बीना (नवदुनिया न्यूज)।
राकेश कुशवाहा
मैं प्राचीन स्थल ऐरण हूं। मेरा इतिहास 2200 ईसा पूर्व का यानि 4200 साल पुराना हैं। मेरे गर्भ में मानव सभ्यता के विकास का पूरा क्रम छिपा हुआ है। मेरी गोद में लावारिश पड़े पुरावशेष मेरा इतिहास बयां करते हैं। मेरे आश्रय में कई राजवंश पले और समृद्ध हुए हैं और कई का विनाश होते मैंने देखा है। साम्राज्य बढ़ाने की लालसा में मेरी छाती पर खून की नदियां बहाई गई हैं। मैंने कायर राजा भी देखे और युद्ध में महान पराक्रमी योद्धाओं को राज्य की रक्षा के लिए वीरता से लड़ते वीरगति प्राप्त करते हुए भी देखा है। इसके बाद में उपेक्षित हूं। जबकि मैं विश्व विरासत में शामिल होने के मानक पूरे करता हूं। मैं ऐरण हूं।
विश्व धरोहर दिवस पर हम बात कर रहे हैं भारत के प्राचीन स्थल ऐरण की। सागर जिले की बीना तहसील में स्थित पुरा स्थल ऐरण का इतिहास हजारों साल पुराना हैं। यह बेतवा की सहायक बीना नदी के तट पर स्थित है। बीना नदी उत्तर-पश्चिम एवं पूर्व दिशा से एरण को अपने घेरे में लेकर अर्द्धचन्द्राकार रूप में प्रवाहित होती है। नदी ऐरण को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती है। यहां हड़प्पा संस्कृति की समकालीन ताम्रपाषाण संस्कृति से लेकर भारत की संस्कृतियों का क्रमिक विकास देखने को मिलता है। पूर्व में किए गए उत्खननों में नवपाषाण संस्कृति से लेकर ताम्रपाषाण संस्कृति, महाजनपद काल, मौर्य काल, सातवाहन काल, शक क्षत्रप काल, गुप्तकाल, पूर्वमध्यकाल, मुगलकाल, मराठा तथा अग्रेजों के समय तक के अनेक पुरावशेष मिलते है। अवशेषों से पता चलता है कि ऐरण स्थल भारतीय हिन्दू धर्म, कला एवं संस्कृति के संरक्षक के रूप में हजारों सालों से अपनी अहम भूमिका निभाता आ रहा है। गुप्तकाल में भगवान विष्णु के दस अवतारों की अनेक प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। विष्णु के मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, रामअवतार और कृष्ण अवतार की अनेक प्रतिमाएं मिली हैं। इसके अलावा ऐसे अनेक अवशेष मिले हैं जो भारतीय संस्कृति को बयां करते हैं। इन्हीं के आधार पर पुरास्थल ऐरण विश्व विरासत सूची में शामिल होने के मानक पूरे करता है।
मध्यभारत का प्राचीनतम पुरास्थल है ऐरण
ऐरण में वर्षों पहले किए गए उत्खननों से पता चला है कि नवपाषाण कालीन संस्कृति एवं हड़प्पा सभ्यता की समकालीन ताम्रपाषाण कालीन सस्कृति के लोगों ने ऐरण बसाया था। अवेशेषों की कार्बन तिथि निर्धारण की विधि से पता चला है कि ऐरण का इतिहास लगभग 2200 ईसा पूर्व यानि आज से 4200 वर्ष पुरानी है। सागर विश्विद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष के निदेशक प्रो. कृष्णदत्त बाजपेयी के निर्देशन में 1960 से 1965 ईसवी के मध्य किए गए उत्खननों में ऐरण में हड़प्पा सभ्यता की समकालीन मिटटी की सुरक्षा दीवार व खाई मिली है। सुरक्षा दीवार की लंबाई लगभग एक किलोमीटर, चौड़ाई 5 मीटर एंव 7 मीटर ऊंची है। इसकी गहराई 3.7 मीटर है। मिट्टी की इतनी लंबी सुरक्षा दीवार भारत के किसी भी पुरास्थल से प्राप्त नही हुई है।
1938 में की थी ऐरण की खोज
इतिहासकार डॉ. मोहन लाल चढ़ार बताते हैं कि ऐरण को खोज ब्रिटिश कप्तान टीएस बर्ट ने 1838 ईसवी में बुद्धगुप्त का ऐरण अभिलेख व तोरमाण का वराह मूर्तिलेख खोजा था। बाद में यहां से भारत के पांच प्रमुख अभिलेख और मिले हैं। पहला अभिलेख शक शासक श्रीधरवर्मा का, दूसरा समुद्रगुप्त का, तीसरा बुद्धगुप्त का, चौथा भानुगुप्त के सेनापति गोपराज की पत्नी के सती होने का है। यह भारत का पहला सती अभिलेख है। इसके अलावा पांचवां अभिलेख हूण शासक तोरमाण का है। इसके अलावा ऐरण से भारत का पहले अभिलिखित सिक्का मिला है। इस सिक्के को जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1874-75 ईसवीं में खोजा था। इस पर भारत की प्राचीन मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में राजा धर्मपाल लिखा हुआ है। वर्तमान में यह सिक्का ब्रिटिंश संग्रहालय लंदन में रखा हुआ है।
ऐरण में स्थित दर्शनीय चीजें
- ऐरण में मिले अभिलेख के मुताबिक भारत के शक्तिशाली सम्राट समुद्रगुप्त ने 370 ईसवी में भगवान विष्णु की विश्व एवं भारत की सर्वाधिक 14 फीट ऊंची और 5 फिट चौड़ी प्रतिमा स्थापित करवाई थी।
- ऐरण में गुप्तकाल में लगभग 1600 वर्ष पूर्व 14 फीट लंबी, 12 फीट ऊंची, और 6 फीट चौड़ी भारत की सबसे बड़ी भगवान पशुवराह की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा पर गुप्तकालीन लिपि में एक लेख अंकित है है जिसमें वराह मंदिर की स्थापना की जिक्र है।
- ऐरण में 484 ईसवीं में बनाया गया 50 फीट ऊंचा विशाल गरुड़ स्तंभ भारतीय कला संस्कृति का अनुपम है। गुप्तकाल में बनाया गया यह भारत का सबसे ऊंचा स्तंभ माना जाता है। इसे महाराजाधिराज बुद्धगुप्त गुप्त द्वारा निर्मित गरुड़ स्तम्भ माना जाता है।
विश्व विरासत में होना चाहिए शामिल
मानव सभ्यता के विकास में ऐरण का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐरण का इतिहास हजारों साल पुराना हैं। इसके चलते पुरातत्व विभाग ने यहां उत्खनन शुरू कराया है। ऐरण को विश्व धरोहर घोषित किया जाना चाहिए।
डॉ. मोहन लाल चढ़ार, इतिहासकार, अमरकंटक यूनिवर्सिटी, मध्यप्रदेश