सागर(नवदुनिया प्रतिनिधि)।
जिले के लोगों को शिक्षित करने के लिए दानवीर, संविधान सभा के सदस्य डा. हरीसिंह गौर की जयंती पर शुक्रवार को जिले व देश के कई स्थानों पर धूमधाम से गौर जयंती मनाई जाएगी। डा. गौर ने महिलाओं के उत्थान से लेकर जिले के लोगों को शिक्षित करने अपनी जमा पूंजी दान करके विवि की स्थापना की, जिसमें पढ़ाई करके आज पूरे विश्व में यहां के लोग उच्च पदों पर कार्य कर रहे हैं। डा. गौर के कई ऐसे कार्य रहे हैं जो आज युवाओं के लिए प्रेरणादायी हैं। उनके जीवनकाल में कई ऐसे कार्य रहे जो आज लोगों को सिर ऊंचा करके जीवनयापन करने में मददगार साबित हो रहे हैं। नवदुनिया ने ऐसी ही कुछ जानकारी एकत्रित कर पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया है।
डा. गौर ने लिखा है कि अज्ञानता दासत्व की सहेली होती है, यदि आप लोगों को दबाकर रखना चाहते हैं, तो आपको चाहिए कि आप उन्हें अज्ञानी बनाए रखें। इसी अज्ञान के अंधेरे को दूर करने के लिए डा गौर ने ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विवि में पढ़ने वाला अपने लिए गौरवांन्वित समझता है और यहां नौकरी व पढ़ाई करने वाले शिक्षक, छात्र व कर्मचारी आज जहां भी हैं वह उधर किसी न किसी कार्यक्रम के रूप में डा. गौर को याद करते हैं। विवि परिवार के अलावा कई जगह आज डा. गौर की पूजा तक की जाती है। विवि की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता व कुलसचिव संतोष सोहगौरा के निर्देशन में जिले भर इस बार गौर उत्सव गौर सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है, जिसके चलते यहां कई कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जा रहा है। शुक्रवार को शहर में कई जगह गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकलेगी व प्रतिभावान विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए सम्मानित किया जाएगा।
समुद्र पार करने पर जाति से करते थे बहिष्कृत, डा. गौर ने कराया था विधेयक पास
यदि कोई दूसरी जाति में विवाह करता था तो उस विवाह को मान्यता नहीं मिलती थी। उस समय उच्च अध्ययन के लिए लोग विदेश पढ़ने जाते थे। समुद्रपार यात्रा करने वाले को जाति बहिष्कृत कर दिया जाता था। इस कारण डा. गौर ने ठान लिया कि वे कानून द्वारा अन्तर्जातीय विवाह (इंटरकास्ट मैरिज) को कानूनी मान्यता दिला कर रहेंगे। डा. गौर ने केंद्रीय धारा सभा में अन्तर्जातीय विवाह विधेयक पेश किया तो अनुदार सदस्यों ने इसका बार-बार विरोध किया। डा. गौर ने हिम्मत नहीं हारी, वे इसे पास करने के लिए प्रयास करते रहे। अंततः यह विधेयक पास हो ही गया। यह विशेष विवाह (संशोधित) विधेयक, सिविल मैरिज एक्ट 30, 1923 के रूप में पास हो गया।
12 दिन में ऐसे तर्क दिए कि रेलवे का वकील जबाव तक नहीं दे सका
डा. गौर ने एक प्रभावशाली एवं समृद्ध मारवाड़ी का केस भी लड़ा। पुलिस ने मारवाड़ी के पास से सोने-चांदी का माल बरामद किया था। यह मारवाड़ी एक लोकप्रिय राष्ट्रवादी था। यंग इंडिया का कट्टर समर्थक था। पुलिस का कहना था कि यह माल चोरी का है। मारवाड़ी का कहना था कि यह सामग्री जिन लोगों ने गिरवी रखी है वह चोरी कर ही नहीं सकते। पुलिस मानने को तैयार नहीं थी। मामला कोर्ट तक पहुंचा। डा.गौर ने इस मारवाड़ी को दोष मुक्त सिद्ध कराया। वहीं उनकी ख्याती अखबारों में पढ़कर मद्रासी ईसाई व लकड़ी का करोड़पति ठेकेदार मिस्टर जोसेफ ने डा. गौर से मुलाकात कर रेलवे के खिलाफ केस दिया। रेल्वे कम्पनी ने अपने पक्ष में एक से एक होश्यार वकील को अनुबंधित कर रखा था। केस पूरे 12 दिन तक चला और डा. गौर ने इतने आकाट्य तर्क प्रस्तुत किए कि विरोधी पक्ष के वकील उनका जवाब नहीं दे सके।
महिलाओं को दिलाया वकालत का अधिकार
डा. हरीसिंह गौर भारत में नारियों की स्थिति को लेकर अत्यन्त चिंतित थे। वे न केवल नारी को पुरुषों की बराबरी में खड़ा देखना चाहते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए स्त्री को शिक्षित होना अति आवश्यक है। उस समय महिलाओं को वकालात का अधिकार नहीं था। डा. गौर ने विधान परिषद में एक्ट 29 सन् 1923 पारित कराकर पास करवा कर महिलाओं को वकालात करने का अधिकार दिलाया। इस एक्ट द्वारा स्त्रियों का भी वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन होने लगा।
वकालत के क्षेत्र में बजा डा. गौर का डंका
वकालात के क्षेत्र में डा. हरीसिंह गौर की योग्यता का डंका समस्त भारतवर्ष में बज उठा। प्रो. बीके श्रीवास्तव की पुस्तक डा. हरीसिंह गौर एक प्रेरक व्यक्तित्व में उल्लेख है कि उनकी वकालात की ख्याति इतनी अधिक बढ़ गई थी कि लोग यह कहने लगे थे कि यदि किसी की मोटर कार का पहिया मार्ग में पंचर हो जाए तो उसे डा. गौर को वकील बना लेना चाहिए, क्योंकि वह उस व्यक्ति को नए ट्यूब टायर के पैसे म्युनिसपैलिटी से वसूल करा सकते हैं।
महिलाओं को दिलाया वकालत का अधिकार
डा. हरीसिंह गौर भारत में नारियों की स्थिति को लेकर अत्यन्त चिन्तित थे। वे न केवल नारी को पुरुषों की बराबरी में खड़ा देखना चाहते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए स्त्री को शिक्षित होना अति आवश्यक है। उस समय महिलाओं को वकालात का अधिकार नहीं था। डा. गौर ने विधान परिषद में एक्ट 29 सन् 1923 पारित कराकर पास करवा कर महिलाओं को वकालात करने का अधिकार दिलाया। इस एक्ट द्वारा स्त्रियों का भी वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन होने लगा।
देवदासी प्रथा को कानून बनाकर किया बंद
प्रो. बीके श्रीवास्तव की पुस्तक में कहा गया है कि डा. गौर ने इस देवदासी प्रथा को समाप्त करने असेम्बली में बिल प्रस्तुत किया। रूढ़िवादियों एवं धर्म के ठेकेदारों ने इस बिल का विरोध किया। उन्होंने तब कहा कि नैतिकता सभी धर्मों में सर्वोपरि है यदि उसमें अनैतिकता की स्वीकृति दिखाई न दे, लेकिन देवदासी प्रथा में अनैतिकता स्पष्टतः दिखाई दे रही है। डा. गौर की इस दलील ने अपना काम किया। डा. गौर का प्रस्ताव सरकार ने स्वीकृत कर लिया। सारा सदन तालियों की गढ़-गढ़ाहट के साथ हरी, हरी, हरी की हर्ष ध्वनि से गूंज उठा। 1924 ई. में भारतीय दण्ड संहिताओं की धाराओं 372 एवं 373 के तहत् यह व्यवस्था दी गई कि देवदासियों का मंदिर को अर्पण किया जाना व ग्रहण किया जाना दोनों ही अपराध होंगे। ऐसा करने वालों को दण्डित किया जाएगा। इस प्रकार डा. हरीसिंह गौर के प्रयासों ने देवदासी प्रथा कानून द्वारा बंद करा दी गई।
संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका
डा. हरीसिंह गौर ने देश के संविधान निर्माण सहित राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। इस सबके बाद वो अपनी जन्मस्थली सागर लौट आए, जहां उन्होंने अपने जीवनभर की जमापूंजी से सागर विश्विद्यालय की स्थापना की। सर गौर का सागर में विश्विद्यालय खोलने का एक मात्र उद्देश्य था, क्षेत्र का शैक्षणिक विकास और 1946 में उन्होंने सागर विश्विद्यालय की स्थापना की। इसका नाम बाद में उनके ही नाम पर कर दिया गया। किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। आज दानवीर डा गौर के नाम से ही सागर की अलग ही पहचान है। सागर विश्विद्यालय से महान दार्शनिक रजनीश ओशो जैसे अनेक छात्रों ने कीर्तिमान स्थापित किया। यही वजह है यहां के छात्र आज भी सर गौर को अपना आदर्श मानकर उनसे प्रेरणा लेते हैं।
नागपुर में बनवाया था चार एकड़ की भूमि पर घर
नागपुर में 4 एकड़ जमीन खरीदकर उन्होंने एक बड़ा घर बनवाया था। अपनी पुस्तकों के विशाल भण्डार को प्रथक से एक कमरे में जमाया था। एक शिक्षक एवं एक वकील की सबसे बड़ी पूंजी तो उसकी पुस्तकें ही रहती हैं। वह शिक्षक ही क्या? वह वकील ही क्या? जिनके पास पुस्तकों का संग्रह न हो। डा. गौर ने नागपुर को ही कम आमदनी के बावजूद अपने निवास के लिए चुना।
पहली पुस्तक लिखी संपत्ति का हस्तांतरण, न्यायाधीशों ने बताया महानतम ग्रंथ
डा. गौर और वकीलों से हटकर थे। उन्होंने वकालात का अध्ययन अत्यंत ही मेहनत के साथ किया था। वे कानून के अच्छे जानकार तो थे ही, कानून में कहां चूक है, इन पर भी उन्होंने गंभीर चिन्तन,मनन किया था। कैम्ब्रिज में अध्ययन के दौरान धन की कमी को उन्होंने साहित्य सृजन एवं उससे प्राप्त रायल्टी से पूरा किया था। उस समय भारतीय कानून का कोई ऐसा महत्वपूर्ण ग्रंथ नहीं था जो वकीलों की जटिल गुत्थियों को सुलझाने में मदद कर सके। इसलिए उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपने वकालत के सूक्ष्म ज्ञान का उपयोग कानून की बेहतर पुस्तकें लिखने में करेंगे। डा. गौर ने अपनी पहली पुस्तक 1895 ई. में सम्पत्ति का हस्तांतरण लिखी। प्रेस, न्यायाधीशों एवं कानून विदों ने इस ग्रंथ को अपने विषय का महानतम् ग्रंथ बताया।