राहुल रैकवार, सतना
आज सावन का दूसरा सोमवार है। आज देश भर में भगवान भोलेनाथ की गूंज हो रही है और भक्त शिवालयों में जाकर भोले शंकर को जलाभिषेक कर अराधना कर रहे हैं। सतना के बिरसिंहपुर स्थित भगवान गैवीनाथ के धाम पर आज एक लाखों श्रद्धालु पहुंचने की संभावना है। सतना से 35 किलोमीटर दूर बिरसिंहपुर कस्बे में यह धाम पूरे विंध्य सहित मध्य भारत में विख्यात है। त्रेतायुग के इस शिवलिंग पर औरंगजेब ने भी हमला कर तलवार से वार किया था जिसके निशान आज भी कायम हैं। लेकन इस शिवलिंग को औरंगजेब पूरा खंडित नहीं कर सका और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। देश भर में यह इकलौता ऐसा शिवलिंग है जो खंडित होने के बावजूद पूजा जाता है। जिसकी विशेषता और महानता जानकर देश भर से भक्त गैवीनाथ के दर्शन करने सतना के बिरसिंहपुर पहुंचते हैं। यहां से उत्तर प्रदेश की सीमा निकटतम है जिसके कारण उत्तर प्रदेश के भी श्रद्धालुओँ का तांता लगता है।
पदम पुराण में है उल्लेख : बिरसिंहपर में स्थित गैवीनाथ धाम त्रेतायुग में देवपुर कहलाता था। इस स्थान और गैवीनाथ मंदिर का वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में है। जहां देवपुर में राजा वीर सिंह का राज्य हुआ करता था। जो महाकाल के अनन्य भक्त थे। वे घोड़े पर सवार होकर महाकाल की नगरी उज्जैन जाते थे। सालों तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन जब राजा वृद्ध हुए तब उन्होंने महाकाल से अपनी व्यथा बताई। तब महाकाल ने राजा के स्वप्न में देवपुर में ही दर्शन देने की बात कही। उसी समय नगर के ही गैवी यादव नामक व्यक्ति के यहां चूल्हे से शिवलिंग निकला लेकिन गैवी की मां उस शिवलिंग को दोबारा जमीन के अंदर कर देती। महाकाल एक दिन फिर से राजा वीर सिंह के स्वप्न में आए और बताया कि वह जमीन से निकलना चाहते हैं लेकिन गैवी की मां उन्हें फिर जमीन में धकेल देती है। अंत में राजा गैवी के घर पहुंचे और जिस स्थान से शिवलिंग चूल्हे से बाहर आने का प्रयास कर रहा था, उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और महाकाल के आदेश के अनुसार भगवान शिव इस स्थान पर गैवीनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। गैवीनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग को भगवान महाकाल का ही रूप माना जाता है।
औरंगजेब ने नष्ट करने किया था प्रहार : मंदिर के प्रमुख पुजारी विनोद कुमार गोस्वामी के अनुसार देश भर की मंदिरों की भांति मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस मंदिर को भी नुकसान पहुंचाकर गैवीनाथ के शिवलिंग को नष्ट करने की चेष्ठा की लेकिन वे शिवलिंग को आधा ही नुकसान पहुंचा पाए और उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार आज से 317 साल पहले 1704 में मुगल आक्रांता औरंगजेब हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने के क्रम में इस स्थान पर पहुंचा था। औरंगजेब के साथ उसकी सेना भी थी। औरंगजेब ने पहले अपनी तलवार से शिवलिंग पर प्रहार किया लेकिन उसे तोड़ने में असफल रहने पर उसने अपनी सेना को आदेश दिया, जिसके बाद शिवलिंग को हथौड़े और छेनी से तोड़ने का प्रयास किया गया। बताया जाता है कि शिवलिंग पर पांच प्रहार किए गए थे। जिसमें पहले प्रहार में शिवलिंग से दूध निकला, दूसरे प्रहार में शहद, तीसरे प्रहार में खून और चौथे प्रहार में गंगाजल। जैसे ही औरंगजेब के सैनिकों ने शिवलिंग पर पांचवां प्रहार किया, लाखों की संख्या में भंवर के रूप में मधुमक्खियां निकलीं जिसके कारण औरंगजेब और उसकी पूरी सेना तितर-बितर हो गई और किसी तरह अपनी जान बचाकर भागी।