बीना (नवदुनिया न्यूज)। भगवान विष्णु के पांचवें वामन अवतार का प्रकटोत्सव मध्य और उत्तरभारत में जलझूलनी एकादशी या ढोल ग्यारस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। यहां यह बात जानकर हैरानी होगी कि बुंदेलखंड में भगवान विष्णु के इस रूप की पूजा सदियों से होती आ रही है। इसका प्रमाण पुरास्थल ऐरण में विराजमान भगवान विष्णु की त्रिविक्रम और बौने कद में वामन प्रतिमाएं हैं। यह मूर्तियां करीब 1600 वर्ष पहले गुप्तकाल में बनाई गई थीं।
भगवान विष्णु के पांचवें वामन अवतार का प्रकटोत्सव भाद्रपद शुल्क पक्ष की द्वादशी को जलझूलनी एकादशी तथा ढोल ग्यारस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। यह बात जानकर हैरानी होगी कि मध्यभारत सहित बुंदेलखंड में सदियों पहले भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा धूमधाम से होती आ रही है। इसके पुख्ता प्रमाण पुरास्थल ऐरण में मिलते हैं। यहां पर वामन अवतार की तीन प्रतिमाएं मिली हैं। इनमें से दो प्रतिमाएं भगवान वामन के छोटे या बौने आकार को वामन ब्रह्मचारी रूप में छतरी लिए दिखाया गया है तो तीसरी प्रतिमा त्रिविक्रम रुप में है। इसमें भगवान वामन चर्तुभुजी विराट स्वरुप में आकाश को अपने पैर से नापते हुए दिख रहे हैं। ऐरण में मिली भगवान विष्णु की त्रिविक्रम मध्यभारत की पहली प्रतिमा हैं। उल्लेखनीय है कि विष्णु के वामन अवतार का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि वे एक विशाल स्वरुप वाले हैं। तीन पग में तीनों लोकों को नापने के कारण वामन को महाभारत में त्रिविक्रम कहा गया है। वामन पुराण इन्हीं के यश के प्रतीक हैं। रामायण और भागवत पुराण में वामन कथा का वर्णन मिलता है। विष्णुधर्मोत्तर, अग्नि पुराण, शिल्परत्न और वैखानसागम में वामन प्रतिमाओं के संबंध में विवरण मिलता है।
त्रिविक्रम प्रतिमा की खासियत
ऐरण के गुप्तकालीन मंदिर में त्रिविक्रम प्रतिमा गरुड़ स्तंभ के पास विराजमान है। यह प्रतिमा चतुर्भुजी हैं। इस प्रतिमा को त्रिविक्रम स्वरूप में निर्मित किया गया है। इसमें भगवान विष्णु को विराट स्वरुप के साथ स्थानक मुद्रा में प्रदर्शित किया गया है। त्रिविक्रम का दाहिना निचला हाथ जंघा पर रखा है। ऊपरी दाएं हाथ में गदा, ऊपरी बाएं हाथ में चक्र है। निचले बाएं हाथ में सनाल कमल लिए है। इसके अलावा बाएं पैर से आकाश को नापते हुए दिखाया गया है। आकाश में उनका पैर भगवान सूर्य के समीप दिखाया गया है। इस प्रतिमा के नीचे छत्रधारी वामन और राजा बलि का चित्र उत्कीर्ण किया गया है। त्रिविक्रम की यह प्रतिमा वैष्णव पुराणों में वर्णित शिल्पकला के अनुसार बनाई गई है। यह प्रतिमा एरण में गुप्तकालीन मंदिर परिसर में खुले आसमान के नीचे रखी है। भगवान वामन की दो प्रतिमाएं बौने आकार के बालक ब्रह्मचारी के रूप में छतरी लिए मिली हैं। प्रतिमा में बालक रुपी ब्रह्मचारी अपने बाएं हाथ में छतरी लिए हुए एवं दाएं हाथ से राजा बलि को आशीर्वाद देते हुए दिखाया गया है। वहीं राजा बलि को भगवान वामन को प्रणाम करते हुए दिखाया गया है।
धूमधाम से होती थी पूजा
ऐरण पर शोध करने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकटंक के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. मोहन लाल चढ़ार ने बताया कि ऐरण पुरास्थल पर मध्यभारत की सबसे प्राचीनतम भगवान विष्णु के वामन अवतार त्रिविक्रम स्वरुप की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसके अलावा दो बालक रूपी ब्रह्मचारी वामन अवतार की सुंदर प्रतिमाएं भी मिली हैं। इससे पता चलता है कि गुप्तकाल में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन स्वरुप की पूजा धूमधाम से की जाती थी।