
सीहोर। रबी सीजन में जिले के जिन किसानों ने चने व मसूर की फसल की बोवनी की है, उनके लिए अब उकठा रोग आफत बन रहा है। क्योंकि खेतों में पौधे तैयार हो गए हैं और फूल फल लग रहे हैं, लेकिन ऐसे समय में इस फसल पर उकठा रोग का प्रकोप होने से भारी नुकसान हो रहा है। पौधे सूख कर मर रहे हैं। अब तक श्यामपुर तहसील के सिराड़ी, मित्तूखेड़ी, बराड़ी कला, खजूरिया बंगला, बैरागढ़ गणेश, सीलखेड़ा, सेमरा दांगी, सतोररनिया सहित दर्जनों गांवों में इस तरह की शिकायतें मिली है। कई गांवों में 20 फीसद फसल नष्ट हो चुकी है। लगातार पौधों का मरना जारी है। इस वर्ष चने की फसल लगाने वाले अधिकतर किसान इस बीमारी से परेशानी में नजर आ रहे हैं।
सिराड़ी के किसान राजेंद्र मीना, मित्तूखेड़ी के शरद सिदार, ग्राम सीलखेड़ा के हेमराज मीना ने बताया कि चने की फसल में हो रही बीमारी से सभी अनजान हैं। यह रोग पौधों की जड़, पत्ती व टहनी को सुखा रही है। इससे प्रभावित पौधे से एक बीज भी मिलना मुमकिन नहीं है। लगातार पौधों का मरना जारी है। किसान इस बीमारी को अपनी तरीके से उकठा नाम दिए हैं, तो कोई उकसा या गलन रोग बता रहे हैं। बीमारी से पौधों को बचाने किसान मार्केट के सभी कीटनाशकों का छिड़काव कर चुके हैं, लेकिन फायदा नहीं हुआ है।
कंपनी वालों को भी पता नहीं
कुछ दवा कंपनियों के कर्मचारी बीमारी जानने पहुंचते हैं, लेकिन वे भी बीमारी का नाम नहीं बता पा रहे। कर्मचारियों के बताए अनुसार किसान सभी प्रकार के नामी-गिरामी कीटनाशकों का छिड़काव कर चुके हैं, लेकिन पौधों से बीमारी हटने का नाम नहीं ले रही। ऐसे में त्रस्त किसानों ने कीटनाशक का छिड़काव ही बंद कर दिया है।
मौसम में बदलाव और बार-बार खेत में एक ही फसल लगाने पर चने की फसल में उकठा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में किसान सही प्रबंधन अपनाकर इससे छुटकारा पा सकते हैं। इस रोग का प्रभाव खेत मे छोटे-छोटे टुकड़ों मे दिखाई देता है। प्रारम्भ मे पौधे की ऊपरी पतियां मुरझा जाती हैं। धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। जड़ के पास तने को चीरकर दिखने पर वाहक ऊतकों मे कवक जाल धागेनुमा काले रंग की संरचना के रूप में दिखाई देता है। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लयूपी 0.2 फीसद घोल का पौधों के जड़ क्षेत्र में छिड़काव करें। क्लोरीपाइरीफास 20 फीसद पानी के साथ फसल में डाले।
बीएस देवड़ा, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकार