विश्व नगर दिवस आज : 10वीं शताब्दी में परमार काल से लेकर मुगल काल व सिंधिया स्टेट में महत्वपूर्ण रहा शाजापुर
शाजापुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
शाजापुर नगर अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए ख्यात है। जिला 10वीं व 12वीं शताब्दी के परमार काल से लेकर मुगलकाल, मराठा वंश के लिए महत्वपूर्ण रहा है। कभी खांखराखेड़ी के नाम से प्रसिद्ध रहा शाजापुर से बाज बहादुर से लेकर शाहजहां तक का लगाव रहा है। विशेष यह है कि जिले से निकली चीलर, कालीसिंध, पार्वती नदी के आसपास जो छोटी-छोटी बसाहटें हुई वह अब विभिन्ना नगरों का रूप ले चुकी हैं। जिले के कई नगर अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जाने जाते हैं।
दिल्ली पैटर्न पर बनवाए दरवाजे
क्षेत्र में कभी इतने पलाश खांखरा के पेड़ हुआ करते थे कि इसका नाम ही खांखराखेड़ी पड़ गया। पलाश के वृक्षों से ढंका व आसपास पहाड़ियों के होने से क्षेत्र सौंदर्य से सराबोर था। कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां को यह क्षेत्र बहुत पसंद आया। सितंबर 1640 में मीर बिगो को यहां का कोतवाल नियुक्त कि या गया। जगन्नाथ रावल के साथ मिलकर उन्होंने इस क्षेत्र को दिल्ली पैटर्न पर तैयार करने की योजना बनाई। परिणाम स्वरुप यहां पर चार बड़े दरवाजे बनवाए गए। इनके मध्य में बाजार स्थापित कि या गया। परिणामस्वरूप क्षेत्र तेजी से आबाद हुआ।
शाहजहां के नाम पर नाम पड़ा शाहजहांपुर
बादशाह शाहजहां के नाम पर इसका नाम शाहजहांपुर रखा गया, जो बाद में शाजापुर हो गया। कहा जाता है कि जब शाहजहां का उज्जैन की ओर जाना हुआ तो उन्होंने यहां एक रात विश्राम कि या था। बादशाह को यह जगह इतनी पसंद आई कि यहां कि ले का निर्माण भी करवाया। शहर के मध्य बना शाहजहांकालीन कि ला आज भी मौजूद है। करीब 400 साल से पुरानी यह धरोहर मुगलकाल में बनी थी। सबसे अहम बात यह है कि इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चीलर नदी का प्रवाह मोड़ा गया था। पहले सोमवारिया बाजार से होकर बहने वाली नदी को महूपुरा क्षेत्र से होते हुए कि ले से लेकर बादशाही पुल तक ले जाया गया। मुगलों के पतन के बाद यहां 1707 के पश्चात यह क्षेत्र मराठों के स्वमित्व में आया। शाजापुर 1732 में ग्वालियर के सिंधिया वंश के अधिकार में आ गया। वह 28 मई 1948 तक निरंतर बना रहा।
प्राचीन मां राजराजेश्वरी मंदिर
एबी रोड स्थित मां राजराजेश्वरी देवी मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का कें द्र बिंदू रहा है। मां की मूर्ति अति प्राचीन है। मंदिर का निर्माण राजा भोज के काल में 1018 से 1060 के बीच हुआ था। मां के दरबार से कई तरह के चमत्कार जुड़े हुए हैं। जिले सहित अन्य शहरों के भक्त भी यहां पहुंचते हैं। नवरात्र के दौरान भक्तों का हुजूम उमड़ता है। मां राजराजेश्वरी मंदिर में करीब 50 साल से अखंड ज्योत जल रही है।
सुंदरसी का महाकाल मंदिर तो पोलायकलां का सूर्य कु ंड
लेखक एवं जिला पेंशनर्स संघ जिलाध्यक्ष डॉ. जगदीश भावसार बताते हैं कि शाजापुर जिले का गौरवशाली इतिहास रहा है। धरोहरों को लेकर हो या स्वतंत्रता आंदोलन हर क्षेत्र में शाजापुर विख्यात रहा है। जिले के आसपास परमारकालीन 10वीं एवं 12वीं शताब्दी के अनेक परमारकालीन अवशेष बिखरे पड़े हुए हैं, जो जिले की बसाहट की प्राचीनता को दर्शाते हैं। ग्राम सुंदरसी का महाकाल मंदिर अपने आप में अद्भुत है। उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर बना यह मंदिर स्थापत्य कला का नमूना प्रस्तुत करता है। इसी तरह जामनेर का जैन मंदिर व पोलायकलां का सूर्य कु ंड से भी जुडी अनेक किं वदंतिया हैं। नांदनी, चांदनी, अवंतिपुर बडोदयिा, झररनेश्वर महादेव मक्सी प्रसिद्ध स्थल है। वहीं तिंगजपुर भी ऐतिहासिक रहा है। यहां से बाज बहादुर का उज्जैन जाने के समय निकलना होता था। शाजापुर का सोमेश्वर महादेव मंदिर भी प्राचीन शिव मंदिर है। फू टा देवल के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर कभी चीलर नदी के कि नारे बसा हुआ था। 1640 में नगर बसाहट के दौरान नदी का प्रवाह मोड़ दिया गया था। इसी तरह चीलर नदी के कि नारे बना महादेव घाट भी प्राचाीन घाट है। यहां ताराबाई की स्मृति में बनी छतरी का निर्माण सिंधिया देव ट्रस्ट द्वारा कि या गया था, लेकि न समय के साथ यह जर्जर होकर अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। डॉ. भावसार बताते हैं कि शाजापुर नगर बसाने में मगरिया, महूपुरा, डांसी, मुरादपुरा, वजीरपुरा, कमरदीपुरा, दायरा, लालपुरा, मुगलपुरा, गोल्याखेड़ी, जुगनवाड़ी, मीरकलां इस प्रकार बाहरपुर बनाए गए थे। जिनमें शाहजहां के बेटे मुराद के नाम पर मुरादपुरा एवं मीरकलां का नाम मीर बीगो ने अपने स्वयं के नाम पर किया था।
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