सागर(नवदुनिया प्रतिनिधि)। जैंसे नदी में पानी रुक जाता है और वहां पर काई लग जाती है तो प्यास लगने पर नदी का पानी काई को दूर कर पिया जा सकता है ठीक उसी प्रकार वीतरागिता को प्राप्त करना है तो राग द्वेष को फूंक मारकर दूर करना होगा। यह बात भाग्योदय तीर्थ में विराजमान मुनिश्री समय सागर महाराज ने अपने प्रवचन में कही।
उन्होंने कहा कि आप को श्रीफल जैसा बनना है जैसे वह बाहर कठोर रहता है और अंदर मृदुता होती है इसी प्रकार आचार्य भगवन नारियल के जैसे मृदु होते हैं वे आपके लिए तो मृदु हैं, लेकिन खुद के लिए बहुत कठोर हैं। मां अपने बच्चे की बहुत तारीफ करती है। मां का उद्देश्य बच्चे की तारीफ करके उसे सुधारने का प्रयास होता है। जिनवाणी और आचार्य कहते हैं कि भगवान बीतरागी हो गए हैं, क्योंकि उन्होंने राग द्वेष से अपने को पूर्णता दूर कर लिया है।
संसार के जितने भी प्राणी हैं वे गलतियों के भंडार हैं
मुनिश्री ने कहा कि राग द्वेष छोड़ नहीं पा रहे हो तो परिगमन नहीं होना चाहिए कर्म का उदय तो आएगा। संसार के जितने भी प्राणी हैं वे गलतियों के भंडार हैं कठोरता की जीवन में आवश्यकता है, लेकिन कठोरता का उपयोग मृदुता के साथ होना चाहिए। गुरु के जीवन में कई लोग आते हैं उन सभी को वे समझाते हैं और यही उपकार वह हम सभी पर कर रहे हैं गुरु में महानता होती है और आचार्य परमेष्ठी होते हैं बे आशा से रहित होते हैं। उन्हें सिर्फ शिद्दत की बांझा भी नहीं करते हैं। वे परमार्थिक बातों को सुनकर भी लोग लालच वाला अपना कल्याण करने का भी नहीं सोचते और बंजारा होने पर व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है और जो गुरु के चरणों में जाता है वह हमेशा उठता है।