
आकाश माथुर, नईदुनिया, सीहोर। यूरिया और डीएपी रासायनिक खाद के लिए रोज लगती लाइनों और खाद संकट की तस्वीरों के बीच सीहोर जिले के एक किसान ने नई राह खोली है। किसान ने जैविक खाद का उत्पादन शुरू किया था। अब नीदरलैंड से इस खाद की मांग आई है। मतलब सीहोर की केंचुआ खाद नीदरलैंड के खेतों को उपजाऊ बनाने में इस्तेमाल होगी।
जिले के खंडवा गांव के किसान लखन वर्मा दो दशकों से जैविक कृषि पर प्रयोग कर रहे हैं। 2015 से उन्होंने अपने खेत में ही केंचुआ खाद का उत्पादन शुरू किया था। इस खाद की मांग प्रदेश के दूसरे जिलों के अलावा अन्य प्रदेशों में भी होने लगी है। यह खाद स्थानीय बाजार में 14-15 रुपया प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध है।
अभी नीदरलैंड की एक कंपनी ने उनको 260 टन केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) की आपूर्ति का बड़ा आर्डर दिया है। इसके लिए उनको पांच अमेरिकी डॉलर यानी 442 रुपया प्रति किलोग्राम की आकर्षक दर मिलेगी। उन्हें यह 260 टन खाद मुंबई बंदरगाह तक भेजनी है, वहां से नीदरलैंड की कंपनी तक यह पूरा स्टाक पहुंचेगा। किसान लखन वर्मा ने बताया कि यह आर्डर उन्हें आनलाइन मिला है। उन्होंने अपनी खुद की वेबसाइट के माध्यम से नीदरलैंड की कंपनी से संपर्क स्थापित किया था।
किसान लखन वर्मा ने बताया कि उन्होंने शुरुआत में वर्मीकंपोस्ट खुद के खेत के लिए तैयार करना शुरू किया था। इसकी सफलता को देखते हुए उन्होंने इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया। उनके अनुसार सात क्विंटल वर्मीकंपोस्ट एक एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए पर्याप्त होती है।
जैविक खाद के स्थानीय उत्पादन से स्थानीय पशुपालकों को भी फायदा हो रहा है। लखन वर्मा ग्रामीणों और गोशालाओं से 100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गोबर खरीदते हैं। इससे पशुपालकों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत मिल गया है। इस खाद उत्पादन केंद्र पर 14 मजदूर काम कर रहे हैं।
वर्मी कम्पोस्ट किसानों के लिए बेहतर विकल्प है। यदि वे खुद के लिए इसे बनाएंगे तो फसल की लागत कम होगी और व्यवसाय के रूप में स्थापित करेंगे तो कम लागत में अधिक आय वाला साधन खड़ा होगा। इसे बनाने में पांच रुपये किलो से ज्यादा की लागत नहीं आएगी जबकि ये 20 से 60 रुपये किलो की दर से बिकती है। अब तो विदेश में भी अवसर की राह खुल गई है। - डॉ. विवेक तोमर, कृषि विज्ञानी