सागर(नवदुनिया प्रतिनिधि)। डा. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के समाजविज्ञान शिक्षण अधिगम केंद्र, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान में शनिवार को आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत आजादीः वैचारिक स्वराज पर पुनर्विचार विषय पर आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया।
व्याख्यान की मुख्य वक्ता विकासशील समाज अध्ययन केंद्र नई दिल्ली की पूर्व प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय उच्च अध्ययन केंद्र की पूर्व सह-निदेशक एवं मानद फेलो प्रो. शैल मायाराम ने कहा कि भारत की सभ्यता शुरू से ही हम वजन रही हैं। जिस देश की सभ्यता और संस्कृति मजबूत रही हो उसी के विचारों में स्वराज ही हो सकता है। विचारों में स्वराज का मतलब अपनी सभ्यता और संस्कृति को जैसे गर्त में ढकेल दिया गया इससे मुक्ति ही विचारों में स्वराज है। प्रो. मायाराम ने बताया कि राजनीतिक आजादी के 70 साल बाद भी हम वैचारिक स्वराज से बहुत दूर हैं। उन्होंने भारतीय सभ्यता का जिक्र करते हुए कहा कि सिंधु सभ्यता कई नदियों से मिलकर बनी है और बौद्ध सभ्यता भारत की ही है। यूरोपीय आधुनिकता ने विश्व को बदला है। भारत में आधुनिकता की बात करते हुए कहा कि संत कबीर से लेकर महात्मा गांधी तक भारत में विचारों की आधुनिकता आई है। उन्होंने बताया कि 15 अगस्त 1947 को सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ था मानसिक स्वराज की उपलब्धि अब भी दूर है. प्रश्न सत्र में उन्होंने प्रतिभागियों के सवालों का जवाब भी दिया।
स्वराज एक विचार यात्रा है
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि जब हम स्वराज की बात करते हैं तो सहज ही स्वामी दयानंद, विनोबा भावे और महात्मा गांधी के स्वराज का विचार भारतीय ज्ञान परम्परा से निस्सृत होता है। दरअसल स्वराज एक विचार यात्रा है, जो व्यक्तिगत तौर पर खुद में सुधार एवं आत्मनिर्भरता से जुड़ा है। आादी के अमृत महोत्सव हमें यह अवसर देता है जहां हम एक बार फिर भारतीय मन, मानस और संस्कृति को गौरवान्वित हो कर याद करें। उन्होंने बताया कि भारत की चिंता हमेशा से ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वराज की रही है। विषय प्रवर्तन करते हुए मानविकी एवं समाजविज्ञान अध्ययनशाला के अधिष्ठाता प्रो. अम्बिका दत्त शर्मा ने कहा कि पश्चिम की संस्कृति के लिए स्वाधीनता व्यक्तिगत, राजनीतिक और आर्थिक रही है, जबकि भारतीय स्वाधीनता का मूल्यबोध सदैव सामूहिक रहा है जहां विचारों की स्वाधीनता एक महनीय अभीष्ट होती है। व्याख्यान में विवि के शिक्षक व शोधार्थी सहित देश के विभिन्ना क्षेत्रों के लोग जुड़े।