सुसनेर(नईदुनिया न्यूज)। कभी सुवानगर होने वाला सुसनेर शहर अब अपना नाम बदलने के साथ ही न सिर्फ आबादी व क्षेत्रफल की दृष्टि से बढ़ रहा है बल्कि धर्म के मामले में भी उन्नति कर रहा है। जैसे-जैसे शहर में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे धार्मिक स्थलों के साथ ही संसाधनों की बढ़ोतरी भी हो रही है। बीते कुछ सालों में शहर में काफी बदलाव भी आया है, लेकिन प्राचीन समय से लेकर आधुनिक युग में आज तक यदि कुछ नहीं बदला है तो वह है शिव का बाग। आज के समय में भले ही इसका एक और नाम मेला ग्राउंड हो गया हो, लेकिन शहरवासी इस क्षेत्र को आज भी शिव के बाग के नाम से ही पुकारते हैं।
यह प्राचीन नाम है, और इसलिए है क्योंकि यह शहर की जीवनदायिनी कंठाल नदी के तट पर स्थित है और नदी के किनारे ही शिवजी के 4 धाम स्थित हैं। पहला है 1200 साल पुराना होलकर स्टेट के जमाने का ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, दूसरा है देवीअहिल्याबाई द्वारा निर्मित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, तीसरा है जयेश्वर महादेव और चौथा है महादेव घाट शिव मंदिर। इन चारों शिव मंदिरों के नाम अलग-अलग होने के साथ ही अपनी अलग ही महिमा है। सावन माह होने के चलते यहां पर प्रतिदिन सुबह-शाम बड़ी संख्या में श्रृद्घालु दर्शन करने पहुंच रहे हैं। सोमवार के दिन विशेष पूर्जा के साथ ही इन चारों शिव मंदिरों में महारूद्राभिषेक व अनुष्ठान भी किया जा रहा है।
ओंकारेश्वर मंदिर में 152वें पुजारी कर रहे पूजा
शिव के बाग में स्थित सबसे प्राचीन मंदिर ओंकारेश्वर महादेव मंदिर है। यहां न जाने कितनी पीड़ियां पुजारियों की बीत गई हैं। यहां के पुजारी पंडित गोविंद शर्मा बताते हैं कि वे उनके परिवार के 152वें नंबर के पुजारी हैं जो वर्तमान में पूजा कर रहे हैं। यहां पुजारियों ने पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रखा है। नाथजी कुटिया मंदिर के ठीक सामने स्थित है। यहां प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद मिलता है इसलिए शहरवासी यहां पर आए दिन पार्टी जैसे आयोजन करते रहते हैं।
भादौ के पहले सोमवार को निकलती है शाही सवारी
करीब 60 सालों से नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर की शाही सवारी शिव भक्त मंडल निकालता आ रहा है। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। तब हाथ ठेले में सवारी निकाली जाती थी और अब पालकी में। देवी अहिल्याबाई ने प्राचीन समय में इस मंदिर की नींव रखते हुए यहां पर नीलकंठेश्वर महादेव की स्थापना की थी। यह मंदिर कंठाल नदी के तट पर ही बसा हुआ है। यह मंदिर राजस्व विभाग के अधीन है और इस मंदिर की कई बीघा जमीन आज भी कुछ कतिपय लोगों के कब्जे में है।
महादेव घाट बढ़ा रहा नदी की सुंदरता
महादेव घाट कंठाल नदी के बीचों-बीच बामनियाखेड़ी मार्ग की ओर जाने वाली पुलिया के समीप स्थित है। नदी के बीच में प्राचीन शिवलिंग स्थित था। जिसको कुछ वर्ष पूर्व ही नगर परिषद ने जीर्णोंद्घार करवाकर एक मंदिर बनाकर महादेव घाट का नाम दिया है। यहां विराजित शिवलिंग देखने में बहुत ही छोटा दिखाई देता है किन्तु इसकी लंबाई काफी अधिक है जो की नदी के तले से टीका हुआ है। नदी के बीचों-बीच स्थित होने के चलते आज यह मंदिर न सिर्फ नदी की सुंदरता को बढ़ा रहा है बल्कि शहर की एक पहचान भी बना हुआ है।
प्राचीन जयेश्वर महादेव मंदिर
यह मंदिर भी शिव के बाग में स्थित है और जो की प्राचीन होने के साथ ही कुछ सालो पहले श्रृद्घालुओं की उदासीनता का शिकार हो गया था, किन्तु वर्तमान में इस मंदिर में भी पूजा करने के लिए श्रद्घालुओं की भीड़ उमड़ रही है। यह मंदिर भी देवी अहिल्याबाई ने ही बनवाया था। यह मंदिर नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर और महादेव घाट मंदिर इन दोनो के मध्य में स्थित है। जो की कंठाल नदी के ठीक सामने है।