लखनादौन (नईदुनिया न्यूज)। नगर में दसलक्षण महापर्व गुरु के सानिध्य में भक्तिभाव से मनाया जा रहा है। आचार्य आर्जवसागर महाराज ने मंगल प्रवचन के दौरान बताया कि वीतराग भगवान का ध्यान, मन की निर्मलता का कारण बनता है। दसलक्षण महापर्व के तृतीय दिवस आर्जव धर्म को स्पष्ट करते हुए कहा कि आर्जव का अर्थ होता है सरलता का भाव। माया का अभाव ही आर्जव धर्म है। जिसमें छल, कपट, बेईमानी सब छूट जाता है। आज यह धर्म हमेशा 24 घंटे हमारे ह्दय में होना चाहिए। इससे मन वचन काया की क्रिया हमेशा चलती रहती है। वह क्रिया ही हमें उत्तम आर्जव धर्म का पालन करा सकती है। किसी को गुमराह करने, छल कपट करने की भावना लाना ही आर्जव धर्म है।
हमें इस धर्म का पालन करने के लिए तीनों योगों की अवक्रता, सरलता को अपनाना होगा। जो वक्र चिंतन नहीं करता। वक्र रूप वचन नहीं बोलता और वक्रता पूर्वक काम नहीं करता और साथ में अपने दोषों को नहीं छुपाते हुए अपने दोषों को भगवान अथवा गुरु के सामने बखान करता है, उसकी आलोचना करता है। उसी के आर्जव धर्म प्रकट होता है। अतः गुरु के पास, भगवान के पास सब कुछ बोल देना चाहिए, कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए। इससे हमारे पाप का हमें क्षय करने का उपहार मिल जाता है गुरु हमें प्रायश्चित देकर गुरु उस पाप के परिणाम से बचा लेते हैं।
आचार्य श्री ने बताया कि आजकल व्यक्ति ख्याति, लाभ, पूजा, मान के कारण अपने को ठुकरा देता है। यह सब हमारी श्रद्धा की कमी से होता है। जिसकी पुण्य पाप पर भी श्रद्धा नहीं होती वह श्रेष्ठ नहीं होता है। जैसे-जैसे श्रद्धा बढ़ती जाती है तो वह भगवान को समझने भी लग जाते हैं। गुरुवर ने बताया कि जो लोग मायाचार करते हैं उन्हें अगले भाव में त्रियंच गति में जन्म लेना पड़ता है और कष्टों को सहना पड़ता है। लोग अपने सुख के लिए दूसरे के दुख को नहीं देखते। यह बहुत बड़ी भूल है और यह आर्जव धर्म के विपरीत है। हमें कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए। किसी के साथ छल कपट नहीं करनी चाहिए।