सती हो गई है। यह वीरगाथा गुप्त वंश के अंतिम शक्तिशाली शासक भानुगुप्त के मित्र एंव सेनापति गोपराज की है। ऐरण में मिले देश के पहले सती स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा में इसका उल्लेख है।
पुरास्थल ऐरण के इस सती स्तंभ को आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने सन् 1974-75 ईसवी के बीच में खोजा था। इसे देश का पहला सती स्तंभ माना जाता है। आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के खंड 10 में इसका विस्तृत उल्लेख है। अभिलेख गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में हैं। अभिलेख की भाषा संस्कृत है। पहली पंक्ति से दूसरी पंक्ति तक अभिलेख गद्य में लिखा है, उसके बाद यह पद्य में लिखा गया है। अभिलेख पर श्रवण वदी सप्तमी की तिथि दी गई और गुप्त संवत 191 लिखा गया है। यह तिथि ईसवी संवत में 510 ईसवी होती है। लिपि शास्त्र की दृष्टि से कई उल्लेखनीय तथ्य इस अभिलेख में मिले हैं। यह अभिलेख सेनापति गोपराज की युद्घ में वीरगति को तो दर्शाता ही है साथ ही यह प्रमाणित करता है कि उसकी पत्नी ऐरण में पति के साथ सती हो गई थीं। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि 510 ईसवी में प्रभुसत्ता का जो संघर्ष हुआ वह किसके बीच हुआ, इस पर अभिलेख मौन है।
हूणों से संघर्ष के साक्ष्य मिले
पुरास्थल ऐरण पर पीएचडी करने वाले डॉ. मोहन लाल चढ़ार बताते हैं कि जिस समय का यह अभिलेख है उस दौर में हूण शासक मिहिरकुल का शासन काल था। संभवतः यह युद्घ मिहिरकुल से ही लड़ा गया होगा। क्योंकि मिहिरकुल के प्रतापी पिता हूण शासक महाराजाधिराज तोरमाण का अभिलेख गुप्तकालीन बराह की प्रतिमा के ऊपर मिला है। इससे यह पता चलता है कि तोरमाण ने ऐरण पर 495 ईसवी में आक्रमण किया था। उन्होंने गुप्तवंश के राजा बुद्घगुप्त को पराजित किया था। वह बताते हैं कि ऐरण से प्राप्त तोरमाण के अभिलेख में उसके प्रथम शासन काल की तिथि दी गई है। इसके अलावा अन्य पुरावशेषों से बुद्घगुप्त के अंतिम शासन काल की तिथि 494-95 ईसवी प्राप्त होती हैं। इन प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि ऐरण पर विदेशी हूण शासकों ने दो बार आक्रमण किया और उनसे लड;ते हुए गोपराज वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
सुरक्षित है स्तंभ
ऐरण से महज दो किलोमीटर दूर पहलेजपुर गांव में आज भी सती स्तंभ सुरक्षित है। वर्तमान यह जमीन पर गिर गया है। इस स्तंभ पर दो चित्र उकेरे गए हैं। इनमें एक चित्र पुरुष का और दूसरा स्त्री का है। इसके अलावा गोलाकार सती स्तंभ पर सात पंक्तियों में भानुगुप्त के पराक्रमी सेनापति गोपराज की वंशावली और उनकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है। इसे देश का पहला अभिलिखित सती स्तंभ माना जाता है।
सती स्तंभ पर मिला है यह लेख
- ओम सिद्घमसंवत्सर-शते एकनवत्सुत्तरे श्रावणबहुलपक्ष-सप्तभ्यौ.
- संवत 100+90+1 श्रावण ब-दि बल वंशादुुत्पन्नों
- राजेति विश्रुतः तस्य पुत्रोअतिवि-्रान्तो नाम्ना राजाथ माधवः गोपराजः
- सुतस्तस्य श्रीमान्विख्यात-पौरुषः शरभराज-दौहित्रः स्ववंशतिलकोअधुना
- श्री भानुगुप्तो जगति प्रवीरो राजा महान्पार्थ-समोअति-शूरः तेनाथ सार्द्घन्त्विह गोपराजो
- मित्त्रानु गतेन किलानुुयातः कृत्वा च युद्घं सुमहत्प्रकशं स्वर्गगतों दिव्य-नरेंद्र-कल्पः
- भक्तानुरक्ता च प्रिया च कान्ता भार्य्या विलग्नानुगताग्नि राशिम॥