आष्टा। नाग पंचमी मंगलवार को शिव योग में मनाई गई। ज्योतिष के अनुसार, पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता हैं, इसलिए सावन शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ नाग के चित्र बनाकर नव नागों का पूजन की गई। नाग पंचमी के अवसर पर कई वर्षों पहले गली-गली में अनेकों सपेरों की आवाज पिलाओं नाग पंचमी को दूध अल सुबह से सुनाई देती थी, लेकिन शासन द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद गिनती के सपेरे ही नाग पंचमी के अवसर पर पिलाओं नाग को दूध की आवाज लगाते हुए सुनाई दिए व नजर आए।
पंडित गणेश व्यास ने बताया कि गरुड पुराण, स्कंद पुराण में ऐसा वर्णन मिलता है कि सावन की पंचमी पर नागों की पूजा करने से मनोकामना पूरी होने के साथ-साथ सर्प के काटने का भय समाप्त होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित अमित तिवारी ने बताया कि पंचमी तिथि का प्रारंभ मंगलवार को सुबह 5.13 बजे से हो गया। यह तिथि बुधवार को सुबह 5.40 बजे तक रहेगी। इसलिए मंगलवार के दिन सूर्योदय के साथ-साथ लगभग पूरे अहोरात्रिमान को पंचमी तिथि व्याप्त होने के कारण नाग पंचमी का पर्व मनाया गया।
नाग-नागिन के जोड़े की मांग बढ़ी
नाग-नागिन की प्रतिमाओं को शिवलिंग पर भक्तों ने अर्पित किए। आमतौर पर शिव पूजा, कालसर्प और पितृ दोष निवारण के अनुष्ठान से लेकर नए मकान के निर्माण की नींव में रखने के लिए चांदी, तांबा और पीतल से बने नाग-नागिन के जोड़े खरीदे जाते हैं। नगर के सराफा बाजार के अनुसार, हर कारोबारी से औसतन 10 से 15 लोग चांदी के नाग-नागिन बनवाते है।